चुनाव के दौरान नेता जी कैबिनेट में जाने के कर रहे थे दावे, मतगणना के दिन सपनों पर फिरा पान
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने सपनों पर पानी फेर दिया। एक उम्मीदवार तो जीत के प्रति इतने आश्वस्त थे कि जब भी उनसे कोई समीकरण पूछता तो जवाब मिलता कि समीकरण छोड़ो जी जीत पक्की है।
राजेश शर्मा, लुधियाना। लोकसभा चुनाव के नतीजों ने सपनों पर पानी फेर दिया। एक उम्मीदवार तो जीत के प्रति इतने आश्वस्त थे कि जब भी उनसे कोई समीकरण पूछता तो जवाब मिलता कि समीकरण छोड़ो जी जीत पक्की है। सरकार में कैबिनेट मंत्री का पद तय है अपने लिए। इतने आत्मविश्वास को देखकर लोग भी भौचक्के रह जाते। इसके बाद लोग खुसर-फुसर भी करते कि इतना आत्मविश्वास ठीक नहीं। अभी तो बहुत पसीना बहाना पड़ेगा। बड़ी बात थी कि प्रचार के लिए कोई भी बड़ा नेता पहुंचा ही नहीं। वहीं प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों की स्पीड तो जैसे राकेट बनी हुई थी। उनका प्रोग्राम आता तो एक-एक दिन में बीस-बीस प्रोग्राम होते। सरकारी आंकड़ों में जनसभाएं करने में भी आगे थे। मतदान का दिन आया तो नेता जी घर से ही 9.30 बजे निकले। यह अंदाज सही भी था। जब केंद्र में वजीरी पक्की हो तो फिर कोई शरीर को इतनी तकलीफ क्यों दे। आखिरकार मतगणना का दिन भी आ पहुंचा। शुरुआती दौर से ही नेता जी का नंबर तीसरा आता रहा। आखिरकार बड़ी मार्जिन के साथ प्रतिद्वंद्वी ने जीत अर्जित की, जिस को पानी पी-पी कर कोसते थे उस उम्मीदवार ने नेता जी को पछाड़ दिया। एक समर्थक ने चुटकी लेते हुए कहा नेता जी जीत न सके कम से कम रनर अप तो रह जाते।
थाना इंचार्जी के लिए हाथ-पांव मारने शुरू किए
चुनावी मौसम खत्म हुआ और अब सिफारिशों का दौर शुरू हो गया। मनपसंद थाने लेने के लिए पुलिस अफसरों ने हाथ-पांव मारने शुरू कर दिए। विभाग के उच्च अधिकारियों की शरण में पहुंचे अफसरों को नसीहत मिली कि वह इलाका विधायकों से बात कर लें तभी बेड़ा पार हो सकेगा। खैर अभी तक टालमटोल का दौर चल रहा है। देखें किस जगह से किसकी लाटरी निकलती है। चर्चा है कि अगर राजनीतिज्ञों की सिफारिश से ही ऐसे महत्वपूर्ण पद मिलने हैं तो आम आदमी बेचारा बनकर ही जीवन काट ले।
मन को समझाने के लिए सभी के पास है कोई न कोई बहाना
चुनाव बीत गया। मतगणना के बाद सभी उम्मीदवारों के पास मन को समझाने का कोई न कोई बहाना था ही। मतगणना से पहले जीत के बड़े-बड़े दावे करने वाले नेतागण अब आंकड़ों का हवाला देकर समझा रहे हैं कि देखो मुङो पहले से अधिक मत मिले। विभिन्न इलाकों में मिले वोट प्रतिशत का तर्क दिया जा रहा है। किसी के पास यह तर्क है कि उसका आधार बढ़ा तो किसी ने इस तरह मन को समझा लिया कि उसने अपना गढ़ बचा लिया। लोग समझ नहीं पा रहे कि कौन जीता व कौन हारा। कौन मजबूत हुआ तो कौन कमजोर।
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