कभी टिकटों के लिए लगती थीं नेताओं व अफसरों की सिफारिशें, Mall Culture ने ऐसे खत्म किया सिनेमा उद्योग
अब मल्टीप्लेक्स में एक समय में एक ही फिल्म के अनेक शो चलते हैं। समय के साथ जिंदगी की रफ्तार बढ़ी और फिल्मों के शोज़ की संख्या भी।
लुधियाना [राजेश भट्ट]। कभी आम लोगों के मनोरंजन का प्रमुख केंद्र थे शहर के सिनेमाघर। अब इनमें से अधिकांश हो सिनेमाघर बंद हो चुके हैं और उनकी जगह ले ली है आलीशान मल्टीप्लेक्सिज़ ने। तब एक सिनेमाघर में पूरे दिन में फिल्म के मात्र चार शो चलते थे। अब मल्टीप्लेक्स में एक समय में एक ही फिल्म के अनेक शो चलते हैं। समय के साथ जिंदगी की रफ्तार बढ़ी और फिल्मों के शोज़ की संख्या भी। लुधियाना के सिनेमा प्रेमियों के लिए पुराने व नए समय के सिनेमाघरों पर राजेश भट्ट की रिपोर्ट...
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का आगाज 1913 में हुआ। ठीक 20 साल बाद लुधियाना में पहला सिनेमाघर अस्तित्व में आया। 1933 में निजाम रोड पर ‘रेखी’ सिनेमाघर बना। बाद में इस सड़क का नाम ही रेखी सिनेमा रोड पड़ गया। इस सिनेमा के शुरू होने के साथ ही लुधियाना में सिनेमाघरों का उद्योग फलने फूलने लगा। कुछ साल बाद ही रेखी सिनेमा के सामने ‘नौलक्खा’ सिनेमा बन गया। उसके बाद शहर में एक के बाद एक 18 सिनेमाघर बने। कुछ सिनेमा घरों में दो-दो तीन-तीन स्क्रीनें भी लगीं। 20 वीं सदी के आखिर तक यह सिनेमाघर खूब फले फूले। 21वीं शताब्दी के पहले पांच सालों में शहर में मॉल कल्चर डेवलप हुआ और मॉल्स में मल्टीप्लेक्स बनने लगे। लोग भी पुराने पारंपरिक सिनेमा घरों से निकलकर मॉल्स की तरफ जाने लगे। इससे शहर के पारंपरिक सिनेमा घर का बिजनेस कम होने लगा। एक दौर आया कि इन सिनेमा घरों का मुनाफा कम होने लगा। जो सिनेमाघर घाटे में आने लगे वे बंद होते गए। अब तक 11 सिनेमाघर बंद हो चुके हैं, जिनमें से पांच सिनेमाघरों का अस्तित्व ही खत्म हो गया। जबकि एक सिनेमाघर की जगह मॉर्डन मल्टीप्लेक्स सिनेमा बना दिया गया और सात मॉर्डन मल्टीप्लेक्स बन चुके हैं।
अब भी चल रहे हैं छह सिनेमाघर : शहर में जो छह पुराने सिनेमा घर चल रहे हैं वे भी दम तोड़ते नजर आ रहे हैं। तब सिनेमाघरों में कभी टिकट लेने के लिए मारामारी होती थी, लाइनें लगती थी और बड़े-बडे़ नेताओं व अफसरों की सिफारिशें लगती थी। भीड़ को काबू करना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती होती थी। फर्स्ट डे, फर्स्ट शो में टिकट लेना एक चैलेंज रहता था। फिल्में सिल्वर व गोल्डन जुबली मनाती थीं। अब वही सिनेमाघर शो के टाइम पर भी विरान पड़े रहते हैं।
एक सप्ताह रह गई फिल्म की लाइफ : सिनेमाघरों के संचालकों की मानें तो अब टिकट ब्लैक या एडवांस बुकिंग की बात तो दूर अब कभी टिकट के लिए लाइन तक नहीं लगती। दरअसल अब मल्टीप्लेक्सेज में नई फिल्म के एक दिन में 80 से 100 शो दिखाए जा रहे हैं। इससे फिल्म की लाइफ एक सप्ताह से भी कम की हो गई। बाकी की कसर इंटरनेट ने पूरी कर दी है।
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