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धान की पैदावार में बढ़ोतरी से बढ़ी पराली की समस्या, जलाने की जगह करें यह काम Ludhiana News

पीएयू के वाइस चांसलर बलदेव सिंह ढिल्लों ने किसानों से अपील की है कि पराली की संभाल के लिए किसानों को यूनिवर्सिटी या कृषि विज्ञान केंद्रों से ट्रेनिंग लेनी चाहिए।

By Sat PaulEdited By: Published: Thu, 03 Oct 2019 12:07 PM (IST)Updated: Thu, 03 Oct 2019 12:07 PM (IST)
धान की पैदावार में बढ़ोतरी से बढ़ी पराली की समस्या, जलाने की जगह करें यह काम Ludhiana News
धान की पैदावार में बढ़ोतरी से बढ़ी पराली की समस्या, जलाने की जगह करें यह काम Ludhiana News

लुधियाना, [हरजोत सिंह अरोड़ा]। कोई समय था जब पराली अलग अलग तरीके से लोगों को घरों में प्रयोग में लाई जाती थी। पराली से ही गांवों में झुग्गी-झोपड़ी तक बन जाती थीं और लोग टीन की छत बजाय पराली को छत बनाने के लिए प्रयोग करते थे। यही पराली ईंधन और यहां तक कि फसलों की गांठ बांधने के लिए रस्सी का काम भी करती थी।

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जब पक्के घर बनने शुरू हुए तो गर्मी से बचने के लिए पराली को छत पर डालकर तापमान से बचने के प्रयोग में लाया जाने लगा। धीरे-धीरे कूलर और फिर एसी ने इसकी जगह ले ली। झोपड़ियों के निर्माण में पराली की छत की जगह तिरपाल व प्लास्टिक की शीटों ने ले ली। मानव जीवन में पराली का प्रयोग जैसे जैसे खत्म होता गया उसके बाद इसकी संभाल मुश्किल हुई और किसानों ने इसे खेतों में जलाना शुरू कर दिया।

पीएयू के वाइस चांसलर बलदेव सिंह ढिल्लों और डायरेक्टर एक्सटेंशन एजुकेशन जसकरण सिंह ने पंजाब में मुद्दा बनी पराली के प्रबंधन को लेकर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि तकनीक के इस्तेमाल से जहां किसान जमीन की उपजाऊ शक्ति फिर से बढ़ा सकते हैं, वहीं अपने बच्चों के बेहतर भविष्य का निर्माण भी कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि 40-50 साल पहले पीछे जाएं तो उस समय धान का रकबा करीब ढाई से तीन लाख हेक्टेयर ही था, जबकि आज यह बीस लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। इतने रकबे में पैदा होने वाली पराली की संभाल करना काफी मुश्किल है। धान की कटाई के बाद गेहूं की बिजाई के लिए किसानों को कम समय मिलता है। समय बचाने को वो आग लगा देते हैं। फिर भी कई उपाय हैं जिन्हें अपना किसान पराली प्रबंधन के लिए पर्याप्त समय निकाल सकते हैं।

छोटे किसान मिलकर खरीदें मशीनरी

पीएयू के वाइस चांसलर बलदेव सिंह ढिल्लों ने किसानों से अपील की है कि पराली की संभाल के लिए किसानों को यूनिवर्सिटी या कृषि विज्ञान केंद्रों से ट्रेनिंग लेनी चाहिए। पराली को खपाने के लिए हैपी सीडर और रोटावेटर के प्रयोग की जानकारी दी जाती है। यदि किसान यहां न आ पाएं तो हैपी सीडर और अन्य तरीकों के जरिए पिछले कई सालों से पराली संभाल कर रहे जागरूक किसानों से भी इसकी जानकारी ले सकते हैं। हम सभी का फर्ज है कि पराली को जलाया न जाए ताकि पर्यावरण प्रदूषित होने से बचे। छोटे किसानों को ट्रैक्टर और मशीनें अपने स्तर पर लेने की बजाए समूह बनाकर खरीदनी चाहिएं। इससे उनके खर्चे में कटौती होगी। इसके साथ ही जिन किसानों के पास ट्रैक्टर और हैपी सीडर सहित अन्य मशीनें हैं उन्हें अपने खेतों में इसके प्रयोग के बाद दूसरे किसानों की कम किराए पर मदद करनी चाहिए।

पराली को खेत में ही दबा दें किसान

पराली की संभाल के लिए धान की कटाई के बाद खेत में हलका पानी लगाकर रोटावेटर के जरिए उसे जमीन में मिला देना पराली प्रबंधन का बेहतर तरीका है। ऐसा करने से 20 दिन में ही 80 से 90 फीसद पराली मिट्टी में मिल जाती है और जमीन की उपजाऊ शक्ति बरकरार रहती है। मिट्टी के पोषक तत्वों को भी नुकसान नहीं होता। अगर किसान लगातार इस तकनीक को अपनाता है तो तीन साल के बाद चौथे साल से किसानों को गेहूं का दस फीसद ज्यादा झाड़ मिलता है।

हल्दी की फसल व ईंधन में हो सकता है इस्तेमाल

किसी समय पराली से गत्ता भी बनाया जाने लगा था परंतु गत्ता तैयार करने के लिए महंगे केमिकल के प्रयोग से यह कारोबार फायदे का सौदा नहीं रहा। पराली को सारा साल उपलब्ध करवाना और इसे स्टोर करके रखना भी एक बड़ी चुनौती है। इसलिए पराली को अगर हल्दी की खेती के समय खेत में बिछाकर हल्दी की अधिक पैदावार ली जा सकती है। वहीं इसे ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। पशु चारे में भी इसे इस्तेमाल किया जा सकता है।

गेहूं की नई किस्म पीअर 121 व 126 का इस्तेमाल करें किसान

किसान जिस तरह के बीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसके अनुसार धान की कटाई व गेहूं की बिजाई के बीच उनको 20 से 25 दिन ही मिल रहे हैं। इस स्थिति में किसानों पर दबाव रहता है कि वह जल्द से जल्द खेत को नई फसल के लिए तैयार कर लें। पूरे पंजाब में धान की कटाई करीब 20 से 25 दिन में हो जाती है। इसी कारण 20 लाख टन से ज्यादा पराली भी एकदम एकत्रित हो जाती है। पीएयू ने गेहूं की एक नई किस्म ईजाद की है जिसके नाम पीअर 121 व 126 है। ये किस्में बहुत जल्दी पक जाती हैं। अगर इस किस्म के बीजों का प्रयोग करें तो किसानों को पराली की संभाल के लिए 35 दिन मिल जाते हैं। इससे झाड़ पर फर्क नहीं पड़ता।

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