इस स्थान पर गुरु नानक देव जी ने रुकवाई थी गौ हत्या, आज भी लोग लगाते हैं आस्था की डुबकी Ludhiana News
गुरुनानक देव जी अपने शिष्यों के 1515 ई में लुधियाना आए और गुरुद्वारा गऊघाट वाली जगह पर विश्राम करने लगे। उस वक्त लुधियाना पर जलाल खां लोधी शासन करते थे।
लुधियाना, जेएनएन। श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के लिए शहरवासियों में खूब उत्साह है। भले ही प्रकाश पर्व 12 नवंबर को है, लेकिन इसकी तैयारियां हर ओर जोरों पर हैं। हर मन प्यारे, मानवता की राह दिखाने वाले गुरु नानक देव जी के इस विशेष पर्व के उपलक्ष्य में हमारे संवाददाता राजेश भट्ट के साथ जानें लुधियाना के ऐतिहासिक गुरुद्वारों के बारे में तथा जायजा लें कि क्या तैयारियां चल रही हैं वहां...
गुरु नानक देव जी अपने शिष्यों के साथ जहां-जहां गए वहां लोगों को सत्कार्य करने के लिए प्रेरित करते रहे। जो उनकी शरण में आया उसे शरण दी और उसके कष्टों को दूर करते गए। अपने भ्रमण के दौरान श्री गुरुनानक देव जी लुधियाना शहर भी पहुंचे और उन्होंने सतलुज के किनारे विश्राम किया। इसे बाद में गुरुद्वारा गऊघाट का नाम दिया गया। यह स्थान आज भी लुधियानवियों के लिए आस्था का केंद्र है और हर बैसाखी पर यहां मेला लगता है और बाकायदा लोग सरोवर में स्नान करते हैं। गुरुद्वारा गऊघाट वाली जगह पर गुरुजी ने आधे दिन तक विश्राम किया था और उसके बाद यहां से ठक्करवाल के लिए चले गए।
जब गुरु जी ने सतलुज को सात कोस दूर जाने को कहा
जानकारी के अनुसार गुरुनानक देव जी अपने शिष्यों के 1515 ई में लुधियाना आए और गुरुद्वारा गऊघाट वाली जगह पर विश्राम करने लगे। उस वक्त लुधियाना पर जलाल खां लोधी शासन करते थे और उस दौर में गौ हत्या चरम पर थी। बताते हैं कि तब सतलुज दरिया लगातार लुधियाना शहर की तरफ कटाव कर रहा था और दरिया कटाव करते हुए बुड्ढा दरिया वाली जगह तक पहुंच गया था। वहां से शहर कुछ दूर रह गया था। जलाल खां को पता चला कि गुरुनानक देव जी वहां पर विश्राम कर रहे हैं तो वह उनके पास पहुंच गया और उसने गुरुजी से सतलुज के कटाव से बचाने की गुजारिश की। गुरुजी ने उसे कहा कि वह अपने राज्य में गौ हत्या बंद कर दे तो सतलुज के कटाव से उसका राज्य बच जाएगा। जलाल खां ने गुरुजी को वचन दिया और उसके बाद गुरुजी ने सतलुज को सात कोस दूर जाने को कहा। सतलुज यहां से सात कोस दूरी चले गए और एक धारा यहीं पर बहती रही। उसे बुड्ढा दरिया का नाम दिया गया। गुरुजी ने इस जगह पर गौ हत्या रुकवाई थी इसलिए इस गुरुद्वारे का नाम गुरुद्वारा गऊघाट रखा गया। आज भी गुरुद्वारा परिसर में सरोवर है और उसके पीछे बुड्ढा दरिया है। हर संक्रांति को बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां स्नान करने आते हें। प्रबंधकों का कहना है कि इतिहास से प्राप्त तथ्यों के मुताबिक गुरुनानक देव जी यहां पर करीब आधा दिन रुके थे और उसके बाद ठक्करवाल चले गए थे।
गांव नानकपुर जगेड़ा में स्थित गुरुद्वारा साहिब।
नानकपुर जगेड़ा को गुरुजी ने दिया था अपना नाम
नानकपुर जेगड़ा लुधियाना शहर से कुछ दूरी पर ही है। इस जगह पर प्रथम पातशाही श्री गुरुनानक देव और छठें पातशाही श्री गुरु हरगोबिंद साहिब आए थे। तब इस गांव का नाम झिंगड़ जगेड़ा था लेकिन गुरुजी जब इस गांव में आए तो उन्होंने इसे अपना नाम दे दिया और तब से इसका नाम ‘नानकपुर जगेड़ा’ है। इतिहास के अनुसार प्रथम पातशाही गुरुनानक देव जी नानक कटियाणा साहिब जाते समय झिंगड़ जगेड़ा गांव से होकर निकले। इस यात्रा के दौरान गुरुनानक देव जी इस गांव में रुके और छपड़ी के पास पीपल के एक पेड़ के नीचे बने कच्चे थड़े पर बैठ गए थे। वहां बैठकर गुरुनानक देव जी ने गांव के लोगों को अपने प्रवचन दिए। इसी दौरान उन्होंने गांव का नाम बदलकर नानकपुर जगेड़ा कर दिया था। इस गुरुद्वारा साहिब में भी सरोवर है और मान्यता है कि इस सरोवर में स्नान करने से व्यक्ति निरोग हो जाता है। गुरुद्वारा साहिब के अंदर उस स्थान पर थड़ा बनाया गया है जहां पर गुरुनानक देव जी बैठे थे। लोगों अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए इस थड़े पर खिलौने वाले हवाई जहाज चढ़ाते हैं। वैशाखी पर लोग यहां विशेष तौर पर स्नान करने आते हैं।
गांव ठक्करवाल में स्थित गुरुद्वारा साहिब।
ठक्करवाल में ठाकुर दास का अहम किया था खत्म
ठाकुर दास ने ठक्करवाल में डेरा बनाया और उसे ठक्करवाल का नाम दे दिया था। ठक्करवाल लुधियाना शहर से लगता हुआ गांव था जो कि अब शहर का हिस्सा ही बन चुका है। ठाकुरदास खुद को विद्वान समझता था और उसने यहीं पर अपनी गद्दी भी स्थापित कर दी थी। गुरुनानक देव जब गऊघाट से ठाकुरदास के डेरे में पहुंचे तो वह अपने आंगन में घूम रहा था। गुरुनानक देव जी को देखकर वह अपनी गद्दी पर बैठकर खुद को बड़ा दिखाने लगा लेकिन गुरुनानक देव जी उसकी तरफ पीठ करके बैठ गए। ठाकुर दास इस बात से क्रोधित हुआ लेकिन गुरुनानक देव जी ने उसके भावों को भांप लिया और गुरुबाणी का उच्चारण करने लगे। गुरुबाणी सुनकर ठाकुरदास ने गुरुजी को हरे राम बोलकर पुकारा जिस पर गुरुजी ने उसे सत करतार कह दिया। ठाकुर दास ने गुरुजी से पूछा कि क्या इन दोनों में कोई अंतर है। गुुरु जी ने कहा कि सत्य पहले भी था अब भी है और भविष्य में भी सत्य ही रहेगा। उसके बाद गुरुनानक जी ने ठाकुर दास का अहंकार खत्म किया। ठाकुर दास ने गुरुजी से खाना खाने का आग्रह किया। गुरुजी ने अपने चेलों के साथ इसी स्थान पर रोटी खाई और यहां से सुल्तानपुर के लिए रवाना हो गए। खालसा पंथ की स्थापना के बाद गुरुनाक देव जी जिन स्थानों पर गए उन स्थानों पर गुरु घर स्थापित किए गए। ग्रामीण लोगों के मुताबिक इस स्थान पर पहले छोटा सा गुरुद्वारा स्थापित किया गया लेकिन बाद में इसे विशाल स्वरूप दिया गया। गुरुद्वारा में बनाए गए सरोवर की मान्यता ऐसी है कि इसमें जो भी स्नान करता है उसके सभी रोग दूर हो जाते हैं। खास कर चर्म रोगी यहां दूर दूर से स्नान के लिए आते हैं। इस संबंध में ग्रामीण लोग अलग-अलग चमत्कारों की बात भी करते हैं।
गुरु नानक जी के प्रकाश पर्व पर यहां होंगे विशेष आयोजन
गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव को लेकर शहर के ऐतिहासिक गुरुद्वारों के अलावा भी सभी गुरुद्वारों में विशेष आयोजन किए जा रहे हैं। गुरुद्वारों को सुंदर लाइटों से सजाने तथा गुरुग्रंथ साहिब की बीड़ के आसपास फूलों से आकर्षक सजावट की जा रही है। ये आयोजन गुरुद्वारों में एक से 12 नवंबर तक होंगे। 10 नवंबर को सभी गुरुद्वारों में प्रकाशोत्सव को लेकर श्री अखंड पाठ शुरू हो रहे हैं, जिनकी समाप्ति प्रकाशोत्सव के दिन होगी। उसी दिन सभी गुरुद्वारों में विशेष लंगर लगेंगे। इसके अलावा हर साल की तरह नगर कीर्तन निकलेंगे। लुधियाना के आसपास के इलाकों के अलावा मुख्य नगर कीर्तन गुरुद्वारा श्री गुरु कलगीधर सिंह सभा से निकलेगा। साथ ही गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब, गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा माडल टाउन एक्सटेंशन, गुरुद्वारा सुखमनी साहिब दुगरी, गुरुद्वारा सब्जी मंडी में विशेष समागम होंगे। खासबात यह है कि इन समागमों को लेकर सिख पंथ के रागी जत्थों की जबरदस्त बुकिंग भी चल रही है और रागी एक-एक दिन में तीन-तीन समागमों में उपस्थित हो रहे हैं।
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