नेत्र बंद होने से पहले भीतर की आंख खोल लो : अचल मुनि
जैन सभा शिवपुरी के तत्वाधान में जारी चातुर्मास सभा में अचल मुनि ने संबोधित किया।
संस, लुधियाना : एसएस जैन सभा शिवपुरी के तत्वाधान में जारी चातुर्मास सभा में शुक्रवार को ओजस्वी वक्ता अचल मुनि ने कहा कि जब महल बनता है तो मानव बहुत खुश होता है। महल में खिड़की भी जरुरी है। खिड़कियों से ही हवा, प्रकाश आएगा। संस्कृत में खिड़की को गवाक्ष कहते है, गवाक्ष का अर्थ है, गाय की आंखें। जैसे शरीर में आंखें जरुरी है, वैसे महल में खिड़कियां बहुत जरुरी है। मानव महल में भी इंद्रियां रूपी खिड़की जरुरी है। इन इन्द्रियों का सदुपयोग करें। मानव के पास पांच इन्द्रियां है। कान, नाक, जीभ, नाक व त्वचा। कानों के द्वारा कभी किसी की निदा चुगली न करें। अरे निदा करने से ज्यादा पाप निदा सुनने वाले को लगता है। अगर आपको निदा सुनने में आनंद आता है तो कृपा मेरा एक सुझाव माने अपने कान के आगे लिखवा ले डस्टबिन और ऊपर लिख लें कृपा मेरा प्रयोग करे। अर्थात निदा करने वाला अपना कचरा अपने घर से निकाल कर आपके घर में डाल रहा है। और इन आंखों को भी थोड़ा कंट्रोल करे। यह आंख बड़ी नालायक है। किसी से लड़ जाए तो दुख देती है व चली जाए तो दुख देती है। जिदगी में अधिकतर गड़बड़ियां इसी आंख से शुरु होती है। तभी तो डंडे भले ही पीठ पर पडे़, तो भी आंसू तो आंख से ही निकलते है। बाहर की आंख मूंदे, इससे पहले भीतर की आंख खुल जानी चाहिए। वरना इतिहास में तुम्हारा नाम अंधों की सूची में दर्ज होगा। कभी भी टीवी देखते भोजन न करें व अखबार पढ़ते हुए चाय न पीएं, क्योंकि टीवी व अखबार को देखते हुए चाय व खाना खाने में हमारे अंदर में अश्लीलता, हिसा हमारे भीतर जाएगी। शीतल मुनि ने कहा कि जैन संत की साधना बड़े कमाल की होती है। जैन साधु के सिर पर छाता नहीं, बैंक में खाता नहीं, पैर में जूता नहीं। संत कभी भी किसी भी तरह की चोरी नहीं करता।