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गुरु वसंत तो साक्षात कल्पवृक्ष के समान हैं: जैनाचार्य नित्यानंद

भगवान श्री महावीर स्वामी के निर्वाण कल्याणक दीपावली पर्व के दिन 88 वर्ष पूर्व पंजाब के जीरा शहर में लाला अवधूमल नवलखा के घर श्रीमती बचनी देवी की कुक्षि से एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ।

By JagranEdited By: Published: Thu, 15 Nov 2018 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 15 Nov 2018 06:00 AM (IST)
गुरु वसंत तो साक्षात कल्पवृक्ष के समान हैं: जैनाचार्य नित्यानंद
गुरु वसंत तो साक्षात कल्पवृक्ष के समान हैं: जैनाचार्य नित्यानंद

संस, लुधियाना (वि): भगवान श्री महावीर स्वामी के निर्वाण कल्याणक दीपावली पर्व के दिन 88 वर्ष पूर्व पंजाब के जीरा शहर में लाला अवधूमल नवलखा के घर श्रीमती बचनी देवी की कुक्षि से एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ। जिसने पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरि म. के करकमलों से बालवय में ही दीक्षा धारण कर ली और मुनि श्री विचार विजय जी म. के शिष्य मुनि श्री वसंत विजय के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने कठोर तपस्या प्रारम्भ की। आचार्य श्री वसंत सूरि पहले ऐसे आचार्य हैं जो पिछले 51 वर्षो से लगातार वर्षीतप की आराधना कर रहे हैं। उन्होंने अपने जीवन में ज्ञान, ध्यान और तप की गहराई को प्राप्त कर लोकोपकार के लिए अनेक कार्य किए हैं। ऐसे तपस्वी सम्राट आचार्यश्री के 88वें जन्मोत्सव पर धर्म कमल हॉल में आयोजित धर्म सभा में विशिष्ट गुणानुवाद किया गया। सर्वप्रथम आचार्य श्री जयानंद सूरि जी म. ने कहा कि समुदायवडिल गुरुदेव ने आत्मकल्याण के साथ जन जन का भी उद्धार किया है। गुरु वल्लभ के हाथों से दीक्षा लेकर आज सारे जैन संघ समाज को छत्रछाया और मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं ।

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साध्वी प्रियधर्मा श्री म. ने कहा कि किसी किसी में एक आध विशेषता होती है किंतु तपस्वी सम्राट गुरुदेव में तो ज्ञानयोग, तप योग ओर ध्यान योग तीनों का संगम है। स्थानकवासी समाज के शीर्ष व्यक्तिव राम कुमार जैन श्रमण शाल वालों द्वारा अमित राय जैन बड़ौत वालों ने भी गुरुदेव के तपोमय जीवन का गुणगान किया और उन्हें महावीर प्रभु के शासन का तप सूर्य कहकर नवाजा।

गच्छाधिपति आचार्य श्री नित्यानंद सूरि जी म.ने कहा कि गुरु वसंत तो साक्षात कल्पवृक्ष के समान हैं। जिनकी वरदायिनी छत्र छाया में हमने ज्ञान - ध्यान के फलों को चखा है। जब से हमने दीक्षा ली, तभी से हमने इन्हें तपस्या में लीन देखा है। हमने 51 वर्ष पूर्व जब सपरिवार दीक्षा ली, तब हम तीनों भाई बहुत छोटे थे, तब से आज दिन तक तपस्वी गुरुदेव ने हमारे पालक बनकर हमें संभाला है। हजारों भक्तों पर इनका हाथ है। गुरु वल्लभ के हाथों से दीक्षित एक मात्र निशानी के रूप में आचार्य श्री वसंत सूरि म. हमारे मध्य विराजमान हैं। उन्हें उलब्धियां, सिद्धिया प्राप्त हैं। गुरुवर का जन्मदिन हम सभी के लिए अजन्मा बनने का संदेश लेकर आया है। खाने , पीने और मौज मस्ती में जीने से उद्धार नही होगा, बल्कि तपस्या ओर सेवा धर्म का पालन करने से आत्म कल्याण होगा । समितियों ने बांटें कंबल और स्वेटर, लगाया लंगर

श्री आत्मानन्द जैन महासभा उत्तरी भारत, श्री आत्मानन्द जैन चातुर्मास महासमिति के पदाधिकारियों ने गुरुवर के जन्मदिन के उपलक्ष्य में कंबल ओर स्वेटर बांटे एवं लंगर भी लगाया। आचार्य श्री वसंत सूरि म.ने कहा कि जन्मदिन तो तीर्थंकरों या स्वर्गस्थ महान गुरुओं के मनाने चाहिए। मैंने गुरु परंपरा की चार पीढि़या देखी हैं, किंतु नित्यानंद के रूप, स्वभाव और कार्यो में मुझे वल्लभ की झलक मिलती है। नित्यानंद ही पंजाब को संभालने में समर्थ हैं। मेरी अंतिम इच्छा भी यही है कि इन्हीं के पास मेरी अंतिम सास निकले।


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