सेहत व शिक्षा व्यापार बन कर रह गया : कंवलजीत खन्ना
जगराओं देश के संविधान मुताबिक शिक्षा व सेहत हर इंसान का बुनियादी अधिकार है।मगर सेहत व शिक्षा जैसे मल सवैधानिक अधिकारों को जैसे पैरों के नीचे बुरी तरह मसला जा रहा है। यह बात इंकलाबी केंद्र जत्थेबंदी के सचिव कंवलजीत खन्ना ने पत्रकारों से कही है।
जागरण संवाददाता, जगराओं
देश के संविधान के मुताबिक शिक्षा व सेहत हर इंसान का बुनियादी अधिकार है। मगर, आजादी के 73 वर्षो के बाद भी रोजगार की बात सपना ही है और सेहत व शिक्षा जैसे संवैधानिक अधिकारों को पैरों तेल कुचला जा रहा है। सेहत व शिक्षा महज व्यापार बन कर रह गया है। यह बात समाजसेवक एवं इंकलाबी केंद्र जत्थेबंदी के महासचिव कंवलजीत खन्ना ने पत्रकारों से कही है।
खन्ना ने इस बात पर चिता प्रकट की है कि पंजाब सरकार के फैसले के विपरीत हाईकोर्ट कोरोना काल में 70 प्रतिशत फीसें अभिभावकों से लेना व निजी स्कूलों के अध्यापकों को केवल 70 प्रतिशत वेतन देने का अंतिम आदेश जारी कर रही है। करोड़ों व अरबों का व्यापार करने वाले निजी स्कूल अपने प्रभाव के कारण अभिभावकों की जेबों पर डाका मार रहे हैं। प्रदेश में अभिभावकों की ओर से इस बारे में किए जा रहे रोष प्रदर्शनों का इंकलाबी केंद्र समर्थन करता है।
खन्ना ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान निजी अस्पतालों ने जिस तरह से अपने दरवाजे बंद किए हैं, उसने साबित किया है कि निजी का मतलब केवल और केवल मुनाफा है। मानवता व समाज कहीं भी जाए। देश के 80 से 90 प्रतिशत लोग थ्री, फाइव व सैवन स्टार अस्पतालों में इलाज करवाने का सपना भी नहीं देख सकते। कोरोना काल में निजी व सरकारी अस्पतालों द्वारा गैर कोरोना मरीजों के लिए बंद होने के कारण देश में सैंकड़ों मरीज असमय मौत मरे हैं।
जगराओं इलाके की ताजा मिसाल गांव डल्ला का सतविदर सिंह 52 वर्ष कैंसर का मरीज है, जिसे लुधियाना में एक निजी अस्पताल ने कोरोना डर के कारण भर्ती करने से मना कर मौत के मुंह में जाने के लिए विवश किया। उन्होंने कहा कि निजी अस्पतालों में हर तरफ मर्जी के दाम है। इन पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है।
उन्होंने कहा कि सेहत व शिक्षा दोनों मंडी की वस्तुएं बन गई हैं और आम नागरिक इन दोनों जगह पर लाचार है। उन्होंने स्थानीय जत्थेबंदियों को सेहत व शिक्षा के बारे में संघर्ष का एजेंडा बनाने का निमंत्रण दिया है।