बेहद खास हैं गुरुनानक माइक्रो उपवन, छोटी सी बगिया में पर्यावरण का बड़ा संदेश
पंजाब में पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाने को गुरुनानक माइक्रो उपवन विकसित किए जा रहे हैं। 160 वर्ग मीटर में तैयार हो रहे ये उपवन बेहद खास होंगे।
लुधियाना, [राजीव शर्मा]। पंजाब में पर्यावरण के लिए अनोखे अंदाज में अलख जगाने की मुहिम शुरू हुई है। राज्य में लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए गुरु नानक माइक्रो उपवन विकसित किए जा रहे हैं। सिख ईको संस्था द्वारा 160 वर्गमीटर जमीन को जैविक-वैज्ञानिक पद्धति से तैयार कर इस पर विभिन्न किस्म 550 दुर्लभ पौधे लगा माइक्रो फॉरेस्ट विकसित किए जा रहे हैैं। संस्था गुरुनानक पवित्र वन कहे जा रहे ये उपवन पंजाब में जगह-जगह तैयार करने का काम कर रही है।
गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व को समर्पित है ईको सिख संस्था की पर्यावरण हितैषी मुहिम
गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व (नवंबर,2019) को समर्पित इस पर्यावरण हितैषी मुहिम के तहत लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित किया जा रहा है। एक सूक्ष्म (माइक्रो) जंगल तैयार करने में अस्सी हजार से लेकर एक लाख रुपये तक का खर्च आता है।
ईको सिख संस्था के साउथ एशिया के प्रोजेक्ट मैनेजर रवनीत सिंह बताते हैं कि पंजाब में अब तक 23 गुरुनानक पवित्र जंगल बनाए जा चुके हैं। एक माह में करीब 25 और उपवन विकसित करने का लक्ष्य है। इस काम में स्वयंसेवी संगठनों, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों का भरपूर सहयोग और समर्थन समर्थन मिल रहा है।
जापान की मियावाकी तकनीक से तैयार कर रहे खास उपवन, 12 नवंबर को मनाया जाएगा प्रकाश पर्व
संस्था का दावा है कि इस मुहिम से जहां पक्षियों, जीव-जंतुओं, जीवाणुओं, पेड़ों की विलुप्त हो चुकी प्रजातियों को फिर से पनपने का अवसर मिलेगा, युवा भी अपनी धरोहर का नजदीक से अनुभव कर सकेंगे। जापान के वनस्पति वैज्ञानिक डॉक्टर कीरा मियावाकी ने सूक्ष्म वन बनाने की यह तकनीक विकसित की है। आम तौर पर पौधे दो फीट की दूरी पर लगाए जाते हैं, लेकिन इस तकनीक में चार श्रेणी के पौधे मसलन छोटे, मध्यम, ऊंचे एवं काफी ऊंचे पौधे नियत क्रम में लगाए जाते हैं।
इसमें ज्यादातर फलदार और फूल प्रजाति के पौधे होते हैं। भूमि का रखरखाव पूरी तरह जैविक पद्धति से किया जाता है, लिहाजा पौधों के पनपने की दर 99 फीसद है। इस तकनीक में पहले जमीन की परत को तीन फीट नीचे तक खोदा जाता है। फिर गोमूत्र, गोबर, गुड़ बेसन, दाल का आटा और जंगल की मिट्टी मिला कर जीवन अमृत घोल तैयार किया जाता है। पौधों को इस जीवन अमृत में भिगो कर रोपित किया जाता है।
पौधे लगाने के बाद उनके कुछ ऊपर छह इंच मोटी पराली की परत बिछाई जाती है। यह तापमान को लेकर कवच का काम करती है। मसलन बाहर यदि 48 डिग्री तापमान है तो पराली के नीचे 25 से 30 डिग्री तापमान रहता है। यदि सर्दी में बाहर पांच-दस डिग्री तापमान है तो पौधे के नीचे 25 से 30 डिग्री तापमान रहता है। इससे पौधे का विकास बेहतर होती है।
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यह स्थिति पौधे एवं जीवाणु के लिए बेहतर है। साथ ही स्थिर तापमान में मिट्टी की नमी बनी रहती है। ऐसे में एक पौधे को पनपने के लिए केवल आधा लीटर पानी रोजाना चाहिए। दो साल में यह सूक्ष्म वन विकसित हो जाता है। संस्था ने बताया कि लोग अपनी खाली पड़ी जमीन पर सूक्ष्म वन विकसित करवाने के लिए आगे आ रहे हैं।
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