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ज्ञान की ज्योति है गुरु, जिससे कई दीपक जलते है

कॉमनवेल्थ गेम्स मेडलिस्ट विकास ठाकुर ने कहा कि बलविंदर सिंह की बदौलत राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियां छू रहा हूं।

By Vipin KumarEdited By: Published: Sun, 05 Jul 2020 09:20 AM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2020 09:20 AM (IST)
ज्ञान की ज्योति है गुरु, जिससे कई दीपक जलते है
ज्ञान की ज्योति है गुरु, जिससे कई दीपक जलते है

लुधियाना, जेएनएन। हर व्यक्ति के जीवन में उसकी सफलता के पीछे गुरु का अहम रोल होता है। वह उसका मार्गदर्शन करते हुए उसे समाज में आगे बढऩे के लिए प्रेरित करता है। फिर चाहे कितनी भी चुनौतियों का सामना क्यों ना करना पड़े। 

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मेरी मां ही मेरी गुरु 
आज मैं जो कुछ भी हूं, उसका श्रेय मेरी मां दिवंगत राममूर्ति शर्मा को जाता है। मोहाली के गांव बागची में बचपन बीता। मां टीचर थीं। उनकी खुद की पढ़ाई में बहुत रुचि थी। मां ने सदैव मुझे पढऩे के लिए प्रेरित किया। हर बार नई किताब पढऩे को मिलती। यहीं से मेरी भाषा पर पकड़ बनी। मां ने पढऩे के लिए इतना प्रेरित कर दिया कि यह मेरी आदत ही बन गई। कुछ न कुछ अच्छा पढऩे से जीवन की सोच ने उड़ान भर ली। हर विषय पर किताब पढ़ी। सिविल सर्विसेज एग्जाम में यह पढ़ाई ही काम आई। इसलिए मेरे लिए तो मेरी मां ही गुरु है। हालांकि मेरी कामयाबी में योगदान देने वालों की फेहरिस्त लंबी है। जीवन के हर पढ़ाव पर बहुत से लोगों ने मेरी सफलता में योगदान डाला, लेकिन मेरा मानना है कि मेरी मां मेरी प्रथम गुरु है।
वरिंदर शर्मा, डिप्टी कमिश्नर


डॉ. रीता बावा को मानती हूं आदर्श

बच्चा जब स्कूल जाते है तो कई शिक्षकों से मिलते है पर एक ऐसा गुरु भी होता है, जिसे आप अपना आदर्श मानते हो। मैं जालंधर के कन्या महाविद्यालय से पढ़ी हूं और यहीं से पोस्टर ग्रेजुएशन भी की। मैं स्वर्गीय डॉ. रीता बावा को अपना आदर्श मानती हूं। मैं लंबे समय तक उनकी छात्रा रही हूं। पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने नौकरी की शुरुआत कर दी थी, पर डॉ. रीता के प्रेरित करने पर मैंने पीएचडी उनके ही अधीन की। वह एक ऐसी हस्ती थी जो खुद तो त्याग करती थी और दूसरों को भी मंजिल फतेह करने के लिए प्रेरित करती थी। वह अच्छी वक्ता थी और आज मैं जो भी हूं, उन्हीं की बदौलत हूं। मैं कहूंगी कि वो ऐसी द्रोणाचार्य थीं जो एकलव्य तो बनाती थी लेकिन कभी अंगूठा नहीं कटवाती थीं बल्कि हाथ पकड़ कर साथ चलती थी।
डॉ. नरिंदर कौर संधू, पूर्व प्रिंसिपल रामगढिय़ा गल्र्स कॉलेज


डॉ. वर्मा के मार्गदर्शन से ही आगे बढ़ रही

मैं आज जिस पद पर हूं, इसका सारा श्रेय अपने आदर्श को देना चाहती हूं। मैं बताना चाहूंगी कि डॉ. चमन लाल वर्मा डीन, चेयरपर्सन एचपी यूनिवर्सिटी शिमला मेरे आदर्श हैं। वर्तमान में वह इस पोस्ट से रिटायर्ड हो चुके हैं पर मैं इन्हीं की बदौलत आज इस मुकाम तक पहुंची हूं। मैंने डॉ. वर्मा के अधीन ही म्यूजिक में पीएचडी की है और समय-समय पर उनके मार्गदर्शन से ही आगे बढ़ती रही हूं। डॉ. वर्मा का हमेशा से ही शांत स्वभाव रहा है। मैं कहूंगी कि मुझ जैसे बहुत से अन्य विद्यार्थियों का भविष्य भी इन्होंने बिना लालच के बनाया है। वह एक टीचर ही नहीं बल्कि मानवीय संस्कारों से भरपूर, अध्यात्मिक गुणी हैं। मैंने अपने गुरू से संगीत भी सीखा। इस दिन के लिए मेरा अपने आदर्श व गुरु को कोटि-कोटि नमन।
डॉ. सविता उप्पल, प्रिंसिपल आर्य कॉलेज फॉर ब्वायज


गुरु ने दी सीख झगड़े से नहीं तथ्यों से आगे बढ़ो

मुझे दस साल पहले का दिन आज भी याद है। जब मेरे गुरु वीपी चोपड़ा जिन्होंने व्यापार का पाठ पढ़ाने के साथ-साथ एसोसिएशन और समाज के हित में काम करने के गुर सिखाए। उन्होंने सारा जीवन फोपसिया, फासी सहित कई एसोसिएशनों का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन कभी खुद पर दाग नहीं लगने दिया और असूलों पर खड़े रहने की बात कही। मुझे याद है एक दिन हम स्टील सचिव की बैठक में गए, तो मैं अधिकारियों से किसी मुद्दे पर उलझ गया। इस पर वीपी चोपड़ा ने कहा कि कभी अधिकारियों या किसी से भी लड़ाई-झगड़े से तथ्यों की लड़ाई नहीं जीती जा सकती। इसलिए किसी भी मुद्दे पर बोलने से पूर्व उसका पूरा ग्राउंड वर्क करना चाहिए। तब से अब मैं किसी भी मुद्दे पर बोलने से पहले उसकी पूर्ण जानकारी प्राप्त करता हूं।
बदीश जिंदल, प्रधान, ऑल इंडस्ट्री ट्रेड फोरम


कॉमनवेल्थ में पदक के लिए गुरु बलविंदर का अहम रोल

एक खिलाड़ी की सफलता के पीछे कई लोगों का योगदान होता है, लेकिन मेरी उपलब्धियों के पीछे मेरे कोच बलविंदर सिंह का अहम रोल है। उनकी बदौलत राष्ट्रीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियां छू रहा हूं। उन्होंने खेल में यही सिखाया कि हमेशा मेडल के पीछे मत दौड़े, बल्कि परफॉर्मेंस अच्छी देने की कोशिश करो। यह सीख ली और तब से मैंने सात बार नेशनल वेट लिफ्टिंग चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। वर्ष 2011 में जूनियर नेशनल चैंपियनशिप जीतने के बाद पीछे कभी मुड़कर नहीं देखा। अभी तक दो बार कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल, कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में मेडल, सात बार नेशनल चैंपियन व नेशनल रिकॉर्ड होल्डर बनने का गौरव गुरु व कोच बलविंदर सिंह की बदौलत ही प्राप्त हुआ है। कोच बललिंदर अब रिटायर्ड हो चुके है, लेकिन उनके साथ बिताए पलों की सीख आज भी कानों में गुनगुनाती रही है।
विकास ठाकुर (कॉमनवेल्थ गेम्स मेडलिस्ट)


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