किसानों के लिए अच्छी खबर... आसान हुआ पराली प्रबंधन, ब्रिकेट बनाकर करें कमाई
पराली का धुंआ कोरोना काल में आग में घी का काम कर रहा है। लेकिन कुछ किसान ऐसे हैं जो इसेे जलाने के बजाय इससे कमाई कर रहे हैं। पराली सेे ब्रिकेट बनाई जा सकती है। यह कोयले का अच्छा विकल्प है।
जगराओं [बिंदु उप्पल]। कोरोना महामारी के बीच पराली का धुआं आग में घी डालने का काम कर रहा है। श्वास रोगों के लिए यह जानलेवा साबित हो सकता है। ऐसे में सरकार, किसान और विशेषज्ञ पराली की संभाल के नए-नए विकल्प खोज रहे हैं।
लुधियाना के गांव लहरां के किसान व कारोबारी बलजीत सिंह ने पराली से ब्रिकेट (ईंधन के लिए ईंट) बनाने का प्लांट लगाकर कोयले का बेहतरीन विकल्प दिया है। इस प्लांट में रोज करीब पचास टन ब्रिकेट बनाई जा रही है। उनका दावा है कि पंजाब में ब्रिकेट बनाकर पराली की समस्या को खत्म किया जा सकता है, लेकिन इसके प्लांट बहुत कम हैं। पंजाब में धान सीजन में दो करोड़ टन से भी ज्यादा पराली निकलती है, जबकि मुश्किल से 20 से 25 फीसद पराली की ही प्रोसेसिंग हो पाती है। ज्यादातर पराली खेतों में ही जलाई जाती है।
राइसिला हेल्थ फूड्स लिमिटेड के चेयरमैन डा. एआर शर्मा के अनुसार पराली जलाने के लिए बॉयलर में बदलाव की जरूरत पड़ती है। बाजार में अभी जरूरत के अनुसार ब्रिकेट उपलब्ध नहीं हैं। खेत से पराली को लाना व संभालना मुश्किल है। इसके लिए काफी जगह की जरूरत होती है। इसमें आग लगने का खतरा अधिक रहता है। ब्रिकेट कोयले का अच्छा विकल्प हो सकता है। इसे स्टोर करना आसान है। इसकी उपलब्धता काफी कम है। श्रेयांस पेपर मिल के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनिल कुमार के अनुसार औद्योगिक सेक्टर में पराली का ईंधन के रूप में उपयोग काफी कम है। इसे बढ़ाने की जरूरत है।
कैसे बनती है ब्रिकेट
बलजीत के इस प्लांट में सालाना 18 हजार टन पराली से ब्रिकेट तैयार की जा रही हैं। उन्होंने तीन साल पहले यह पर्यावरण मित्र प्लांट लगाया था। पहले खेतों से पराली को इकट्ठा किया जाता है। इसकी नमी सुखा कर पराली का पाउडर बनाया जाता है। फिर बेलर की मदद से बंडल बनाया जाता है। इसका दोबारा पाउडर बनाया जाता है। मशीन से इसे ब्रिकेट का रूप दिया जाता है। इसको ग्रीन फ्यूल भी कहा जाता है।
कोयले से सस्ती
बलजीत का दावा है कि उद्योगों में बॉयलर में धान के छिलके, कोयले एवं अन्य ईंधन की जगह पराली के ब्रिकेट का उपयोग हो सकता है। सरकार को इसे प्रोत्साहन देना चाहिए। अभी कोयला नौ से बारह हजार रुपये प्रति टन तक बिक रहा है। वहीं, पराली के ब्रिकेट की कीमत छह हजार रुपये प्रति टन है।
उनका कहना है कि वह किसान से 80 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से पराली खरीद रहे हैं। बलजीत कहते हैं, मैंने केवल शुरुआत की है, रास्ता दिखाया है। अब लोग आगे आएं और इस तकनीक को सूबे के कोने-कोने में पहुंचाएं।इसके लिए वह मशीनरी व तकनीक भी मुहैया करा रहे हैं। आसपास के आठ-दस गांवों के किसानों को उन्होंने जागरूक किया। इस प्रोजेक्ट पर 50 से 60 लाख रुपये का खर्च आता है।