पंजाब को मक्की की बेहतरीन किस्में देने वाले डॉ. खैहरा नहीं रहे, मोहाली में ली अंतिम सांस
डॉ. खैहरा पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। वह ब्रेन ट्यूमर की बीमारी से जूझ रहे थे। हाल ही में इसका ऑपरेशन भी करवाया था। परिवार में उनकी पत्नी अमरजीत कौर, दो बेटिया व एक बेटा है।
जासं, लुधियाना : पंजाब को मक्की व कॉटन की बेहतरीन किस्में देने वाले डॉ. अमरजीत सिंह खैहरा दुनिया को अलविदा कह गए। उन्होंने मोहाली में अंतिम सास ली। वह 84 साल के थे। डॉ. खैहरा पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। वह ब्रेन ट्यूमर की बीमारी से जूझ रहे थे। हाल ही में इसका ऑपरेशन भी करवाया था। परिवार में उनकी पत्नी अमरजीत कौर, दो बेटिया व एक बेटा है। डॉ. खैहरा का नाम देश के नामी मेज (मक्की) ब्रीडर में लिया जाता है। वह वर्ष 1994 से 1998 के दौरान पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चासलर भी रह चुके हैं। पीएयू में विभिन्न पदों पर रहने के दौरान उन्होंने मक्की की वैरायटी अगेती 67, नवजोत, प्रकाश, प्रभात, संगम, पारस सहित कई बेहतरीन किस्में तैयार की। जो देश के कई राज्यों में लगाई जाती है। इसके अलावा कॉटन की जी 27 वैरायटी भी इन्होंने विकसित की। शोध के क्षेत्र में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1987 में प्रतिष्ठित आइसीएआर रफी अहमद किदवई मेमोरियल अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा इंडियन सोसायटी ऑफ जेनेटिक्स एंड प्लाट ब्रीडिंग की ओर से वर्ष 1991-92 में डॉ. जोगिंदर सिंह मेमोरियल अवॉर्ड भी प्रदान किया गया। इसी के साथ ही कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी शोधों को सराहा व सम्मानित किया गया। डॉ. खैहरा को इंडियन नेशनल साइंस अकादमी की फेलोशिप भी मिल चुकी है। जैसे ही डॉ. एएस खैहरा के निधन की खबर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में पहुंची, तो शोक की लहर दौड़ गई। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वीसी डॉ. बलदेव सिंह ढिल्लों ने डॉ. खैहरा के निधन पर शोक जताया। उन्होंने कहा कि डॉ. खैहरा अंतरराष्ट्रीय स्तर के मेज ब्रीडिंग स्पेशलिस्ट थे। उन्होंने काफी लंबे समय तक उनके साथ काम किया। वह हर वक्त कुछ न कुछ सोचते रहते थे और नया करते थे। 1934 में जन्मे डॉ. खैहरा प्रतिष्ठित परिवार के चिराग थे
15 जून वर्ष 1934 को जन्मे डॉ. खैहरा माझा के नामवर गाव सेरों के प्रतिष्ठित परिवार के रोशन चिराग थे। उन्होंने वर्ष 1953 में गवर्नमेंट कॉलेज लुधियाना से बीएससी, वर्ष 1959 में पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से एमएससी और वर्ष 1968 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय से पीएचडी की। इस दौरान वर्ष 1956-61 के दौरान रिसर्च असिस्टेंट (कॉटन ब्रीडिंग) से अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद वर्ष 1961 से 1969 तक उन्होंने असिस्टेंट कॉटन ब्रीडर के तौर पर सेवाएं दी। वर्ष 1969 से 1974 तक मक्की ब्रीडर, वर्ष 1974 से वर्ष 1984 तक सीनियर मक्की ब्रीडर कम हैड डिपार्टमेंट ऑफ प्लाट ब्रीडिंग के तौर पर कार्यरत रहे। वहीं वर्ष 1984 से 1988 तक एसोसिएट डायरेक्टर ऑफ रिसर्च और वर्ष 1988 से 1993 तक एडिशनल डायरेक्टर ऑफ रिसर्च भी रहे। वर्ष 1994 से 1997 तक पीएयू के वीसी भी रहे। डॉ. खैहरा ने मक्की व कॉटन के क्षेत्र में जो योगदान दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। यही नहीं, उन्होंने सीनियर सिटीजन एसोसिएशन पंजाब की स्थापना करके बुजुगरें के लिए काफी कुछ किया। उनके निधन से बहुत बड़ी क्षति पहुंची है।