क्रियात्मक रूप में कठिन है क्षमा
ऑल इंडिया जैन कांफ्रेंस के मार्गदर्शक रामकुमार जैन ने कहा कि क्षमा जितना कहने सुनने व लिखने में सरल प्रतीत होती है उतना ही क्रियात्मक रूप में कठिन है।
संस, लुधियाना : ऑल इंडिया जैन कांफ्रेंस के मार्गदर्शक रामकुमार जैन ने कहा कि
क्षमा जितना कहने, सुनने व लिखने में सरल प्रतीत होती है, उतना ही क्रियात्मक रूप में कठिन है। जब जीवन कटुता, वैमनस्य व असहिष्णुता से भरा हो तो क्षमापना की बात कौन करें। मानव एक सामाजिक प्राणी है। विचरण करते समय उससे अनेकों भूल और कटुता उत्पन्न हो सकती है। परस्पर कटुता को दूर करने के लिए भगवान महावीर ने पर्व पर्यूषण की अवधारणा समाज के समक्ष प्रस्तुत की। आध्यात्मिक दृष्टि से इसका अर्थ है, आत्मा के समीप निवास करना। ऐसा वही कर सकेगा, जो परस्पर वैरा-विरोधन को शांत करेगा।
जैनागम कल्पसूत्र में स्पष्ट उल्लेख है, आषाढ़ चातुर्मास के आरंभ से मास 20 रात्रि व्यतीत होने और 70 दिन शेष रहने पर भगवान महावीर ने पर्यूषण पर्व की अराधना की। पर्यूषण एक आलौकिक पर्व है, जिसकी आठ दिन तक पूजा की जाती है। श्रावक श्राविकाएं इन दिनों विशेष तप, व्रत व अनुष्ठान करते हैं। समापन पर संवत्सरी पर्व का प्रादुर्भाव होता है। इस पर हम एक दूसरे से क्षमा याचना करते हैं। देखना यह है कि हमारी यह क्षमा याचना औपचारिक है अथवा वास्तविक। जो व्यक्ति ह्दय से क्षमायाचना करता है, वह इस पर्व को मनाने का अधिकारी है। यह पर्व मानव मात्र के लिए है। इसे विश्व क्षमापना दिवस के रूप में मनाना चाहिए। आज एक वर्ष बाद फिर यह पर्व हमें कह रहा है कि भीतर क्रिचित परिवर्तन तो करो, फिर देखो तुम्हारा जीवन कितना सुखद, आनंदित व विकसित होगा।
भगवान महावीर के समय में ज्ञान, स्वयं को जानने, परखने और बदलने की कला मिली। अध्यात्मिक जगत में व्यक्ति पूजा जोरों पर थी। वाम मार्गियों का समाज पर प्रभाव था। आंतरिक पवित्रता का स्थान पाखंड ने ले लिया था। तर्कशास्त्री केवल शुष्क तर्क द्वारा अपनी व कथित मान्यताओं से भ्रम फैला रहे थे। ऐसे समय में भगवान महावीर ने पुरुषार्थवाद की अवधारणा जनमानस के समक्ष रखी। उन्होंने कहा, हे जीव। उठो पुरुषार्थ करो, तुम स्वयं अपने निर्माता हो। इस बार 15 से 22 अगस्त तक पर्यूषण पर्व है। कोरोना वायरस के बीच सरकार की गाइडलाइंस अनुसार ही कार्यक्रम तय किए जाएंगे।