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कोरोना से संकट में यूपी-बिहार के लोक कलाकार, साज घरों में 'कैद', सुर भये उदास

पंजाब में भोजपुरी गीतों से पूर्वांचलियों को अपनी मिट्टी से जोड़ने वाले लोक कलाकारों की कोरोना संकट में हालत दयनीय है। तीन माह से काम बंद होने से इनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 08 Jun 2020 10:01 AM (IST)Updated: Mon, 08 Jun 2020 10:01 AM (IST)
कोरोना से संकट में यूपी-बिहार के लोक कलाकार, साज घरों में 'कैद', सुर भये उदास
कोरोना से संकट में यूपी-बिहार के लोक कलाकार, साज घरों में 'कैद', सुर भये उदास

लुधियाना [अविनाश कुमार मिश्र]। लुधियाना में मिनी बिहार और मिनी उत्तर प्रदेश बसता है। दोनों प्रदेशों से आए लोग यहां विभिन्न व्यवसायों में कार्यरत हैं। ये हथौड़े चलाने से लेकर हारमोनियम तक बजाने में माहिर हैं। जहां फैक्ट्रियों में खून-पसीना बहाते हैं, वहीं कई तो फैक्ट्रियों के मालिक भी बन चुके हैं। वैसे भी जहां एक विशेष क्षेत्र के लोग बड़ी संख्या में बस जाएंं तो जाहिर सी बात है कि उनकी लोक संस्कृति और लोकगायकी का भी वहां प्रसार-प्रचार होगा। बिहार और उत्तर प्रदेश की लोक गायकी लुधियाना में जगह-जगह सुनने को मिल जाएगी, लेकिन लॉकडाउन के चलते इन लोक गायकों और लोक कलाकारों का तीन माह से काम बंद है और अब इनका जीविकोपार्जन मुश्किल हो गया है।

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कोरोना वायरस की महामारी से जंग में लॉकडाउन लगा तो धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लोकगीत और संगीत पेश कर लोगों को अपनी संस्कृति से जोड़ने वाले इन लोक कलाकारों के कार्यक्रम भी होने बंद हो गए हैं। ये इस समय बेरोजगार है। इनके संगीत के साज घर में बंद हैं तो सुर में उदासी छा गई है। मन बहलाने के लिए सोशल मीडिया पर गीत रिकॉर्ड कर डाल देते हैं।

लाख टके की बात यह है कि पेट के लिए रोटी चाहिए। जब कमाई ही नहीं होगी तो घर का खर्च कैसे चलेगा। ये गायक कहते हैं कि जिस तरह सरकार ने अन्य वर्गों के लिए राहत पैकेज जारी किया है, वैसे ही लोक गायकों और लोक कलाकारों के लिए कुछ करे। जिस तरह मॉल, रेस्टोरेंट और धार्मिक स्थल खोलने की अनुमति दे दी गई है, वैसे ही हमें 50 से 100 श्रोताओ के साथ कार्यक्रम करने की अनुमति दी जाए।

मुकेश ने मुफलिसी से जीती थी जंग, अब कोरोना से तंग

पूर्वांचल के राजगायक के नाम से विख्यात सीतामढ़ी के मुकेश कुमार 14 साल की उम्र में फैक्ट्री में काम करने अपने बड़े भाई के साथ लुधियाना आए थे। यहां गीत-संगीत में रुचि जगी तो वह धार्मिक गीत गाने लगे। आज इनकी धार्मिक गीत गायकी में अलग पहचान बन चुकी है। ये हिंदी व भोजपुरी सहित 12 भाषाओं में गीत गाते हैं। कोरोना काल में इनका भी काम बंद है। कहते हैं कि कमाई बंद है तो चिंता बढ़ गई है। संगीत के साजों को देखता हूं तो मन उदास हो जाता है। अब सरकार से ही आस है कि वह हम लोगों के लिए कुछ करे।

हीरो साइकिल में काम छोड़ संगीत की दुनिया में बनाया मुकाम, अब तंगहाल

बिहार निवासी मनोज ने 14 वर्षों से धार्मिक कार्यक्रमों में गीतों की प्रस्तुति से अपना अलग मुकाम बनाया है। संगीत तथा भक्ति से लगाव ज्यादा होने के कारण उन्होंने हीरो साइकल लिमिटेड से नौकरी छोड़ दी। उनकी पत्नी सुमन भी एक अच्छी लोक गायिका हैं। अब कोरोना की महामारी में तीन माह से काम बंद है तो इनके सामने भी संकट आ गया है।

मजबूरी में निजी कंपनी में काम कर रहीं सिमरन

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के रामपुर-गोपालपुर के गोनरपुरा की सिमरन मिश्रा कई वर्षों से भक्ति व धार्मिक के अलावा लोकगीतों से भोजपुरी संस्कृति की छटा बिखेर रही हैं। इस समय काम बंद होने से जीविकोपार्जन के लिए वह एक निजी कंपनी में काम कर रही हैं। वह कहती हैं कि सरकार हम जैसे लोक कलाकारों की भी सुध ले।

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