जश्न-ए-साहिर: 34 साल में पहली बार सिर्फ महिलाओं ने सजाई महफिल, लूटी वाहवाही
34 सालों में ऐसा पहली बार हुआ जब मुशायरे में केवल महिला शायरों ने गजल नजम और कलाम की महफिल सजाई गई।
जेएनएन, लुधियाना। मैं चाहती थी उसको बचा लूं किसी तरह, अफसोस मुझको लोगों ने कातिल समझ लिया। आसान रास्ते को भी मुश्किल समझ लिया, तुमने ये किस पड़ाव को मंजिल समझ लिया। स्टेज पर एक के बाद एक कलाम, गजल और नजम पेश की गई। ऐसी महफिल गुरु नानक देव भवन में अदीब इंटरनेशनल (साहिर कल्चरल अकादमी) की तरफ से साहिर लुधियानवी की याद में आयोजित 47वें अंतरराष्ट्रीय मुशायरे जश्न-ए-साहिर में सजी। 34 सालों में ऐसा पहली बार हुआ जब मुशायरे में केवल महिला शायरों ने गजल, नजम और कलाम की महफिल सजाई। दिल्ली से पहुंची अला दहलवी ने प्यार हिस्सों में बंट नहीं सकता.. प्यार रास्ते से हट नहीं सकता...कौन समझाए बेवकूफों को.. प्यार पानी है कट नहीं सकता। एक के बाद एक इरशाद की आवाज आती गई और शायरी की महफिल सजती गई।
इलाहाबाद से पहुंची ताजवर सुल्ताना ने क्या ताज उन्हें अपना कोई हाल सुनाए जो सुन रे भी कह दें कि सुना कुछ भी नहीं...गजल पेश की। लखनऊ से पहुंची रिफअत शाहीन ने हम भी सीने में धड़कता हुआ दिल रखते हैं...सिफे नाजुक हैं मगर माले गनीमत तो नहीं...शेयर अरज किया। इसी तरह गजल, नजम, कलाम का यह सिलसिला जारी रहा।
गुरुनानक भवन में आयोजित मुशायरे में उपस्थित लोग।
शायरी से इन्होंने सजाई महफिल
आगरा की हिना तैमूरी, बदायूं की रूपा विशाल, बरेली की सिया सचदेवा, यूपी से पहुंची चांदनी पांडे, मुंबई की प्रज्ञा ने शायरी की महफिल सजाई। श्रोताओं से एंकरिंग कर रहे मोईन शादाब भी रूबरू हुए। अदीब इंटरनेशनल के चेयरमैन डाॅ. केके धीर, डाॅ. नरिंदर कौर संधू आदि उपस्थित रहे।
शायरी में पहले था महबूब और अब आ गई सियासत
अलग-अलग शहरों से पहुंची महिला शायरों से जब मौजूदा शायरी संबंधी पूछा गया तो सभी ने कहा कि वर्तमान शायरी में सियासत आ गई है। पहले शायरी में जहां महबूब से बात होती थी, उसका स्वरूप अब थोड़ा बदल गया है। शायरी इशारे में होनी चाहिए, इसमें किसी का नाम नहीं आना चाहिए।