लुधियाना की जामा मस्जिद रही है स्वतंत्रता संग्राम की गवाह, अंग्रेजों के खिलाफ जारी किया था पहला फतवा
लुधियाना की जामा मस्जिद का इतिहास 132 साल पुराना है। यह लुधियाना की ऐतिहासिक इमारतों में भी शामिल है। यह देश के स्वतंत्रता संग्राम की गवाह रही है। वर्ष 1882 में अंग्रेज सरकार की हिमायत करने वाले टोड़ियों के विरुद्ध भी फतवा यहीं से जारी किया गया था।
जागरण संवाददाता, लुधियाना। शहर के पुराने भीड़भाड़ वाले बाजार फील्डगंज में लाल रंग की ऐतिहासिक मस्जिद दूर से ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। लगभग 131 साल पुरानी मस्जिद स्वतंत्रता संग्राम की साक्षी रही है। इस ऐतिहासिक मस्जिद का निर्माण लुधियाना से राष्ट्रीय नायक बनकर उभरे महान स्वतंत्रता सेनानी रईस उल अहरार मौलाना हबीब उर रहमान लुधियानवी प्रथम के दादा मौलाना शाह मोहम्मद लुधियानवी ने करवाया था। इससे पहले शाही मस्जिद लुधियाना के पुरानी सब्जी मंडी चौक में नगर निगम के साथ होती थी, बाद में इसे जामा मस्जिद में शिफ्ट किया गया। वर्ष 1891 में बनी इस मस्जिद से सभी गतिविधियां संचालित होने लगी।
प्रथम शाही इमाम मौलाना शाह अब्दुल कादिर लुधियानवी ने वर्ष 1857 की जंग-ए-आजादी में पंजाब के इंकलाबियों को एकत्रित कर शहर के लोधी किले से अंग्रेजों को भगाया था। अंग्रेजों के खिलाफ देश की आजादी का पहला फतवा भी यहां से जारी किया था। मौलाना की इस वीर गाथा का जिक्र वीर सावरकर ने अपनी पुस्तक ‘1857 का स्वतंत्रता संग्राम’ में भी किया है। वर्ष 1882 में अंग्रेज सरकार की हिमायत करने वाले टोड़ियों के विरुद्ध भी फतवा यहीं से जारी किया गया था।
वर्ष 1932 में ‘हिंदूू पानी, मुस्लिम पानी’ नाम की अंग्रेज की चाल को भी यहीं से खत्म कर देश में भाईचारे का संदेश दिया गया था। आजादी के समय इस ऐतिहासिक जामा मस्जिद से पाकिस्तान बनाने की उठी आवाज के खिलाफ विरोध जताया गया था और लोगों ने खुद पाकिस्तान में जाने से मना कर दिया था।पंजाब के शाही इमाम इस मस्जिद से आज राज्य भर के मुस्लिम समुदाय के लिए महत्वपूर्ण निर्देश जारी करते हैं। खासबात यह है कि इस मस्जिद से संबंध रखने वाले लुधियाना के विभिन्न इस्लामी विद्वानों ने कई पुस्तकें लिखी हैं जो आज भी एशिया के सभी मदरसों में पढ़ाई जाती हैं।
लुधियाना की जामा मस्जिद का इतिहास 132 साल पुराना है। यह लुधियाना की ऐतिहासिक इमारतों में भी शामिल है। यह देश के स्वतंत्रता संग्राम की गवाह रही है। इसका निर्माण मौलाना शाह मोहम्मद लुधियानवी ने करवाया था। वे स्वतंत्रता सेनानी रईस उल अहरार मौलाना हबीब उर रहमान लुधियानवी प्रथम के दादा थे। यहीं से आज भी प्रदेश की सभी मस्जिदों को निर्देश जारी होते हैं। इसका इतिहास में अपना एक खास महत्व है।
मौलाना हबीब उर रहमान लुधियानवी ने काटी थी जेल
आजादी के बाद इस ऐतिहासिक मस्जिद को वर्ष 1947 के बाद संभालने वाले स्वतंत्रता सेनानी रईस उल अहरार मौलाना हबीब उर रहमान लुधियानवी प्रथम की भी आजादी के लिए कुर्बानियां भी किसी से कम नहीं हैं। मौलाना ने अंग्रेजों के खिलाफ 14 साल जेल काटी और अपने समय में स्वतंत्रता संग्राम के राष्ट्रीय नेताओं में से एक थे। मौलाना हबीब आजादी के महान नायक सुभाष चंद्र बोस, पंडित जवाहर लाल नेहरू, पंथ रत्न मास्टर तारा सिंह, नामधारी गुरु सतगुरु प्रताप सिंह, पंजाब केसरी लाला लाजपत राय, भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह से संबंध रहे।
सभी मस्जिदों के लिए ईद और रमजान का एलान होता है यहां से
आजादी के बाद यह मस्जिद पंजाब के मुसलमानों का मुख्य धार्मिक केंद्र बनी। ईद और रमजान के चांद का एलान यहीं से होता है। सभी शहरों की मस्जिदें जामा मस्जिद से संबंधित हैं। प्रदेश के मुसलमानों के लिया फतवा यहीं से जारी होता है। जामा मस्जिद से जरूरतमंद लोगों की मदद, राशन वितरण, मरीजों को मदद दी जाती है लेकिन इस्लामी शिक्षा के आधार पर इन कामों का प्रचार नहीं किया जाता है। पूर्व शाही इमाम मौलाना हबीब उर रहमान सानी ने पंजाब भर में भाईचारा बनाए रखने में हमेशा मुख्य भूमिका निभाई। 10 सितंबर, 2021 को उनका निधन हो गया और उसके बाद मौलाना मोहम्मद उस्मान रहमानी लुधियानवी नौवें शाही इमाम बने हैं।