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फास्टनर उद्योग पर भी आर्थिक मंदी की मार, उद्यमियों ने सरकार ने की लेवल प्लेइंग फील्ड की मांग Ludhiana News

उद्यमियों का तर्क है कि सूबे में महंगी जमीन महंगी बिजली पोर्ट से दूरी अधिक उत्पादन लागत के चलते यहां के उत्पाद महंगे साबित हो रहे हैं।

By Edited By: Published: Wed, 13 Nov 2019 07:30 AM (IST)Updated: Wed, 13 Nov 2019 12:02 PM (IST)
फास्टनर उद्योग पर भी आर्थिक मंदी की मार, उद्यमियों ने सरकार ने की लेवल प्लेइंग फील्ड की मांग Ludhiana News
फास्टनर उद्योग पर भी आर्थिक मंदी की मार, उद्यमियों ने सरकार ने की लेवल प्लेइंग फील्ड की मांग Ludhiana News

लुधियाना, जेएनएन। आर्थिक मंदी की मार से फास्टनर उद्योग भी अछूता नहीं है। सस्ते आयात एवं उत्पादन लागत अधिक होने के कारण उद्यमी बाजार की चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। नतीजतन घरेलू एवं ओवरसीज मार्केट में टिके रहना मुश्किल हो रहा है। उद्यमियों का तर्क है कि सूबे में महंगी जमीन, महंगी बिजली, पोर्ट से दूरी, अधिक उत्पादन लागत के चलते यहां के उत्पाद महंगे साबित हो रहे हैं। इसके अलावा चीन से आ रहे नट बोल्ट पंद्रह से बीस फीसद सस्ते हैं। उद्यमियों ने सरकार से आग्रह किया है कि इंडस्ट्री को लेवल प्लेइंग फील्ड उपलब्ध कराया जाए। फ्रेट सब्सिडी दी जाए और टेक्नोलाजी अपग्रेडेशन फंड का लाभ इस उद्योग को भी दिया जाए। इससे उद्यमी बाजार में अपने पांव जमा पाएंगे।

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उल्लेखनीय है कि फास्टनर उद्योग के तहत नट बोल्ट इत्यादि का उत्पादन किया जा रहा है। लेकिन आर्थिक सुस्ती के कारण आर्डर कम आ रहे हैं। खास कर ऑटो सेक्टर में पिछले करीब एक साल से चल रही सुस्ती का सीधा असर फास्टनर उद्योग पर हो रहा है। परिणाम स्वरूप इंडस्ट्री में उत्पादन पचास फीसद तक कम हो रहा है। चीन से स्क्रू, नट बोल्ट, एंकर फास्टनर, नायलॉक नट इत्यादि उत्पाद बड़ी संख्या में आयात किए जा रहे हैं। इनका मुकाबला करना मुश्किल है। दूसरे उद्यमी मानते हैं कि सूबे में मौजूदा उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार की कोई नीति नहीं है।

वस्तु एवं सेवा कर लगने के बाद निर्यात पर ड्यूटी ड्राबैक मिलना हुआ बंद

फास्टनर मेन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट आरके सिंगला के अनुसार पोर्ट से दूरी के कारण कच्चा माल दूसरे राज्यों से मंगवाया जा रहा है। जबकि, तैयार माल भेजा जा रहा है। ऐसे में करीब छह रुपये प्रति किलो ढुलाई खर्च आ रहा है। इसके अलावा यहां पर बिजली सात रुपये प्रति यूनिट से अधिक पर मिल रही है। अब लेबर भी काफी महंगी हो गई है। ऐसे में यहां पर बना माल महंगा साबित हो रहा है। जब से वस्तु एवं सेवा कर लगा है, निर्यात पर ड्यूटी ड्राबैक मिलना बंद हो गया है। नतीजतन निर्यात में भी करीब पच्चीस से तीस फीसद की कमी आई है। सिंगला ने कहा कि सरकार टेक्नोलाजी अपग्रेडेशन फंड के तहत निवेश पर सब्सिडी इस उद्योग को दे। इसके अलावा फ्रेट सब्सिडी दी जाए, तब जाकर फास्टनर उद्योग में रौनक आएगी।

एक साल से ऑटो सेक्टर में मंदी का आलम

फास्टनर सप्लायर्स एसोसिएशन के महासचिव मनीष सचदेवा का कहना है कि पिछले करीब एक साल से ऑटो सेक्टर में मंदी का आलम है। नतीजतन फास्टनर की बिक्री में भी गिरावट आई है। खासकर ऑटोमोबाइल से जुड़े फास्टनर की मांग में तीस से चालीस फीसद तक की कमी है। इसके अलावा यहां पर उत्पादन लागत ज्यादा आने से माल महंगा साबित हो रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को पहले से चल रहे उद्योगों को भी अतिरिक्त इंसेंटिव देने होंगे।

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