छोड़ चुके हैं पराली जलाना, अब बांट रहे हैं ज्ञान का खजाना
सीख लगाओ पराली जलाओ से तौबा-तौबा कर ली है।
बिदु उप्पल, जगराओं :
सीख लगाओ, पराली जलाओ से तौबा-तौबा कर ली है। क्योंकि पराली जलाने से हम किसान भाई न केवल अपने खेती खर्च को बढ़ावा देते थे पर्यावरण को भी प्रदूषित कर लेते थे। लेकिन अब हमें अपनी फसल के बचे अवशेष को खेतों में मिलाकर कृषि बजट को कम करना चाहिए। यह कहना है जगराओं के कोठे जीवे दा के सफल किसान जगपाल सिंह का।
किसान जगपाल सिंह ने बताया कि अब वाली खेती व पहले वाली खेती में अंतर होता था। तब किसान के हाथ में ही फसल बोना व फसल काटना निर्भर था। ऐसे में किसान 25 मई के बाद ही खेतों में अगली फसल धान की रोपाई करते थे। लेकिन अब खेती मशीनी हो गई है।
पांच साल पहले बंद कर दिया था पराली जलाना
किसान जगपाल सिंह कहते हैं कि उन्होंने पांच साल पहले ही खेतों में खड़ी पराली को जलाना बंद कर दिया था। खेतीबाड़ी विभाग के छोटे-छोटे सुझावों को खेती में प्रयोग किया। पराली बिलकुल नहीं जलाई। वे कहते हैं- पिछले 30 वर्षों से भी ज्यादा समय से 120 एकड़ में गेंहू व धान की खेती कर रहा हूं। खेती के पारंपरिक तौर-तरीकों के साथ-साथ वैज्ञानिक तकनीक का भी प्रयोग कर रहा हूं।
किसान जगपाल सिंह ने बताया कि पहले पराली जलाने के बाद अगली फसल के लिए खेत की जुताई व सिंचाई में र 3900 लीटर डीजल लग जाता है था। लेकिन जबसे पराली जलाना बंद किया है और हैप्पीसीडर से गेहूं की बीजाई शुरू की है तब से 1300 लीटर डीजल लगता है। साथ ही जमीन की उपजाऊ क्षमता बढ़ी है।
रासायनिक खाद का प्रयोग भी 50 फीसद हुआ कम
उन्होंने बताया कि अब यूरिया और डीएपी का प्रयोग 50 प्रतिशत कम हो रहा है। जगपाल सिंह कहते हैं कि वे खुद 120 एकड़ में गेहू और धान की खेती करते है और खेती के लिए खेतीबाड़ी माहिरों डॉ.गुरदीप सिंह व डॉ.रमिदर सिंह से सलाह लेते हैं।
अन्य किसानों के लिए बने प्रेरणा
पराली न जलाने वाले किसान जगपाल सिंह अब ब्लॉक के किसानों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं। साथ ही वह कृषि जागरूकता कैंपों में किसानों को पराली न जलाने व पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक करते हैं।