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मशीनों से पराली के प्रदूषण को मात दे रहे किसान, केंद्र ने मशीनों के लिए अब तक 1145 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी

पंजाब में लंबे समय से किसान खेतों में पराली फूंक रहे हैं। केंद्र सरकार पंजाब को पिछले कुछ वर्षों से पराली प्रबंधन के लिए सब्सिडी पर आधुनिक कृषि मशीनें उपलब्ध करवा रही है। इन मशीनों में सुपर सीडर हैप्पी सीडर जीरो ड्रिल आदि शामिल हैं।

By JagranEdited By: Vinay kumarPublished: Sun, 25 Sep 2022 09:23 AM (IST)Updated: Sun, 25 Sep 2022 09:23 AM (IST)
मशीनों से पराली के प्रदूषण को मात दे रहे किसान, केंद्र ने मशीनों के लिए अब तक 1145 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी
किसान मशीनों से पराली के प्रदूषण को मात दे रहे हैं।

आशा मेहता, लुधियाना। पंजाब में लंबे समय से किसान खेतों में पराली फूंक रहे हैं। हर साल अक्टूबर से नवंबर में किसानों की ओर से जलाई जाने वाली पराली की वजह से पर्यावरण प्रदूषित होता है। इसका असर इंसानों, जानवरों व पशु-पक्षियों पर पड़ता है। ऐसे में इस विकराल संकट से निपटने के लिए केंद्र सरकार पंजाब को पिछले कुछ वर्षों से पराली प्रबंधन के लिए सब्सिडी पर आधुनिक कृषि मशीनें उपलब्ध करवाई जा रही हैं। इसके तहत अब तक केंद्र ने 1145 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी है।

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इन मशीनों में सुपर सीडर, हैप्पी सीडर, जीरो ड्रिल आदि शामिल हैं। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। साल 2018-2022 तक 90,422 मशीनें पहले ही किसानों को दी जा चुकी हैं। इन मशीनों की मदद से किसानों ने पराली को खेत में मिलाकर अपनी अगली फसल की बिजाई की और मुनाफे की फसल काटते हुए पर्यावरण के प्रहरी भी बने। ज्यादातर किसानों ने धान की कटाई के बाद हैप्पी सीडर व जीरो ड्रिल के साथ गेहूं की बिजाई की है।

पंजाब में करीब पांच हजार से अधिक किसान पराली प्रबंधन की तकनीकों को अपनाकर खेती कर रहे हैं, जबकि डेढ़ सौ के करीब गांव है, जहां अब पराली जलाने का चलन लगभग बंद हो चुका है। कृषि विभाग के अनुसार इस साल भी पराली के प्रबंधन के लिए किसानों को 56,000 आधुनिक कृषि मशीनें वितरित की जानी है। इससे किसानों को धान की पराली के प्रबंधन में आसानी होगी और साथ ही पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण के स्तर में भी कमी आएगी।

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के शोध से हो रहा लाभ

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने भी पराली प्रबंधन ने अहम रोल निभाते हुए किसानों को अपनी शोध के जरिए आधुनिक कृषि मशीनों के जरिए पराली प्रबंधन से होने वाले लाभों से अगवत करवाते हुए जागरूकता पर जोर दिया। पीएयू ने इस समस्या से निजात के लिए ढंग तरीके निकाले हैं, जिनसे धान की पराली की बायोगैस और बायो चार का प्रयोग, मल्चिंग, मशरूम उत्पादन में इसका प्रयोग करना आदि है। मुख्य तौर पर पीएयू ने खेतों में ही पराली के प्रबंधन को लेकर मशीनरी विकसित की है, जिससे कि इसे खेतों में ही कुतर कर जमीन में जोता जा सके। माइक्रोबज के साथ इसे गलाने को लेकर खोज कार्य चल रहा है।

एक साल में पीएयू ने किए ये प्रयास

पीएयू ने अपनी भूमिका सिर्फ तकनीक विकसित करने तक ही सीमित नहीं रखी, बल्कि साल भर पंजाब में धान की पराली के प्रबंधन को लेकर विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। पीएयू ने आडियो व वीडियो भी बनाए हैं। गांव स्तर पर सभाएं की गईं और ग्रामीण इलाकों में जागरूकता अभियान चलाया।


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