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किसानों के लिए मिसाल बने कंवरदीप, व्यवसाय के साथ-साथ दे रहे पर्यावरण संरक्षण का संदेश

रायकोट के गांव बडूंदी के रहने वाले कंवरदीप सिंह ने सरकार की स्कीम का लाभ उठाकर सफल किसान बन गए हैं।वह बिजनेस में नाम कमाने के साथ पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दे रहे हैं।

By Edited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 11:48 AM (IST)
किसानों के लिए मिसाल बने कंवरदीप, व्यवसाय के साथ-साथ दे रहे पर्यावरण संरक्षण का संदेश
किसानों के लिए मिसाल बने कंवरदीप, व्यवसाय के साथ-साथ दे रहे पर्यावरण संरक्षण का संदेश

जगराओं [बिंदु उप्पल]। रायकोट के गांव बडूंदी के  कंवरदीप सिंह किसानों के मिसाल बन गए हैं। सरकार की स्कीम का लाभ उठाकर उन्होंने न केवल व्यवसाय में कामयाबी हासिल की, बल्कि साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दे रहे हैं।

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जागरण से बातचीत में किसान कंवरदीप सिंह ने बताया कि वह पिछले 13 वर्ष से तीन एकड़ में गेहूं व धान की खेती कर रहे हैं। पीएयू पामेटी के डायरेक्टर डॉ. हरजीत सिंह धालीवाल व डॉ. रमनदीप सिंह के दिशा निर्देशों पर उन्होंने मधुमक्खी पालन व्यवसाय अपनाया। साथ ही अपने पांच दोस्तों को भी इस राह पर चलाया। वह पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान दे रहे हैं। वह धान की फसल की कटाई के बाद पराली के बीच ही हैप्पीसीडर से गेहूं की बिजाई करते हैं। गाव के सरपंच गुरशरण सिंह ग्रेवाल भी उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित करते हैं।

परिवार का मिला पूरा सहयोग

कंवरदीप के अनुसार, खेतीबाड़ी व मधुमक्खी पालन में उनकी मां बलबीर कौर, पत्नी मनदीप कौर, दोनों बच्चे अनमोलजीत कौर, परवाज सिंह पूरा सहयोग देते हैं। टॉप हिल ब्राड के हनी को वे किसान मेलों व अन्य मेलों व बाजारों में भी बेचते हैं।

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कर चुके हैं सम्मानित

कंवरदीप और उनके 5 अन्य दोस्त कमलजीत सिंह, कुलदीप सिंह, मलकीत सिंह, हरदीप सिंह, सुखजिंदर मिलकर मधु मक्खियों की करीब 3000 कॉलोनियां लगाकर काम कर रहे हैं। उनके इस शहद का नाम है 'हनी लिप-टिक'। खास बात यह है कि कंवरदीप व सभी दोस्त शहद निकालने के बाद उसे छानकर सीधा डिब्बे में पैक कर रहे हैं जो कि बहुत शुद्ध है। कंवरदीप को 16 मई 2018 को मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी सम्मानित किया था।

शहद की गुणवत्ता में हम 300 वर्ष पीछे

कंवरदीप बताते हैं कि शहद की शुद्धता में हम 300 वर्ष पीछे हैं, क्योंकि पुराने समय में जमा शहद को शुद्ध माना जाता था। जिन फूलों में ग्लूकोज की मात्रा अधिक होगी, वो सर्दियों में जम जाता है और जमना उसका कुदरती गुण है। विदेशों में तो क्वालिटी से कोई समझौता नहीं होता और वहां पर तो सख्ती भी बहुत है। पर हमारे देश का जमा हुआ सारा शहद यूएसए को चला जाता है, क्योंकि हमारे यहा शहद की मार्केटिग के समय जमा शहद को यह कह कर खरीदने से मना कर देते हैं कि इसको तैयार करने में चीनी का प्रयोग हुआ है। या फिर लोग भी शहद लेते समय यही बात कहते हैं कि जमा हुआ शहद नहीं चाहिए।

ग्लोबल वार्मिग ने डाला उत्पादन पर असर

कंवरदीप सिंह ने बताया कि पहले मधुमक्खियां फूलों से नैक्टर लेकर आती हैं। फिर जब उनको बक्से में डाला जाता है तब उनसे शहद तैयार होता है। पहले पारंपरिक फूलों से शहद की मात्रा एक बॉक्स से करीब 50 किलो थी, लेकिन जब से ग्लोबल वार्मिग व हाइब्रिड वेरायटी आई है, शहद के उत्पादन पर असर दिखा है।

शहद की गुणवत्ता का बदलेगा मापदंड

कंवरदीप बताते हैं कि 1 जनवरी से शहद की गुणवत्ता के मापदंड में बदलाव होगा। अब शहद की गुणवत्ता का मापदंड विदेशी संस्था कोडैक्स के मापदंड के बराबर होगा। फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अनुसार इससे शहद में होने वाली मिलावट पर अंकुश लग सकेगा।


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