हर जगह बचपन है और हर जगह मां का अहसास : दिव्या दत्ता
बॉलीवुड की स्टार का कहना है कि हर जगह बचपन होता है और इसके साथ ही मां का अहसास भी। मां अपने बच्चों के हर ख्बाव के साथ हाेती है।
जेएनएन, लुधियाना। मां का स्थान सर्वोच्च है और वह अपनी संतान के हर ख्बाव को जानती है व पूरा करती है। यही कारण है कि बॉलीवुड स्टार दिव्या दत्ता को हर जगह मां का अहसास होता है। वह कहती हैं, हर स्थान पर अपना बचपन नजर आता है और हर जगह मां का अहसास होता है। मां बेस्ट फ्रेंड होती है और वह हमारी सब कुछ हाेती है। वह भावुक होते हुए कहती हैं कि मेरी मां तो कहीं न कहीं मेरी बेटी तक बन बैठीं।
दिव्या दत्ता ने 'दैनिक जागरण' के 'हिंदी हैं हम' विषय पर आयोजित वार्तालाप में अपनी किताब 'मी एंड मां' पर चर्चा कर रही थीं। यहां जीजीएनआइएमटी के ऑडिटोरियम में आयोजित समारोह के दौरान कथाकार राहुल चौधरी नीर ने उनकी किताब पर कई सवाल पूछे, जिनका दिव्या दत्ता ने बखूबी जवाब दिया। इस दौरान दिव्या लोगों से भी रूबरू हुईं और उनके सवालों के जवाब दिए।
कथाकार राहुल चौधरी ने बातचीत की शुरूआत एक शेर 'चलती-फिरती आंखों से अजा देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी है, मां देखी है' से की। जब दिव्या से पूछा गया कि बतौर लेखिका अपनी किताब में मां विषय ही क्यों चुना, तो उन्होंने कहा इससे बेहतर विषय उन्हे कुछ लगा ही नहीं। मां मेरी बेस्ट फ्रेंड थी, वह मेरी सब कुछ थी। उल्लेखनीय है कि दिव्या ने पिता को बहुत छोटी उम्र में ही खो दिया था।
कार्यक्रम के दौरान सवालाें के जवाब देतीं बॉलीवुड स्टार दिव्या दत्ता।
दिव्या ने बताया कि स्कूल में जब उससे पूछा गया था कि वह क्या बनना चाहती है तो उसने जवाब दिया था एक्ट्रेस। यह सुनकर क्लास टीचर ने डांट लगाई, पर मां को जब इस सपने के बारे में बताया तो डांटने की बजाय मां ने कहा मुझे तेरे ख्वाब पर भरोसा है। उनकी यह बात मेरी स्ट्रेंथ बनी।
वार्तालाप के दौरान दिव्या दत्ता ने कहा कि आज के समय में बच्चे आजादी चाहते हैैं। अगर आपकी जिंदगी में अभिभावक नुक्ता-चीनी करते हैं तो बच्चों को घर से बाहर की आजादी अच्छी लगती है। पर यदि अभिभावक बच्चों पर विश्वास करते हैं तो बच्चे भी वह विश्वास नहीं खोते।
अपने जीवन पर चर्चा करते हुए दिव्या ने कहा कि जब मैं मुंबई आई तो दिन में तीस बार मां को फोन करती थी। हालांकि उस समय फोन कम होते थे और मां पत्र के जरिए कविता लिखकर मुंबई में मेरी हौसला अफजाई के लिए भेजती। यहां तक कि मेरे जीवन में मां ही ऐसा इंसान है जो मुझे कहती थी कि तुम में टैलेंट है। यह तुम्हें पता है, किसी दूसरे को नहीं। इसलिए ऐसी पहचान बनाओ कि दुनिया तुम्हें जाने। इससे पहले दैनिक जागरण की ओर से दिव्या दत्ता को सम्मानित किया गया।
मां को खोने के बाद कर दिए कितने झगड़े
दिव्या दत्ता ने कहा, मां के चले जाने के बाद मुझे पता ही नहीं था कि मैैंने अपने कितने दोस्तों के साथ झगड़े कर लिए थे। घर पर अकेले रहने की आदत नहीं थी। समझ ही नहीं पा रही थी कि जो कमरा अपनी मां से शेयर करती थी वह उनके बिना कैसा लगेगा। यहां तक कि मैं डिप्रेशन में चली गई। मां के दवाइयां लेने पर चिढ़ाने वाली दिव्या कहती हैं कि मेरे लिए उस समय ऐसा पल आ गया कि मां की दवाइयों से बड़ा डिब्बा मेरे पास होता। मेडिटेशन, आयुर्वेद और योग से दवाइयों से छुटकारा पाया। दिव्या ने अपनी मां पर लिखी किताब से स्कूल का पहला दिन का किस्सा भी सभी को सुनाया।
जब गुगु कहने वाले पापा की मौत की आई खबर
दिव्या कहती हैं, पापा के लिए मैं गुगु थी। रोज सुबह पांच बजे उठकर मुझे स्पेलिंग याद कराते थे। रात को सुलाने के लिए होस्टल की कहानियां सुनाते। फिर पापा नौकरी के लिए लंदन चले गए। पापा से इतना प्यार करती थी कि मैंने अपने कजिन के पापा को अंकल की जगह पापा कहना शुरू कर दिया। यह बात मम्मी ने पापा को फोन पर बताई। पापा लंदन से नौकरी छोड़ साहनेवाल आ गए। एक दिन खेल रही थी तो बुआ ने बताया कि पापा का फोन आया है। फोन पापा का नहीं, बल्कि उनकी मौत की खबर देने वाला था। वह भी उस दिन जब उन्हें मुझसे मिलने आना था।