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पर्यावरण बचाने के लिए अनूठा प्रयास, ईको सिख संस्था तैयार कर रही 'गुरु नानक पवित्र जंगल' Ludhiana News

ईको सिख संस्था के इस अभियाना के तहत 160 वर्ग मीटर जमीन को साइंटिफिक तरीके से तैयार करके वहां पर 550 पौधे लगाकर गुरु नानक पवित्र जंगल विकसित किए जा रहे हैं।

By Sat PaulEdited By: Published: Sat, 10 Aug 2019 01:06 PM (IST)Updated: Sun, 11 Aug 2019 09:16 AM (IST)
पर्यावरण बचाने के लिए अनूठा प्रयास, ईको सिख संस्था तैयार कर रही 'गुरु नानक पवित्र जंगल'  Ludhiana News
पर्यावरण बचाने के लिए अनूठा प्रयास, ईको सिख संस्था तैयार कर रही 'गुरु नानक पवित्र जंगल' Ludhiana News

लुधियाना, [राजीव शर्मा]। विकास की आंधी और शहरीकरण की दौड़ ने मानव को वनस्पति, जीव-जंतुओं और यहां के पौधों की मूल प्रजातियों से विमुख कर दिया है, लेकिन अब युवाओं को पारंपरिक पेड़-पौधों, फलों से अवगत कराने के लिए ईको सिख संस्था ने अनूठा प्रयास शुरू किया है। इसके तहत जापान की मियावाकी तकनीक से छोटे-छोटे जंगल विकसित किए जा रहे हैं।

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संस्था का यह अभियान प्रथम पातशाह श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व को समर्पित है। इसके तहत 160 वर्ग मीटर जमीन को साइंटिफिक तरीके से तैयार करके वहां पर 550 पौधे लगाकर 'गुरु नानक पवित्र जंगल' विकसित किए जा रहे हैं। साफ है कि धर्म के साथ जोड़कर लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित किया जा रहा है। संस्था को इसमें अच्छा रिस्पांस भी मिल रहा है।

ईको सिख के बैनर तले गुरु नानक पवित्र जंगल तैयार करने के लिए पौधे लगाते पर्यावरण प्रेमी।

ईको सिख के साउथ एशिया के प्रोजेक्ट मैनेजर रवनीत सिंह का कहना है कि पंजाब में अब तक 23 गुरु नानक पवित्र जंगल बनाए जा चुके हैं। अगले 30 दिन में करीब 25 और जंगल लगाने का लक्ष्य है। पूरे विश्व में संस्था ने 10 लाख पौधे लगाने का टारगेट रखा है। पर्यावरण संरक्षण के इस काम में ईको सिख को स्वयंसेवी संगठनों, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों का भी समर्थन मिल रहा है।

संस्था का दावा है कि इस मुहिम के जरिए जहां पक्षियों, जीव-जंतुओं, पेड़ों की विलुप्त हो चुकी प्रजातियों को बचाने व फिर से पनपने का अवसर मिलेगा, वहीं युवा भी अपनी धरोहर का नजदीक से अनुभव कर सकेंगे। एक माइक्रो जंगल तैयार करने में 80 हजार से एक लाख रुपये तक का खर्च आता है।

ईको सिख के बैनर तले गुरु नानक पवित्र जंगल तैयार करने के लिए पौधे लगाते बच्चे।

क्या है मियावाकी तकनीक

जापान के वनस्पति वैज्ञानिक डॉक्टर कीरा मियावाकी ने माइक्रो जंगल बनाने की यह तकनीक विकसित की है। इसके तहत मूल प्रजातियों के पौधों को 30 गुणा घने तरीके से लगाते हैं। आम तौर पर पौधे दो फीट की दूरी पर लगाते हैं, लेकिन इसमें चार श्रेणी के पौधे मसलन छोटे, मध्यम, ऊंचे एवं काफी ऊंचे पौधे लगाए जाते हैं। इसमें ज्यादातर फलदार व फूल प्रजाति के पौधे लगाए जाते हैं। मसलन सिंबल, अर्जुन, बेहड़ा, प्लाश, हरड़, महुआ, बेरी, पीलू, लसूड़ी, हार शिंगार, मलेय बेर इत्यादि प्रमुख हैं। ये सौ फीसद आर्गेनिक, सौ फीसद बायो डाइवर्स होते हैं। इनका सक्सेस रेट 99 फीसद है।

कैसे तैयार होता है माइक्रो जंगल

पहले जमीन को तीन फीट नीचे तक खोदा जाता है। फिर इसमें तूड़ी, रूढ़ी और मिट्टी डाल फोरेस्ट बेड तैयार करते हैं। फिर गऊमूत्र, गोबर, गुड़ बेसन, दाल का आटा एवं जंगल की मिट्टी मिलाकर जीव अमृत तैयार किया जाता है। पौधों को इस जीवन अमृत में मिगो कर जमीन में रोपित किया जाता है। पौधे लगाने के बाद उन पर छह इंच मोटी पराली की परत बिछाई जाती है। यह तापमान को लेकर कवच का काम करता है। मसलन बाहर यदि 48 डिग्री तापमान है तो पराली के नीचे 25 से 30 डिग्री तापमान रहता है। यदि सर्दी में बाहर एक डिग्री तापमान है तो पौधे के नीचे 25 से 30 डिग्री तापमान रहता है। इससे पौधे की ग्रोथ बेहतर होती है। यह स्थिति पौधे एवं जीवाणु के लिए बेहतर है। साथ ही स्थिर तापमान में मिट्टी की नमी बनी रहती है। ऐसे में एक पौधे को पनपने के लिए केवल आधा लीटर पानी रोजाना चाहिए। दो साल में यह माइक्रो जंगल विकसित हो जाता है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए छेड़ी गई इस मुहिम में हर उम्र के लोग हिस्सा ले रहे हैं।

माइक्रो जंगल से ये होंगे फायदे

  • माइक्रो जंगल से जमीनी पानी का स्तर एवं गुणवत्ता बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  • तापमान को रेगुलेट करने में मदद करते हैं।
  • मिट्टी पर अपनी पकड़ मजबूत रखते हैं।
  • जीव जंतुओं को संरक्षण देते हैं।

आठ युवाओं की टीम काम कर रही, 12 को दी जा रही ट्रेनिंग

ईको सिख के रवनीत सिंह ने कहा कि इस मुहिम को मार्च 2019 को शुरू किया गया है। इसे लोगों का बेहतरीन रिस्पांस मिल रहा है। माइक्रो जंगल में किस तरह के पौधे लगाने हैं, इसके बारे में वनों में घूम कर सर्वे किए, पौधों की पहचान की गई। फिलहाल इसमें आठ युवाओं की टीम काम कर रही है व 12 और लोगों को ट्रेनिंग दी जा रही है। रवनीत ने कहा कि आज के बच्चे फलदार एवं फूलों के पौधों को भूल गए हैं और ये पौधे भी विलुप्त हो गए। उन पर आने वाले पंछी भी गायब हो गए। अब फिर से पुरानी पंरपराओं में नई जान फूंकने का प्रयास किया जा रहा है।

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