भूपेंदर सिंह भाटिया, लुधियाना। देश में हरित क्रांति के जनक के रूप में विख्यात पंजाब जहां घटते जलस्तर की समस्या से जूझ रहा है। वहीं, खेतों में जलती पराली भी एक बड़ा संकट है। इस संकट से निपटने का एक अहम उपाय है कि अपने आहार में मोटे अनाज (मिलेट्स) को शामिल किया जाए। इसके मद्देनजर खेती विरासत मिशन (केवीएम) संस्था पंजाब में जैविक कृषि को प्रोत्साहन देने और मोटे अनाज को घर-घर पहुंचाने के लिए 16 वर्षों से मुहिम चला रही है।

इसके तहत किसानों को कोदा, रागी, बाजरा, कुटकी व जौ जैसे मोटे अनाज उगाने के लिए प्रोत्साहित कर कृषि के समकालीन माडल के लिए वैकल्पिक मार्ग तैयार किया जा रहा है। केवीएम 16 वर्षों में पंजाब के अलावा हरियाणा, चंडीगढ़ और राजस्थान के किसानों के लिए 20 हजार से ज्यादा कार्यशालाओं, सेमिनार, प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन कर किसानों को फसली चक्र से निकालने में जुटी है।

वर्तमान में पंजाब में 5-6 हजार किसान मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं। इतना ही नहीं, किसानों द्वारा पैदा किया गया मोटा अनाज लोगों तक पहुंचाने के लिए संस्था कुदरती किसान हाट, कुदरती हट्स और किसान सहकारी समितियां बनाकर मार्केटिंग भी कर रही है।

संस्था के कार्यकारी निदेशक उमेंद्र दत्त कहते हैं कि मोटा अनाज खाएं; जल, जमीन और जीवन बचाएं। उन्होंने बताया कि प्रदेश में देश का सिर्फ डेढ़ प्रतिशत भूभाग है। यहां 18 प्रतिशत कीटनाशकों का उपयोग 85 प्रतिशत भूभाग में किया जाता है। ऐसे प्रदेश में मिलेट्स या जैविक खेती की बात करना धारा के विपरीत बात थी। इसे हमने चुनौती के रूप में लिया और लोगों ने देशद्रोही तक कहा। अमेरिका का एजेंट तक कहा गया।

संस्था ने वर्ष 2007 में ही मोटा अनाज कार्यक्रम की शुरुआत कर दी थी। 2008 में गांव स्तर पर मिलेट्स फूड फेस्टिवल आयोजित किए जाने लगे। शुरुआत में बाजरा और रागी की खेती के लिए ही किसानों को प्रेरित किया जाता था। इस क्रम में शहरी इलाकों में उपभोक्ताओं का एक वर्ग तैयार किया गया, जो मोटे अनाज का उपयोग करने लगे। शहर में आयोजित होने वाले फूड फेस्टिवल में मोटे अनाज के व्यंजन बनाकर लोगों को प्रेरित किया गया।

चूंकि, पंजाबी रसोईघर में मोटे अनाज का प्रवेश बड़ी चुनौती थी। संस्था ने घरेलू महिलाओं के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू किए, जिसका लाभ मिला। अभियान के तहत उमेंद्र दत्त ने ‘बेबे दी रसोई’ नाटक तैयार किया, जो लोगों को खूब भाया। 25 अक्टूबर, 2009 को चंडीगढ़ प्रेस क्लब में पहली बार विशाल स्तर पर मिलेट्स फूड फेस्टिवल का आयोजन किया गया। इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल विशेष तौर पर शामिल हुए और किसानों को इसके लिए प्रेरित किया।

किसानों तक सीधे मदद पहुंचे

उमेंद्र दत्त बताते हैं कि मोटे अनाज की खेती को लेकर किसानों तक मदद नहीं पहुंच रही। पांच साल पहले उन्नत कृषि शिक्षा योजना लाई गई थी, जो असफल रही। केंद्र की इस योजना के तहत जैविक या मोटे अनाज की खेती करने वाला किसान अन्य किसानों को प्रशिक्षण दे, इसके लिए मदद दी जानी थी। यह मदद उन्हें नहीं मिली। विफलता से सबक सीखते हुए मोटे अनाज के काम में सीधा किसानों को जोड़ना चाहिए। स्वयंसेवी संस्थाओं को जुड़ना चाहिए।

मोटे अनाज की खेती के लाभ

  • किसानों की एक या दो फसलों पर निर्भरता होगी कम।
  • धान की पराली जलाने में आएगी कमी।
  • मोटे अनाज और उसके अवशेष पशु चारे के लिए अच्छे।
  • मोटे अनाज की पैदावार के लिए कम पानी की जरूरत।
  • अधिकांश मिट्टी के लिए उपयुक्त और कीटनाशक की जरूरत नहीं।

Edited By: Yogesh Sahu