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लुधियाना में कार्तिक पूर्णिमा पर श्री शिव मंदिर गुग्गा माड़ी में उमड़े श्रद्धालु, हवन-यज्ञ में डाली आहुतियां

कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के वाराणसी मे मनाया जाता है। यह देव दीवाली के नाम से भी जाना जाता है। सबसे पहले पंचगंगा घाट पर 1915 में हजारों दीये जलाकर इसकी शुरुआत की गई थी।

By Rohit KumarEdited By: Published: Mon, 30 Nov 2020 04:07 PM (IST)Updated: Mon, 30 Nov 2020 04:07 PM (IST)
लुधियाना में कार्तिक पूर्णिमा पर श्री शिव मंदिर गुग्गा माड़ी में उमड़े श्रद्धालु, हवन-यज्ञ में डाली आहुतियां
मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा को देवतागण दीवाली मनाते हैं और इसी दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था।

खन्ना, जेएनएन। सोमवार को श्री शिव मंदिर गुगा माड़ी समराला रोड में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर हवन का आयोजन किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहुंच कर अपनी हाजरी लगवाई। पंडित देशराज शास्त्री ने बताया कि देव दीवाली कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के वाराणसी मे मनाया जाता है। यह देव दीवाली के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले पंचगंगा घाट पर 1915 में हजारों दीये जलाकर इसकी शुरुआत की गई थी। माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवतागण दीवाली मनाते हैं और इसी दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था।

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मान्यता यह भी है कि तीनों लोको में त्रिपुराशूर राक्षस का राज चलता था। देवतागणों ने भगवान शिव के समक्ष त्रिपुराशूर राक्षस से उद्धार की विनती की। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन राक्षस का वध कर उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया और त्रिपुरारि कहलाए। इससे प्रसन्न देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीवाली मनाई थी, तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देव दीवाली मनाई जाने लगी।

काशी में देव दीवाली उत्सव मनाए जाने के संबंध में मान्यता है कि राजा दिवोदास ने अपने राज्य काशी में देवताओं के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन रूप बदल कर भगवान शिव ने काशी के पंचगंगा घाट पर आकर गंगा स्नान कर ध्यान किया। यह बात जब राजा दिवोदास को पता चली तो उन्होंने देवताओं के प्रवेश प्रतिबंध को समाप्त कर दिया। इस दिन सभी देवताओं ने काशी में प्रवेश कर दीप जलाकर दीवाली मनाई थी। इस मौके पर मंदिर कीर्तन मंडली व संगत ने हवन में भाग लिया।


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