पुरानी व्यवस्था पर विश्वास: सुखचैन गिल के तैनात थाना प्रभारियों को सीपी ने नहीं बदला
सीपी अग्रवाल ने सिर्फ उन्हीं का तबादला किया है जोकि काफी समय से एक ही पद पर कुंडली मारे हुए थे। हालांकि उन्हें डॉ. सुखचैन सिंह गिल द्वारा तैनात किए थाना प्रभारी खूब भा रहे हैं।
लुधियाना [अर्शदीप समर]। पुलिस कमिश्नर राकेश अग्रवाल को तत्कालीन पुलिस कमिश्नर डॉ. सुखचैन सिंह गिल द्वारा तैनात किए थाना प्रभारी खूब भा रहे हैं। पुलिस कमिश्नर रहते हुए डॉ. सुखचैन सिंह गिल ने थाना डिवीजन नंबर पाच, थाना सराभा नगर और बस्ती जोधेवाल में महिला सब इंस्पेक्टर को इंचार्ज तैनात किया था और अन्य थानों में भी कई नए थाना प्रभारी लगाए थे। गिल के तबादले के बाद राकेश अग्रवाल यहां आए। उन्हें यहा करीब चार माह हो गए हैं, लेकिन उन्होंने गिल द्वारा तैनात किए अधिकतर थाना प्रभारियों का तबादला नहीं किया। हालांकि जब भी कोई नया पुलिस कमिश्नर आता है तो वह सबसे पहले पुराने थाना प्रभारियों को बदल देता है, ताकि वह अपने ढंग से शहर में टीम तैयार कर अपराध पर नकेल कस सकें। सीपी अग्रवाल ने सिर्फ उन्हीं का तबादला किया है जोकि काफी समय से एक ही पद पर कुंडली मारे हुए थे।
मीडिया के फेवरेट अफसर
ट्रैफिक पुलिस के दो अधिकारी राजनेताओं और मीडिया के फेवरेट बने हुए हैं। ट्रैफिक पुलिस के डीसीपी सुखपाल सिंह बराड़ और एसीपी ट्रैफिक गुरदेव सिंह पिछले कई सालों से लुधियाना की ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के लिए काम कर रहे हैं। दोनों ने जाम व दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कई कटों को भी बंद करवाया। दुर्घटना संभावित क्षेत्रों में हादसों को रोकने के काम में काफी समय से जुटे हुए हैं। बेशक दोनों अच्छा काम कर रहे हैं परंतु राजनेता और राजनीति किसी की सगी नहीं होती। इनके साथ भी ऐसा ही हुआ। दोनों ही अधिकारियों का लोकसभा चुनाव से पहले तबादला कर दिया गया था। लेकिन नेताओं की तरह जनता बेशुक्री नहीं निकली। लोगों ने नेताओं को दोनों के काम याद करवाने शुरू करवा दिए। मीडिया में भी दोनों के जाने के बाद खूब चर्चे होने लगे। फिर क्या था। नेताओं को वोटों की राजनीति के आगे झुकना पड़ा और दोनों ही अधिकारियों को दोबारा लुधियाना में तैनाती देनी पड़ी। अब एक बार फिर दोनों ही अधिकारी मिलकर ट्रैफिक की समस्या का हल निकालने में जुटे हुए हैं।
आप का नहीं कोई माई बाप
गत विधानसभा चुनाव में पंजाब में सरकार बनाने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी के नेता ढाई साल में ही गायब हो गए हैं। शहर में न दफ्तर, न झंडा-डंडा। सब गायब है। विधानसभा चुनाव से पहले आप की टिकट पाने के लिए नेता लाइन में लगे हुए थे और लोगों के हाथों में झाड़ू के निशान वाला झडा ही नजर आता था। सत्ता में काग्रेस की सरकार आते ही धीरे-धीरे आप के नेता टूटने लगे। आलम यह है कि ढाई साल के बाद शहर में न तो आप का कोई दफ्तर रहा और न ही कोई नेता दिखाई देता है। यही नहीं, गाड़ियों से पार्टी के स्टिकर तक गायब हो गए। एक समय था जब आप सबसे ज्यादा सरकार की नीतियों पर सवाल उठाती थी। लेकिन अब हालत यह है कि अधिकतर आप नेताओं ने राजनीति छोड़ अपने कामकाज पर ध्यान देना शुरू कर दिया है।
निशाने पर ढींडसा परिवार
शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के विधायक दल के नए नेता शरणजीत सिंह ढिल्लों के सम्मान समारोहों में आज कल टकसाली नेता सुखदेव सिंह ढींडसा व उनके बेटे परमिंदर सिंह का बुखार पूरी तरह से चढ़ा हुआ है। दरअसल, विधायक दल के नेता पद से परमिंदर के इस्तीफे के बाद को यह पद दिया गया है। इसलिए शिअद नेता ढिल्लों का जगह-जगह स्वागत कर रहे हैं, लेकिन इन स्वागत समारोहों में अकाली नेता सरकार के कामकाज पर अंगुली उठाने की बजाए ढींडसा परिवार पर निशाना साधने में लगे हुए हैं। जाहिर है कि यह सब शिअद हाईकमान के इशारे पर हो रहा है, ताकि बागी टकसाली नेताओं के खिलाफ आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मोर्चा खोला जा सके। इसलिए अभी से हवा बनाई जा रही है। चर्चा है कि दुश्मनी के बहाने ही सही, सही अकालियों के लबों पर ढींडसा का नाम तो है।
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