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कोरोना ने चूर किए युवाओं के विदेशों में शिक्षा हासिल करने की सपने

सूबा सरकार के द्वारा पढ़-लिख कर रोजगार उपलब्ध न करवाने की स्थिति में अधिकतर मां-बाप अपने बच्चों को बारहवीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद आइलेट्स करवा कर विदेश में जाकर पढ़ने व सैटल होने के लिए भेजना पसंद करते है। लेकिन इस वर्ष 2020 मार्च में पूरी दुनिया में कोरोना वायरस महामारी फैलने के कारण मां-

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 Jun 2020 02:30 AM (IST)Updated: Mon, 01 Jun 2020 06:14 AM (IST)
कोरोना ने चूर किए युवाओं के विदेशों में शिक्षा हासिल करने की सपने
कोरोना ने चूर किए युवाओं के विदेशों में शिक्षा हासिल करने की सपने

जासं, जगराओं

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पंजाब के युवाओं में विदेश जाकर शिक्षा हासिल करने का जुनून सवार है, लेकिन विश्व में फैली कोरोना महामारी ने उनके सपने चूर कर दिए हैं। हालत यह है कि अब विदेश जा कर शिक्षा हासिल नहीं कर पा रहे हैं। जिन विद्यार्थियों ने विदेशी विश्वविद्यालयों में दाखिले ले लिए थे अब उनकी पढ़ाई कम से कम छह माह तक लेट हो गई है। विदेशी विश्वविद्यालय उनको अगले सेशन में एडजस्ट करेंगे। इस महामारी से सूबे से बड़ी संख्या में विदेश जाने वाले युवाओं का सिलसिला थम गया है और इस कारोबार में जुड़े लोगों का धंधा भी चौपट हो गया है।

मई सेशन के वीजा गए व्यर्थ

कोलंबियन इंस्टिट्यूट व मेगामाइंड एजूकेशन के डायरेक्टर व आइलेट्स सेंटर एसोसिएशन के प्रधान हरि ओम वर्मा ने बताया कि विदेश में जाकर पढ़ने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थियों के मई सेशन के वीजा आ चुके थे। उन बच्चों ने अप्रैल में विदेश जाना। बच्चे मार्च से ही विदेश जाने की तैयारी में जुट गए थे। लेकिन देश दुनिया में कोरोना वायरस फैलने कारण वे जा नहीं सके। ऐसे में मई सेशन शुरू न होने की वजह से विदेशी विश्वविद्यालयों में मई सत्र को सितंबर में मर्ज कर दिया। जिनके वीजा लग गए हैं वे सितंबर सेशन में पढ़ने के लिए विदेश जाने का इंतजार कर रहे हैं। इतना ही नहीं कई विश्वविद्यालयों ने विदेशों में पढ़ने के लिए विद्यार्थियों को बिना आइलेट्स के आने के ऑफर दिए हैं। पिछले ढाई महीने से आइलेट्स सेंटर बंद होने कारण आइलेट्स को नुकसान हो रहा है।

डायरेक्टर हरि ओम वर्मा ने बताया कि फरवरी-मार्च में ही विद्यार्थियों ने मई सेशन के लिए विदेशी यूनिवर्सिटियों में कॉलेज की फीस व जीआइसी यानि ग्रांटेड इन्वेस्टमेंट अकाउंट की फीस जा चुकी है। सितंबर सेशन के लिए उन बच्चों की आन लाइन फाइलिग हो रही है। नए वीजे के इंतजार में विद्यार्थी नर्वस पड़े हुए हैं।

उन्होंने बताया कि यूरोप में तो पहले ही विद्यार्थी कम जाते थे और अब तो यूरोप की स्थिति गंभीर है ऐसे में अभिभावक व बच्चे यूरोप से मुंह मोड़ रहे हैं।

तीन विद्यार्थी विदेश जाने वाले थे

वत्स एजूकेशनल सर्विसेज की डायरेक्टर रेखा वत्स ने बताया कि कनाडा, यूरोप, आस्ट्रेलिया जाने का  समय अगस्त-सितंबर एवं मई-जनवरी होता है। वो डेढ़ वर्ष में करीब 50 बच्चों को प्रशिक्षित कर विदेश भेज चुकी हैं। उन्होंने बताया कि मार्च में तीन विद्यार्थियों गुरजोत कौर, मनप्रीत सिंह व जोबनप्रीत कौर विदेश जाने की तैयारी में थीं। लेकिन, लॉकडाउन के कारण अब सारा कामठप हो गया है।

बच्चे पासपोर्ट बनवाने का कर रहे हैं इंतजार

गोयल ट्रेवलर्स के डायरेक्टर ऋषि गोयल ने बताया कि बच्चे विदेश में जाने के लिए पासपोर्ट बनवाने का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण अब तो पुरानी बुकिग वाली टिकटें कैंसिल हो रही हैं और कोई नई टिकटें नहीं बनवा रहा। क्योंकि, अभी नई टिकटें बनने का काम शुरू नहीं हो रहा है। उन्होंने बताया कि जहां लॉकडाउन से ट्रेवल एजेंटों और बच्चों व उनके माता-पिता को भी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है। इसके अलावा एयरलाइंस कंपनियां ट्रैवल एजेंटों व बच्चों के मां-बाप को टिकटों की कैंसलेशन की बजाए कूपन व टोकन दे रही हैं, ताकि वे अगली बार जब टिकट करवाएंगे तो टिकट चार्ज नहीं लगेगा। केवल फेयर चार्जेज  लगेंगे।

वीजा आने के बाद टिकट ले चुकी थी वीरपाल कौर

कनाडा जाकर पढ़ने की इच्छा रखने वाली वीरपाल कौर ने बताया कि आइलेट्स करने के बाद वीजा आ चुका था और टिकट भी ले ली थी। एकदम से लॉकडाउन के कारण फलाइटें रद्द होने से अभी तक विदेश नहीं जा सकी। मेरा सेशन सितंबर  में कर दिया है। मैं कनाडा जाने का इंतजार कर रही हूं।

अबैंसी खुलने का कर रही हूं इंतजार

कनाडा जाने वाली लखवीर कौर ने बताया कि मेरी कॉलेज की फीस व जीआइसी जा चुका है। बड़ी मुश्किल से मेडिकल करवाया था। अभी अबैंसी न खुलने की वजह से मेरा काम रुका है। भगवान से अरदास है कोरोना खत्म हो और मैं विदेश जाऊं। क्योंकि विदेशी लाइफ-स्टाइल व खानपान यहां से बेहतर भी है।


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