कोरोना चुनौती व अवसर भी
बीती शाम रसोई में श्रीमति नई रेसपी बना रही थी।
सिटी जंक्शन : धैर्य से कोई ऐसी एक्टीविटी करें बच्चे से लेकर बुजुर्ग, जिससे समय का सदुपयोग हो सके बीती शाम रसोई में श्रीमति नई रेसपी बना रही थी। इसी बीच मोबाइल पर बेटी का फोन आया तो उन्हें ऊंची आवाज लगाकर बताया। पसीने को पोछती वह तुरंत आई और फोन पर बेटी और नातिन से खूब बातें करने लगी। समय का पता ही नहीं चला। अचानक कुछ याद आते ही वह फोन मुझे पकड़ा कर रसोई की तरफ भागी। बेटी ने पूछा कि पापा यह कोरोना कब खत्म होगा? तो उसे कहता हूं, अभी कुछ पता नहीं। कई महीने भी लग सकते हैं, जब तक कोई दवाई या वैक्सीन नहीं आती। बेटी ने कहा कि अब तो बच्चे भी बोर हो गए हैं तो मैंने समझाया कि इस मुश्किल घड़ी में संयम से काम लेना है। घर में ही रहकर अपनी रूचि अनुसार कोई न कोई काम करना है, जिससे समय का सदुपयोग के साथ साथ कुछ नया सीख सकें। इतने में श्रीमती जी एक नई रेसपी बनाकर लाई। कहा, मैंने यह यू-ट्यूब से सीखा है। जब उसे टेस्ट करके प्रशंसा करता हूं तो वह खुशी से झूम उठती है। इसी प्रकार से हर वर्ग व बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक को धैर्य से कोई ऐसी एक्टीविटी करनी चाहिए, जिससे समय सुचारू ढंग से बीत जाए। अनावश्यक काम के लिए बाहर निकलने का अभी वक्त नहीं है। गृहणियां भी घर पर सकारात्मक टीवी प्रोग्राम और किताबों में पल बिताएं। परिवार और दूर बैठे अपनों से संवाद कोरोना की चुनौती को अवसर में बदल सकते हैं। - डॉ. अश्विनी मल्होत्रा