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ज्ञानशालाओं से मंत्र की दीक्षा ग्रहण कर सकते हैं बच्चे: विनोद देवी सुराणा

अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के नेतृत्व में देश भर की सैकड़ों ज्ञानशालाओं के बच्चों ने जूम एप के जरिए मंत्र दीक्षा ग्रहण की।

By JagranEdited By: Published: Thu, 09 Jul 2020 01:59 AM (IST)Updated: Thu, 09 Jul 2020 01:59 AM (IST)
ज्ञानशालाओं से मंत्र की दीक्षा ग्रहण कर सकते हैं बच्चे: विनोद देवी सुराणा
ज्ञानशालाओं से मंत्र की दीक्षा ग्रहण कर सकते हैं बच्चे: विनोद देवी सुराणा

संस, लुधियाना : अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के नेतृत्व में देश भर की सैकड़ों ज्ञानशालाओं के बच्चों ने जूम एप के जरिए मंत्र दीक्षा ग्रहण की। कोरोना के चलते भवनों में ज्ञानशाला में धार्मिक शिक्षा भले ही रुक गई हो, सोशल मीडिया व अन्य प्रकार के माध्यमों से ये बदस्तूर जारी है। ये बात उपासिका व पंजाब ज्ञानशाला की आचंलिक संयोजिका विनोद देवी सुराणा व तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री धीरज सेठिया ने कही।

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तरुण जैन सुराणा ने कहा कि विनोद देवी सुराणा के अथक प्रयास से पंजाब में करीब 25 से अधिक ज्ञानशालाए निरंतर चल रही है। उपासिका विनोद देवी सुराणा का कहना है कि तेरापंथ धर्म संघ के नवम आचार्य श्री तुलसी का सपना था कि जैन परिवार का प्रत्येक बच्चा अच्छे संस्कार लेकर भावी पीढी का निमरण कर सकें। इस अवसर पर तरुण जैन, धीरज सेठिया, जेटीएन के प्रभारी पुखराज बोथरा, मनोज धाड़ीवाल, जितेंद्र वैद्य, अरुण भूरा, प्रदीप सेठिया, महिला मंडल की ओर से संगीता जैन, इंदू सेठिया, पूजा सेठिया आदि शामिल थे। सुख व दुख का कारण इंसान स्वयं : अरुण मुनि संस, लुधियाना : संघशास्ता शासन प्रभावक गुरुदेव श्री सुदर्शन लाल महाराज के सुशिष्य आगमज्ञाता गुरुदेव श्री अरुण मुनि महाराज ठाणा-6 एसएस जैन स्थानक सिविल लाइंस में विराजमान हैं। बुधवार की सभा मे अरुण मुनि ने कहा, संसार की प्रवृतियां मात्र कर्तव्य रह गई। इनमें आसक्ति मात्र भी नहीं रही। प्रवृतियों के बाद भी पश्चाताप होता है। संपूर्ण जीवन में आमूल चूल परिवर्तन आया है। खाने पीने, व्यापार, व्यवहार, भोग व योग व बोलचाल में भारी अंतर आया है। जीवन में जो भी सुख दुख है उसका मुख्य कारण इंसान स्वंय हैं। हमारा आत्म गुणों का वैभव बढ़ गया तथा संसार से अलिप्त हो गए। मोक्ष जाने की उत्कंठा प्रबल हो गई। महावीर बोले, जब कोई साधक स्वयं को सतगुरु को सौंपता है तो सतगुरु उसे सर्वस्व सौंपते हैं। जब कोई साधक ह्दय से आत्मा में ऐसे उपकार स्मरण करता है तो वो तदभव गामी या निकटभवी होता है।


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