गुणवानों को देखकर गुणी बनें: मुनि मोक्षानंद
इन आंखों से संसार के अच्छे व बुरे सभी दृश्य देखे जा सकते हैं किंतु उन्हें देखने के बाद यदि संसार की असारता तथा संबंधों की नश्वरता का बोध न हो तो हमारी दृष्टि अभी भी खुली नहीं है। इन आंखों से हमें सृष्टि के प्रत्येक प्राणी तथा वस्तु के गुण देखने चाहिए।
संस, लुधियाना : इन आंखों से संसार के अच्छे व बुरे सभी दृश्य देखे जा सकते हैं किंतु उन्हें देखने के बाद यदि संसार की असारता तथा संबंधों की नश्वरता का बोध न हो तो हमारी दृष्टि अभी भी खुली नहीं है। इन आंखों से हमें सृष्टि के प्रत्येक प्राणी तथा वस्तु के गुण देखने चाहिए। तभी वैसे गुण हमारे जीवन में भी उतरने प्रारंभ हो जाएंगे। ये विचार धर्म कमल हाल में जैनाचार्य नित्यानंद सूरीश्वर महाराज के सान्निध्य में जारी चातुर्मास सभा में मुनि मोक्षानंद ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि घर और समाज में यदि हम शांति चाहते हैं तो दूसरों की बुराइयां देखना बंद करें। भगवान ने हमें ये आंखें स्वयं के दोष तथा दूसरों के गुण देखने के लिए दी है। तभी इन आंखों की सार्थकता है। आंखों की सार्थकता अच्छाई देखने में ही है। हमारी दृष्टि कहां रुकती है, यह हमें चिंतन करना है। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। हमें दूसरों में दोष देखने से पहले अपने आप में दोष देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि अपनी संसारिक इच्छाओं को जीत लेना ही तप है, परमात्मा तो हमारा दर्पण है। इसमें अपना रूप नहीं स्वरूप दिखाई देना चाहिए। व्यक्ति अपनी आंखों को सुंदर बनाना चाहता है, लेकिन अपने दृष्टि को सुंदर नहीं। अगर हम अपनी दृष्टि को सुंदर बना लें तो आंखें स्वत: सुंदर बन जाएंगी। उन्होंने आगे कहा कि परमात्मा और गुरु को देखने के लिए हमारे पास समय ही नहीं है। इस संसार में यदि हम बुराई देखने जाएं तो बुराई ही मिलेगी। अच्छाई देखने जाएंगे तो अच्छाई ही मिलेगी।