बिट्रेन कैसे पहुंचा कोहिनूर... सरकार और उसके विभाग की अलग-अलग राय
ब्रिटेन पहुंचे कोहिनूर हीरे पर केंद्र व पुरातत्व विभाग एकमत नहीं हैं। केंद्र का कहना है कि यह गिफ्ट किया गया था, जबकि पुरातत्व विभाग इसे सरेंडर किया गया मानती है।
जेएनएन, लुधियाना। 1849 में भारत से ब्रिटेन पहुंचे कोहिनूर हीरे पर भारत सरकार व पुरातत्व विभाग एकमत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका पर जवाब देते हुए केंद्र सरकार ने कहा कि ब्रिटेन ने कोहिनूर को न जबरन छीना और न चुराया। महाराजा रणजीत सिंह के वंशज ने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी को गिफ्ट किया था। इसके विपरीत लुधियाना के आरटीआइ एक्टीविस्ट रोहित सभ्रवाल की आरटीआइ का जवाब देते हुए पुरातत्व विभाग ने कहा कि 1849 में महाराजा दलीप सिंह व लार्ड डलहौजी के बीच हुई लाहौर ट्रीटी के दौरान कोहिनूर सरेंडर किया गया था।
लुधियाना के रोहित सभ्रवाल बीते दिनों लंदन गए तो कोहिनूर को देखने टॉवर ऑफ लंदन पहुंच गए। वहां म्यूजियम इंचार्ज से कोहिनूर के संबंध में पूछा तो जवाब मिला कि इसे महारानी को गिफ्ट किया गया था। लुधियाना पहुंचकर सभ्रवाल ने आरटीआइ से कोहिनूर संबधी जानकारी मांगी। अब यह मालूम नहीं था कि किस विभाग से यह जानकारी ली जाए तो आरटीआइ पीएमओ को भेज दी। चूंकि आरटीआइ में यह प्रावधान है कि अगर आरटीआइ किसी और विभाग से संबंधित है तो वह आवेदक को न लौटाकर सीधे उक्त विभाग को भेज दी जाती है।
इसके बाद पीएमओ ने यह आरटीआइ पुरातत्व विभाग को भेज दी। एक महीने बाद आए आरटीआइ के जवाब में विभाग ने बताया कि महाराजा रणजीत सिंह के वंशज महाराज दलीप सिंह ने 1849 में कोहिनूर ब्रिटेन को सरेंडर किया था। जवाब में यह भी बताया गया कि बहुमूल्य हीरा जिसे कोहिनूर के नाम से जाना जाता है महाराजा रणजीत सिंह को शाह शुजा उल मुल्क से मिला था।
बाद में, इसे महाराजा रणजीत सिंह के वंशज महाराजा दलीप सिंह ने महाराजा लाहौर के तौर पर इंग्लैंड की रानी को लाहौर ट्रीटी के दौरान सरेंडर कर दिया। आरटीआई के जवाब में बताया गया कि ब्रिटिश को कोहिनूर गिफ्ट के तौर पर नहीं दिया गया। इस दौरान महाराजा दलीप सिंह की उम्र 9 साल की थी।