यादों की बारात: पहली मोहब्बत हमीदा को याद कर भावुक हुए Bollywood के हीमैन धर्मेंद्र
बॉलीवुड के हीमैन धर्मेंद्र अपनी पहली मोहब्बत को अब तक नहीं भूल पाए हैं। लुधियाना में अपने पहले प्यार हमीदा को याद कर वह बेहद भावुक हो गए।
लुधियाना, [भूपेंदर सिंह भाटिया]। बॉलीवुड के हीमैन धर्मेंद्र आज भी अपनी पहली मोहब्बत नहीं भूल पाए हैं। पहले प्यार का अहसास उन्हें आज भी भावुक बना देती हैं और पुरानी यादों की बारात सी सज जाती है। धर्मेंद्र ने खुद खुलासा किया कि पहले प्यार हमीदा की छाप उनके दिल पर अब भी है। कच्ची उम्र की प्यार हमीदा बंटवारे के बाद पाकिस्तान चली गईं, धर्मेंद्र का प्रकाश कौर से ब्याह हुआ और बाद में ड्रीम गर्ल हेमामालिनी भी उनकी जिंदगी में आईं, लेकिन पहली मोहब्बत की कसक न गई। हमीदा स्कूल के जमाने की मोहब्बत थीं।
लुधियाना के गांव ललतों कलां के स्कूल के किस्से नज्म के जरिए सुनाए
इसका खुलासा उन्होंने यहां एक कार्यक्रम के दौरान नज्म 'अनोखी कोशिश' पेश करते हुए किया। धर्मेंद्र ने ललतों कलां (लुधियाना) स्थित अपने स्कूल की याद ताज करते हुए कहा, 'मैं दिल की बातें लिखता हूं, कभी दिमाग की नहीं। मैं छोटा था। मासूम थी उम्र मेरी। वो क्या थी, पता नहीं। पास जाने को जिसके, साथ बैठने को जिसके, जी चाहता था। वह स्टूडेंट थी आठवीं की, मैं छठी में पढ़ता था। हमारे स्कूल टीचर की बेटी थी। नाम हमीदा था। यूं ही मुस्कुरा देती, मैं पास चला जाता।'
कार्यक्रम के दौरान धर्मेंद्र।
धर्मेंद्र आगे बोले, 'वो चुप रहती, मैं सिर झुका लेता। पांव के अंगूठे से जमीन कुरेदता रहता। वो कहती क्यों, सवाल हल नहीं हुआ। ला दे कॉपी, मैं हल कर देती हूं। उसे लगता था कि छठीं का सवाल हल नहीं हुआ होगा। देते हुए कॉपी उसकी अंगुलियों से स्पर्श हुआ। उसके स्पर्श से जाने क्या हो जाता।वो पूछती कुछ और थी। मैं कह कुछ और जाता था। वो फिर चुप हो जाती। मैं फिर सिर झुका लेता। वो कहती उदास मत हो, अभी वक्त है तेरे इम्तिहान में। सब ठीक हो जाएगा। वो कहते हुए चली जाती। मैं देखता रहता। वह ओझल हो जाती। मैं सोचता रहता, सवाल क्या है। यह अनोखी कशिश। यह अनजाना एहसास। यह क्या है? मैं कहता, हमीदा जिस दिन सवाल का मतलब समझ आ जाएगा, तो हल के लिए चला आऊंगा।'
कहा- बंटवारे के बाद चली गई थी पाकिस्तान, अब भी गाहे-बगाहे उसकी याद आ जाती है
धर्मेंद्र ने कहा, ' पाकिस्तान बन गया, हमीदा चली गई और मुझे मेरे सवाल का मतलब समझ आ गया। अब भी गाहे-बगाहे उसकी याद आ जाती है, एक मीठी चुभन जगा जाती है। हंस देता हूं खुद पर। कहता है धरम, तेरे मिजाज-ए-आशिकाना का यह पहला मासूम कदम था और वह मासूम कदम तू ता जिंदगी न भूलेगा।' उन्होंने कहा कि यह देश के बंटवारे से पहले की बात है। कभी यादें ताजा होती हैं, तो लिख लेता हूं।
कार्यक्रम के दौरान धर्मेंद्र और अमित कुमार।
दिलीप कुमार की प्रेरणा ने बनाया एक्टर
धर्मेंद्र ने कहा, 'लुधियाना की मिट्टी मेरे कण-कण में समाई है। इसी शहर में अपनी जिंदगी की पहली फिल्म मिनर्वा सिनेमाघर में दिलीप कुमार की शहीद देखी थी। वहां से मुझे प्रेरणा मिली, तो खुद में छुपा एक्टर ढूंढऩे लगा। मैं सोचता था इनकी तरह ही हूं। मुझे भी फिल्मी दुनिया जाना चाहिए। फिल्मी पोस्टर में खुद को ढूंढता था। रात को ख्वाब देखता। सुबह उठकर आईने से पूछता था, मैं दिलीप कुमार बन सकता हूं? शायद मेरी इबादत में इतनी शिद्दत थी, सजदे थे। उसी ने आज मुझे धर्मेंद्र बना दिया।'
कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति देते गायक अमित कुमार।
जब दोस्त ने कोठी का नाम धर्मशाला रख दिया
धर्मेंद्र बोले, ' मुंबई में पूरी बनावटी दुनिया है, लेकिन मैं वहां जाकर बनावटी नहीं बना। जन्मभूमि की मिट्टी को नहीं भूला। देवेन वर्मा मेरा एक दोस्त था। कॉमेडियन था। मुंबई में जब बंगला बनाया तो कहने लगा पाजी आपने इसका नाम नहीं रखा। मैंने कहा, हमारे यहां नाम नहीं रखते। उसने कहा मैं एक नाम बताऊं। उस समय पंजाब से लोग मिलने के लिए बहुत आते थे। वर्मा ने कहा कि इसका नाम धर्मशाला रख दो। यह बोलकर भाग गया दूर। मैंने पकड़ा तो कहने लगा बंगला धर्मशाला है, जहां सभी आते हैं।'
कार्यक्रम में मशहूर हिंदी सिंगर अमित कुमार ने भी अपनी प्रस्तुतियां दीं। अमित कुमार महान गायक किशोर कुमार के पुत्र हैं। अमित कुमार ने अपने गीतों से मौजूद लोगों को झुमा दिया।
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