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धर्म की खोई आस्था को पुनस्र्थापित करने में भगवान महावीर का अहम योगदान

भगवान महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक उत्सव इस बार 6 अप्रैल को मनाया जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Mar 2020 01:10 AM (IST)Updated: Mon, 23 Mar 2020 06:12 AM (IST)
धर्म की खोई आस्था को पुनस्र्थापित करने में भगवान महावीर का अहम योगदान
धर्म की खोई आस्था को पुनस्र्थापित करने में भगवान महावीर का अहम योगदान

संस, लुधियाना : जैन धर्म कोई मत या संप्रदाय नहीं, वह तो वस्तु का स्वरूप है, एक तथ्य है, तत्व है, परम सत्य है और उस परम सत्य को प्राप्त कर नर से नारायण बना जा सकता है। ऐसे विरले थे जैन धर्म के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी। भगवान महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक उत्सव इस बार छह अप्रैल को मनाया जा रहा है। महावीर ने अपनी वाणी में जो कुछ भी कहा, वह कोई नया तत्व नहीं था। वह तो सदा से सनातन है। उन्होंने मात्र धर्म में खोई हुई आस्था को ही पुनस्र्थापित स्थापित किया। उन्हीं के विचारों को ग्रहण कर बुद्धिजीवियों ने अपने-अपने तर्क से विचार रखे हैं, जो इस प्रकार से है

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:-फोटो नंबर 105 : प्रभु महावीर का कथन है कि जिदंगी हंसना तो समझना अच्छे कर्मो का फल मिल रहा है। जिदगी कलाएं तो समझना अच्छे कर्म का समय आ गया है। अगर हंसना पुण्य है तो हंसाना परम पुण्य है। हंसी तीन प्रकार की है। हंसना, अति हंसान और अकारण हंसना। हंसना कला है। अति हंसना बल है। अकारण हंसना पगला है। हंसों, क्योंकि हंसी स्वयं एक चिकित्सा है।

धर्मदेव जैन, मिन्नी किग------- फोटो नंबर 106 : मन मानव को मिला हुआ अनमोल खजाना है। कुछ साधक लोग कहते हैं-मन को मारो, मन को वश में करो। मन का काम है-मनन करना। मन में तो अनेक विचारों का आना स्वाभाविक ही है। ऐसे मन को मारना नहीं है, उसे अच्छे विचारों में लगाना। इस कथन के द्वारा प्रभु महावीर ने संसार को शिक्षा दी कि सतत् अच्छे चिंतन मनन करते रहना।

केएल दुग्गड़ जैन अमर------- फोटो नंबर 107: भगवान महावीर स्वामी कहते हैं अशुभ में प्रसाद करो। पाप में आलस्य करो। अशुभ को पाप को जितना टाल सको, टाल दो। पाप को टालने में तुम्हारा कल्याण है तथा शुभ में मंगल में क्षण भर भी प्रसाद मत करो, जो आज हो सकता है, उसे आज ही कर लो, अभी कर लो, अगले पल का भरोसा भी क्या?

श्रीपाल बरड़--------

फोटो नंबर 108 : भगवान की वाणी और गौतम कुमार की अनुभूति की वेव लेंथ एक हो चली, तो उसने ये संकल्प लिया कि शेष जीवन संसार को अर्पित न करके भगवान को अर्पित करुंगा। भगवान स्वामी ने कहा 'अहासुहं देवाणुप्पिया' जो तुम्हारी आत्मा को अनुकूल प्रतीत हो, तदनुसार कर लो।

राज कुमार बुच्चा-------

फोटो नंबर 109 : जहां तक भी इंसान को समझाया है कि पुण्य को आज ही कर लेना तथा पाप को कल पर टाल देना। कहना क्रोध कल कर लेंगे। किसी से झगड़ा करना है तो ठीक है कल कर लेंगे, झूठ बोलना है कल बोल लेंगे। किसी की हत्या करनी है तो कल कर लेंगे। किसी को गाली देनी है। ठीक है कल दे दूंगा। अशुभ को हमेशा कल पर टाल दो और क्षमा, धर्म, पुण्य, परमात्मा को आज ही कर लो, और आज यदि धर्म किया, परमात्मा को जिया, पुण्य किया, तो कल पाप कैसे कर पाओगे।

जितेंद्र जैन रशम--------

फोटो नंबर 110 : प्रभु महावीर से उनके जेष्ठ शिष्य इंद्रभूति गौतम ने पूछा-हे प्रभु जीव स्व कृत कर्म के फल को भोगता है, पर कृत को नहीं। कर्म के आठ भेद बतलाये गए हैं, जो जीव के चिंतन के अनुरूप कर्म के बंधन हो जाते हैं। जीव अच्छा सोचता है, तो शुभ कर्म का बंध लेता है। बुरा सोचता है, तो अशुभ कर्म के बंधन हो जाता है। हमारे द्वारा किसी के बारे में बुरा सोचने से उसका तो बुरा नहीं होगा, पर हमारा ही बुरा हो जाएगा।

संदीप बेदी, बेदी कंसलटेसी

फोटो नंबर 111 : प्रभु महावीर ने कहा कि जिस आत्मा को जिस इंसान को अपनी भूल नजर आनी शुरू हो जाए और दूसरे के गुण दिखाई देने लग जाएं, तो समझ लेना आप सभ्यदृष्टि जीव हो। अर्थात आप धार्मिक हो। गुरु किस लिए बनाए जाते हैं, इसलिए ताकि गुरु हमारी गलती को सुधार दें। संत और सिपाही दोनों का काम समाज सुधार का होता है। संत हिट से समझता है, और सिपाही हंटर से समझता है।

नीरज जैन, नव पंकज क्रिएशंन

फोटो नंबर 112

दुख में से सुख खोजने की कला यही है कि जो तुम्हारे पास है, उसमें जिएं। जो नहीं है उसके पीछे नहीं भागे। लेकिन मन मन की आदत है जो उसके पास है, जो उसे मिल जाता है, उसमें नहीं जीता। जो नहीं मिलता, उसके पीछे भागता है। यदि तुम्हारा एक दांत टूट जाता है तो जिह्वा बार-बार वहीं जाती है। लगता है कि एक दांत कम है। जब तक था, तब उसकी उपयोगिता उसका महत्व समझ में नहीं आता था।

संजीव जैन दुग्गड़


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