आशा मेहता, लुधियाना। अब तक सेब की खेती ठंडे इलाकों में ही होती आई है, क्योंकि वहां की जलवायु इसके अनुकूल होती है। अब मैदानी और गर्म इलाकों में भी सेब की खेती हो सकेगी।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) ने सेब की ऐसी दो किस्मों अन्ना और डोरसेट गोल्डन को करीब नौ साल के परीक्षण के बाद जारी किया है। यूनिवर्सिटी के विज्ञानियों का दावा है कि ये दोनों किस्में ‘लो चिल’ यानी की कम ठंड की जरूरत वाली हैं।
इन्हें गर्म तापमान में भी लगाया जा सकता है। हालांकि, यूनिवर्सिटी ने अभी इन दोनों किस्मों को छोटे स्तर पर किचन व न्यूट्रिशियन गार्डन में ही लगाने का ही सुझाव दिया है।
यूनिवर्सिटी के फल विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. अनिरुद्ध ठाकुर कहते हैं कि वर्ष 2013 में पीएयू ने सेब की 29 किस्मों पर शोध कार्य शुरू किया था।
ये किस्में देश और विदेश से लाई गई थीं। इनमें आठ किस्में अमेरिका से मंगवाई गई थीं। इन सभी किस्मों पर पीएयू कैंपस, बल्लोवाल सोंकड़ी, गुरदासपुरस व कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट में परीक्षण किया गया।
इन जगहों पर इन किस्मों के पौधे लगाएं और उसके परिणाम देखे। इनमें से छह किस्मों के परिणाम बेहतर मिले। इनमें अन्ना और डोरसेट गोल्डन किस्में ऐसी रहीं, जिनके सेब की गुणवत्ता और स्वाद हिमाचल के सेब के बराबर मिली।
ये दोनों किस्में 35 से 37 डिग्री सेल्सियस बर्दाश्त करने में सक्षम हैं। इनकी मिठास (टीएसएस) 12.7 से 13.3 प्रतिशत के बीच मिली, जो कि हिमाचल के सेब की तरह है, जबकि खटास (एसिडिटी) चार से पांच प्रतिशत थी।
खटास हिमाचल के सेबों से थोड़ी ज्यादा मिली। अगर इन दोनों किस्मों के सेबों को तुड़ाई के बाद फ्रिज में एक से दो दिन रखा जाता है, तो खटास का पता नहीं लगता। हालांकि, इनका आकार और रंग हिमाचल और कश्मीर के सेब की किस्मों से कम है।
अन्ना किस्म के सेब का साइज 55 से 60 मिलीमीटर ब्यास और डोरसेट गोल्डन का साइज 57.7 मिलीमीटर ब्यास है। वहीं, डोरसेट गोल्डन के प्रति पौधे से 30 किलोग्राम व अन्ना से 32 किलोग्राम फल मिल जाता है।
हिमाचल व जम्मू कश्मीर से आने वाले सेब का आकार आमतौर पर 70 से 80 मिलीमीटर ब्यास के बीच हाेता है। इनका रंग अच्छा होता है और सेब ठोस होता है। इसका कारण यह है कि फलों का रंग व ठोसपन हमेशा ठंड से आता है।
अधिक गर्मी होने पर रंग अच्छा नहीं होता है। सेब में उसके गहरे लाल रंग को पसंद किया जाता है। डोरसेट गोल्डन किस्म में सुनहरा पीला रंग और अन्ना में हल्का गुलाबी रंग आता है।
पंजाब के इन जिलों में लगाई जा सकती हैं दोनों किस्में
डा. ठाकुर कहते हैं कि इन दोनों किस्मों को पंजाब के गुरदासपुर, होशियारपुर, रूपनगर, एसबीएस नगर, पठानकोट, पटियाल, कपूरथला, अमृतसर, लुधियाना सहित माझा व दोआबा के अन्य जिलों में लगाया जा सकता है।
सेब को लगाने का सही समय जनवरी है। मार्च से जून तक इन्हें लगातार हल्के पानी की जरूरत होती है। फल आने का समय मई है। दस जून से पहले फलों की तुड़ाई हो जानी चाहिए। इसके बाद तापमान बढ़ने पर सेब खराब हो जाएगा।
तीसरे साल फल आने शुरू हो जाते हैं। गर्मी के प्रभाव को कम करने के लिए शैड नेट का प्रयोग किया जा सकता है। इससे सेब के आकार व गुणवत्ता में सुधार होता है।
इन राज्यों में भी लगाया जा रहा है सेब
पीएयू के वाइस चांसलर डा. सतबीर सिंह गोसल बताते हैं कि देश के कई अन्य राज्यों, जहां पंजाब जैसा मौसम है, वहां भी सेब लगाया जा रहा है।
इनमें असम, त्रिपुरा, सिक्कम, मणिपुर, कर्नाटक, आंधप्रदेश, तामिलनाडु सहित दक्षिण भारत के कई राज्य शामिल हैं। वहां के किसान सोलन से सेब के पौधे लेकर लगा रहे हैं।