'आज लोग लर्निग और रनिग के पीछे भाग रहे, पर लिविग भूले'
महासाध्वी वीणा महाराज ने कहा कि उम्र पाना एक पहलू है। एक तरफ जिदगी घट रही होती है और उम्र बढ़ती रहती है। यह तब तक बढ़ती रहेगी जब तक जीवन की डोर है
संस, लुधियाना : तपचंद्रिका श्रमणी गौरव महासाध्वी गुरुणी मैय्या वीणा महाराज, प्रवचन भास्कर साध्वी कोकिला कंठी गुरुणी संचिता महाराज ठाणा-5 एसएस जैन स्थानक रुपा मिस्त्री गली में सुखसाता विराजमान हैं। महासाध्वी वीणा महाराज ने कहा कि उम्र पाना एक पहलू है। एक तरफ जिदगी घट रही होती है और उम्र बढ़ती रहती है। यह तब तक बढ़ती रहेगी जब तक जीवन की डोर है कितु उस उम्र को जीना अपनी समझ अपनी दृष्टि और अपने विवेक पर निर्भर करता है। जब तक जीवन संभव समझपूर्वक नहीं जीएंगे, तब तक यही कहा जाएगा कि 100 वर्ष की उम्र तो भाई परंतु 100 वर्ष का जीवन भी जीया। यह कहना मुश्किल है जीवन विकसित जागृत होने की प्रक्रिया हो सकता है विकसित होना वर्षों में जीवन को जोड़ना है।
संचिता महाराज ने कहा कि आजकल लोग लर्निंग और रनिग के पीछे भागते हैं पर वे लिविग भूल गए हैं। मूल बात उम्र नहीं है, मायने रखता है कि जीवन का जीना, कौन कितनी सुगमता बुद्धिमता से जीता है। उसका महत्व है सिर्फ सांस लेना ही जीवन नहीं सांस को सुगंधित करके जीना जीवन है। रविद्र नाथ टैगोर ने कहा है कि जीवन जीने के लिए भोजन जरूरी है। भोजन से भी ज्यादा जरूरी पानी है, पानी से भी ज्यादा वायु और इससे भी ज्यादा जरूरी है जितनी आयु मिली है। उसे जीवंततापूर्वक जीना आजकल के आपाधापी भरे जीवन में कभी भी दिमाग की नस फटने, दिल की धड़कन रुकने मात्र से आदमी की मृत्यु हो जाती है, लेकिन वास्तविक रूप से उसकी मृत्यु तो तभी हो जाती है जिस दिन उसके अंदर से जीने का उत्साह ललक और उम्मीद मर जाती है।