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इस महिला के हौसले को सलाम; धक्के खाकर हासिल किया मुकाम, अब दूसरों के लिए बनीं 'समर्थ दीदी'

अपना करिअर बनाने के लिए खूब धक्के खाए। उन्हीं धक्कों ने इतना मजबूत कर दिया कि आज महिलाओं के लिए समर्थ दीदी बन गई हैं।

By Sat PaulEdited By: Published: Mon, 21 Jan 2019 04:47 PM (IST)Updated: Mon, 21 Jan 2019 04:47 PM (IST)
इस महिला के हौसले को सलाम; धक्के खाकर हासिल किया मुकाम, अब दूसरों के लिए बनीं 'समर्थ दीदी'
इस महिला के हौसले को सलाम; धक्के खाकर हासिल किया मुकाम, अब दूसरों के लिए बनीं 'समर्थ दीदी'

लुधियाना, [भूपेंदर सिंह भाटिया]। वह दोनों पैरों से दिव्यांग हैं। अपना करिअर बनाने के लिए खूब धक्के खाए। उन्हीं धक्कों ने इतना मजबूत कर दिया कि आज महिलाओं के लिए 'समर्थ दीदी' बन गई हैं। आज वह अपने एनजीओ समर्थ के जरिए महिलाओं को ही नहीं, गंभीर बीमारियों के मरीजों की आशा की किरण बन गई हैं, जो इलाज करवाने में समर्थ नहीं हैं। हम बात कर रहे हैं लुधियाना डिस्ट्रिक्ट कोर्ट की वकील दीप्ति सलूजा की। उनका कहना है कि लोगों की गरिमा बनाए रखते हुए उन्हें उनका हक दिलाना ही उनका उद्देश्य है।

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एडवोकेट बनने की रोचक कहानी

सीएमसी के पास मोहन सिंह नगर में रहने वाली दीप्ति की एडवोकेट बनने की भी बड़ी रोचक कहानी है। जब उनकी उम्र 35 साल थी, तो वह बुटीक चलाती थीं। उन्होंने अपना कारोबार बढ़ाना था। सरकारी स्कीम पाने के लिए आवेदन किया। पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद उन्हें सरकारी स्कीम के लिए काफी धक्के खाने पड़े। उसके बाद उनके परिचित के वकील ने उन्हें स्कीम पाने की प्रक्रिया बताई, जिसमें वह सफल हो गईं। उसके बाद उन्होंने अपने जैसे जरूरतमंद लोगों को समर्थ बनाने की ठानी और माता-पिता से एलएलबी करने की बात कही। पहले तो अभिभावक चकित हुए कि इस उम्र में वह एलएलबी कर पाएगी, जबकि वह खुद दिव्यांग हैं। हालांकि अभिभावकों ने बेटी की जिद मान ली और दीप्ति ने पूरी लगन से पढ़ाई कर एलएलबी पूरी कर ली। बकौल दीप्ति डिग्री पाने के बाद भी कोई सीनियर वकील दिव्यांग को अपने साथ काम में रखने को तैयार नहीं हुआ। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और खुद प्रैक्टिस शुरू कर दी।

राइट टू इंफॉर्मेशन एक्ट में पहली जीत

दीप्ति कहती हैं कि एलएलबी करने के दौरान उन्हें फीस की जरूरत थी। केंद्र सरकार की ओर से दिव्यांग वकीलों और डॉक्टरों को स्कॉलरशिप मिलती है। जब उन्होंने इसके लिए आवेदन किया, तो वहां से जबाव आया कि पंजाब के लिए स्कीम नहीं है। इसके बाद उन्होंने आरटीआइ के तहत जानकारी मांगी और फिर पता चला कि स्कीम सभी दिव्यांगों के लिए है। आरटीआइ से सूचना मिलने के बाद उन्होंने अपना हक पाया। यह राइट टू इंफॉर्मेशन एक्ट में उनकी पहली जीत हुई। फिर उन्होंने तय किया कि वह समाज के वैसे लोगों की मदद करेंगी, जो अपना अधिकार नहीं पा सकी हैं।

कैंसर और गंभीर बीमारी के मरीजों को नहीं है जानकारी

दीप्ति के अनुसार कैंसर और हार्ट अटैक जैसी बीमारियों के लिए केंद्र सरकार की कई योजनाएं हैं। कैंसर के मरीज को केंद्र से पांच लाख रुपये तक की मदद मिलती है, लेकिन गरीब मरीज को यह पता ही नहीं कि उसे कैसे हासिल करना है। वह न सिर्फ गरीबों के लिए पूरी प्रक्रिया के फॉर्म भरती हैं, बल्कि उन्हें उनका हक दिलाने के लिए भी यत्न करती हैं।

रात को सुनती हैं जरूरतमंदों की समस्याएं

पूरा दिन वकालत करने के बाद रात को लगती है दीप्ति की अदालत। यानि लोगों की समस्याएं सुनने का काम रात आठ बजे शुरू होता है। वह फोन पर ही लोगों की समस्याएं सुनती हैं और उनका समाधान करती हैं। दीप्ति कहती हैं कि रात आठ बजे के बाद उनके पास फोने आने शुरू हो जाते हैं। पंजाब ही नहीं, महाराष्ट्र, बंगाल, गुजरात जैसे राज्यों से लोग फोन पर अपनी समस्याएं बताते हैं। वह उन्हें उनका अधिकार दिलाने की प्रक्रिया बताती हैं।

फेसबुक के माध्यम से भी बांट रहीं जानकारी

दीप्ति अपने कामों की जानकारी लोगों तक फेसबुक के माध्यम से पहुंचा रही हैं। मोटीवेशल स्पीच और अहम जानकारी के वीड‍ियो बनाकर फेसबुक पर अपलोड कर देती हैं। दीप्ति महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए उन्हें स्वरोजगार कैसे पाना है, वह भी बताती हैं। दीप्ति के अनुसार दिल्ली की एक दिव्यांग अंग्रेजी माध्यम से पढ़ी लिखी थीं। उन्होंने जब उन्हें फोन पर कोई रोजगार बताने को कहा तो उन्होंने उसे मोटिवेशनल स्पीकर बनने की सलाह दी। वह अंग्रेजी में मोटिवेशनल स्पीच देने लगीं।

घरेलू हिंसा के केस भी हल करती हैं दीप्ति

दीप्ति के पास घरेलू हिंसा के कई केस पहुंचते हैं। वह कहती हैं कि पहले तो वह उनमें आपसी तालमेल के जरिये समस्या हल करने की कोशिश करती हैं, लेकिन जब कोई हल नहीं निकलता तो वह पीड़‍ित को बताती हैं कि किसी तरह वह अपना अधिकार पा सकते हैं। दीप्ति लोगों को संदेश देती हैं कि किस्मत के भरोसे रहने वाले को उतना ही मिलता है, जितना प्रयास करने वाले छोड़ देते हैं।

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