जीवन की दौड़ में गिरना नहीं, बल्कि गिरे रहना बुरी बात है
एसएस जैन सभा शिवपुरी के तत्वाधान में जारी चातुर्मास सभा में अचल मुनि ने प्रवचन किए।
संस, लुधियाना
एसएस जैन सभा शिवपुरी के तत्वाधान में जारी चातुर्मास सभा में अचल मुनि ने कहा कि आज महल के बाहर एक प्लेट लगाने का रिवाज चल रहा है- कुत्तों से सावधान। पर मानव महल में कौन से कुतों से सावधान रहना है। वो हैं चार कषायों के कुत्ते। जिस तरह से एक बार का चढ़ा बुखार इंसान के 6 माह की ताक को खत्म कर देता है, वैसे ही क्रोध भी आदमी को भीतर से खोखला कर देता है। क्रोध एक लाइलाज बीमारी है और संतों के प्रवचन इस बीमारी की शर्तिया दवा है। संतों का प्रवचन दवा भी है और दुआ भी है। दवा इसलिए है कि वे करेला का काम करते हैं और दुआ इसलिए है कि नहले पर दहले का काम करते हैैं। संतों के प्रवचन पानी नहीं, जिसे गटागट करके पी जाएं। वो तो चाय है ,जिसे घूंट-2 करके पीना है और उम्र भर जीना है। उन्होंने कहा कि ये क्रोध, मान, इंसान को बार-बार गिराता है। अरे जो वस्तु हमें गिराती है, नीचा दिखाती है उसे छोड़ देना ही अच्छा है। जीवन की दौड़ में गिरना बुरी बात नहीं है, बल्कि गिरे रहना बुरी बात है। चलोगे, तो गिरोगे भी। गिरता वहीं है, जो चलता है। उन्होंने कहा कि घृणा क्रोध की मां है, उपेक्षा। इस क्रोध के खानदान से हमेशा दूर रहें। क्रोध अनेकों दोषों का उत्पादक है। इसे करने से सुख विकराल हो जाता है। शरीर कांपने लग जाता है। अतिशय मुनि ने कहा कि जिदगी में सदा विनीत बन कर रहो, विनीत को ही गुरु की प्राप्ति होती है। जिदगी में जब मुसीबत आए तो हो सकते तो किसी से मदद मत मांगना, क्योंकि मुसीबत चार दिन के और अहसान जिदगी भर का।