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अभय ओसवाल परिवार के शेयर विवाद का मामला सुलझा, सुप्रीम कोर्ट ने NCLT के आदेश को रद किया

सुप्रीम कोर्ट ने अभय ओसवाल ग्रुप में शेयरों की विरासत को लेकर चल रहे पारिवारिक झगड़े में पंकज ओसवाल के पक्ष में दिए गए आदेश को रद्द कर दिया है।

By Edited By: Published: Thu, 09 Jul 2020 01:20 AM (IST)Updated: Thu, 09 Jul 2020 09:25 AM (IST)
अभय ओसवाल परिवार के शेयर विवाद का मामला सुलझा, सुप्रीम कोर्ट ने NCLT के आदेश को रद किया
अभय ओसवाल परिवार के शेयर विवाद का मामला सुलझा, सुप्रीम कोर्ट ने NCLT के आदेश को रद किया

लुधियाना, जेएनएन। सुप्रीम कोर्ट ने अभय ओसवाल ग्रुप में शेयरों की विरासत को लेकर चल रहे पारिवारिक विवाद में, एनसीएलटी और एनसीएलएटी, चंडीगढ़ द्वारा पंकज ओसवाल के पक्ष में दिए गए आदेश को रदकर दिया है। एनसीएलएटी के ऑर्डर के मुताबिक पंकज ओसवाल को कानूनी वारिस मानते हुए पिता अभय ओसवाल की मौत के बाद उनके शेयरों में एक चौथाई हिस्से का हकदार माना था। जिस पर एनसीएलटी दिल्ली ने भी अपनी मुहर लगा दी थी।

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इसके बाद पंकज ओसवाल की मां अरुणा ओसवाल ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। अरुणा ओसवाल का कहना था कि उनके पति ने 29 मार्च 2016 को निधन से बहुत पहले कंपनी के शेयरों में ही उनके नाम पर नॉमिनेशन की प्रक्रिया कर दी थी। जिसमें साफ लिखा था की उनके बाद उनके यह शेयर उनकी पत्नी को ही ट्रांसफर किए जाएं सकते हैं। इसलिए वैध रूप से कंपनी ने उनके पति की मृत्यु के उपरांत उनके नाम पर शेयर ट्रांसफर किए हैं। अरुणा ओसवाल ने तर्क दिया है कि उन्हें परिवार द्वारा पंकज का बहिष्कार कर दिया गया था।

इसके अलावा कंपनी मामलों से उनका कोई लेना-देना नहीं है। क्योंकि वह 2001 से ऑस्ट्रेलिया में स्थानांतरित हो गए थे और वहां कारोबार कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जस्टिस अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने अपने फैसले में ठहराया की कंपनी लॉ की धारा 241 , 242 के तहत याचिका दायर करने के लिए पंकज ओसवाल के पास निर्धारित संख्या 10 प्रतिशत शेयर नहीं थे। इसलिए एनसीएलटी के समक्ष उनकी याचिका चल ही नहीं सकती थी। इसके अलावा उनकी तरफ से संपत्ति विवाद को लेकर सिविल सूट भी चल रहा है। ये सभी विवाद हल करने की सही जगह सिविल कोर्ट है। उनका निर्णय ही अंतिम होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने सिविल कोर्ट से केस को जल्दी निपटाये जाने के लिये कहा है। सिविल सूट की पेंडेंसी के बावजूद, पंकज ओसवाल ने एनसीएलएटी, चंडीगढ़ में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने कुप्रबंधन का आरोप लगाया गया था। फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने उल्लेख किया कि पंकज ओसवाल ने सिविल सूट दाखिल करने के बाद मई, 2017 में ओएएमएल में 0.03 प्रतिशत तक हिस्सेदारी को खरीद लिया। इसके बाद, 2018 में उन्होंने कंपनी याचिका दायर की। जिसमें उन्होंने उत्पीड़न और कुप्रबंधन का आरोप लगाया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लंबित सिविल सूट की वजह से एनसीएलटी के समक्ष कार्यवाही पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष ओएएमएल, ओजीएल और अरुणा ओसवाल द्वारा दायर अपीलों में निर्णय पारित किया गया है। पंकज ओसवाल ने अपनी मां और छोटे भाई-बहनों के खिलाफ दिल्ली के उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका भी दायर की है। जिसमें उनके पिता की संपत्ति का 1/4 हिस्सा होने का दावा किया गया है।


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