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सांप्रदायिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल, यहां गुरु का घर और अल्लाह का दर साथ-साथ

फतेहगढ़ साहिब की पवित्र धरती पर सांप्रदायिक सौहार्द देखने को मिलता है। यहां मस्जिद व गुरुद्वारा एक ही परिसर में हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 26 Dec 2019 01:18 PM (IST)Updated: Fri, 27 Dec 2019 01:01 PM (IST)
सांप्रदायिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल, यहां गुरु का घर और अल्लाह का दर साथ-साथ
सांप्रदायिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल, यहां गुरु का घर और अल्लाह का दर साथ-साथ

फतेहगढ़ साहिब [धरमिंदर सिंह]। सिखों और मुगलों के बीच संग्राम की दास्तां को यादों में संजोए फतेहगढ़ साहिब की पवित्र धरती पर सांप्रदायिक सौहार्द देखने को मिलता है। यहां मस्जिद व गुरुद्वारा एक ही परिसर में हैं। किसी समय सफेद चितियां मस्जिद में ही एक सदी तक श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश होता रहा। बाद में नया गुरुद्वारा श्री मस्तगढ़ साहिब भी इसी परिसर में बना, लेकिन मस्जिद को हटाया नहीं गया। आज भी गुरुद्वारे के ग्रंथी ही मस्जिद की देखरेख करते हैं।

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गांव महदियां की मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां के शासनकाल में हुआ था। इतिहासकारों का मानना है कि मस्जिद के काजी ने गुरु गोबिंद सिंह के छोटे साहिबजादों को मौत की सजा सुनाने के सरहिंद के नवाब वजीर खान के फैसले को मुस्लिम शरीयत के खिलाफ बता विरोध किया था। यही कारण रहा कि मुगलों पर हमले के दौरान बाबा बंदा सिंह बहादुर ने पूरे सरहिंद को तहस-नहस कर दिया, लेकिन मस्जिद को कुछ नहीं किया। काजी की बेगुनाहों पर जुल्म की विरोधी सोच ने इसके अस्तित्व को आज भी बचाकर रखा है और उनकी सोच को सलाम करते हुए आज भी सिख संगत मस्जिद की देखरेख कर रही है। 26 दिसंबर से शुरू शहीदी सभा में हजारों की संख्या में संगत यहां पहुंच रही है।

ग्रंथी व सिख संगत कर रही संभाल

पिछले छह वर्ष से मस्जिद की संभाल कर रहे ग्रंथी जीत सिंह कहते हैं, जब वह गुरुद्वारे में आए थे तो मस्जिद काफी बदहाल थी। वह रोजाना मस्जिद की सफाई करते हैं। हालांकि यहां नमाज अदा करने बहुत कम लोग आते हैं, लेकिन फिर भी पवित्रता कायम रखने के लिए मस्जिद की मरम्मत व सफाई करवाई जाती है।

पाकिस्तान से भी आते हैं सजदा करने

मस्जिद में सजदा करने पाकिस्तान से भी मुस्लिम आते हैं। वार्षिक उर्स या जमात में मुसलमान यहां विशेष तौर पर आते हैं।

मस्जिद का प्रयोग होता था गुरुद्वारे के रूप में

सिखों के धार्मिक नेता अजरुन सिंह सोढ़ी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब का मस्जिद के भीतर प्रकाश करके 101 श्री अखंड पाठ करवाए थे। समारोह में आसपास के 52 गांवों की संगत शामिल हुई थी। उसके बाद एक सदी तक मस्जिद का उपयोग गुरुद्वारे के रूप में होता रहा। 20वीं सदी की शुरुआत में बस्सी पठाना के कुछ मुसलमानों ने एतराज जताया तो पटियाला के तत्कालीन महाराजा ने हस्तक्षेप कर मुस्लिम समुदाय को शांत किया था और मस्जिद में गुरुद्वारा बनवाया।

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