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धर्म, सत्य, अहिसा व क्षमा का संगम थे 24वें तीर्थकर भगवान महावीर

लुधियाना भगवान महावीर अहिसा और अपरिग्रह की साक्षात मूर्ति थे। वह सभी के साथ समान भाव रखते थे और किसी को कोई दुख नहीं देना चाहते थे। पंचशील सिद्धांत के प्रवर्तक एवं जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी मूर्तिमान प्रतीक थे। जिस युग में हिसा पशुबलि जात-पात के भेदभाव का बोलबाला था उसी युग में भगवान महावीर ने जन्म लिया। भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म सत्य अहिसा और अपरिग्रह क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। उनकी महिमा को दूसरों तक पहुंचा रहे बुद्धिजीवियों के विचार।

By JagranEdited By: Published: Fri, 20 Mar 2020 05:00 AM (IST)Updated: Fri, 20 Mar 2020 06:12 AM (IST)
धर्म, सत्य, अहिसा व क्षमा का संगम थे 24वें तीर्थकर भगवान महावीर
धर्म, सत्य, अहिसा व क्षमा का संगम थे 24वें तीर्थकर भगवान महावीर

संस, लुधियाना

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भगवान महावीर अहिसा और अपरिग्रह की साक्षात मूर्ति थे। वह सभी के साथ समान भाव रखते थे और किसी को कोई दुख नहीं देना चाहते थे। पंचशील सिद्धांत के प्रवर्तक एवं जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी मूर्तिमान प्रतीक थे। जिस युग में हिसा, पशुबलि, जात-पात के भेदभाव का बोलबाला था, तब भगवान महावीर ने जन्म लिया। भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिसा, अपरिग्रह व क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। उनकी महिमा के बारे में जैन समुदाय के बुद्धिजीवियों ने अपने विचार रखे।

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भगवान महावीर स्वामी ने हमें अहिसा का पालन करते हुए सुख दुख में संयमभाव में रहते हुए आकुल-व्याकुल हुए बिना धर्म संगत कार्य करते हुए मोक्ष पद पाने की ओर कदम बढ़ाते हुए दुर्लभ जीवन को सार्थक बनाने का संदेश दिया।

-समाजसेवक, कीमती लाल जैन।

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भगवान महावीर स्वामी की शिक्षाओं से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम सभी को आपसी भेदभाव मिटाकर भाईचारे तथा प्यार से समाज में रहना चाहिए। हमें आपस में नहीं बल्कि समाज की बुराइयों से लड़ना चाहिए।

-नरेश जैन शारु।

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भगवान महावीर कहते हैं कि धर्म सबसे उत्तम मंगल है। अहिसा, संयम और तप ही धर्म है। जिसके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। धर्म भावना से चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म व्यक्ति के आचरण को पवित्र एवं शुद्ध बनाता है।

-सुभाष जैन, महावीर शूटिग।

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भगवान महावीर ने समाज को अहिसा और धर्म का रास्ता दिखाया है। हमें उसी प्रकार से उस रास्ते का अनुसरण करना चाहिए। भगवान महावीर ने अपना सारा जीवन समाज सेवा में अर्पण किया है। हमें उनके जीवन से शिक्षाएं लेनी चाहिए।

-अशोक जैन, हाईलैंड।

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आधुनिक युग में हमारा स्वभाव बदले और हम हर क्षण महावीर बनने की तैयारी में जुटें। तभी महावीर जयंती मनाना सार्थक होगा। इसलिए सभी आगे आएं, भगवान महावीर का अनुसरण कर सभी को इस मार्ग में सम्मलित करें।

-संजीव जैन, जैन उदय ग्रुप।

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भगवान महावीर ने कहा था कि अहिसा ही सुख-शांति देने वाली है। अहिसा ही संसार का उद्धार करने वाली है। यही मानव का सच्चा धर्म व सच्चा कर्म है। इसलिए सत्य के मार्ग पर चलें। हालांकि, सत्य का मार्ग कठिन है, लेकिन नामुमकिन नहीं।

-नरेंद्र जैन निदी।

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त्याग व संयम, प्रेम व करुणा, शील व सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ की स्थापना की। देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूमकर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया। उन्होंने दुनिया को सत्य व अहिसा जैसे खास उपदेशों के माध्यम से सही राह दिखाने की कोशिश की।

-ज्ञानचंद जैन, एमसी।

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महावीर की पहचान अहिसा से है और विश्व का भविष्य अहिसा है। आज हिसा और आतंकवाद से घिरी दुनिया में अमन चैन लाने के लिए अहिसक शक्तियों को आगे आना होगा। थोड़ी सी हिम्मत और ईमानदारी से दुनिया को स्वर्ग में तबदील किया जा सकता है। छोटी सी चिगारी ज्वाला बन जाती है। दुनिया में खून-खराबा बहुत हो चुका। अब अहिसक इससे निजात दिलाने आगे आएं।

-संजीव जैन टोनी।

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जीवन में बोए, सब कर्मो के बीच। प्रमाद मत करो। आलस और प्रमाद जीवन के शत्रु हैं। आंतरिक शक्तियों पर प्रयत्न सामान्यतया कम होता है। जिसने आंतरिक शक्तियों पर नियंत्रण करने का प्रयत्न किया, वहीं व्यक्ति विश्व विजेता बना। भगवान महावीर ने आंतरिक शक्तियों को जीतने पर बल दिया।

-संजय जैन।

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विरहा शास्त्रों के अनुसार कर्मो के फल निश्चित हैं। जैसा बोया, वैसा ही वृक्ष बनेगा और वैसे ही फूल व फल लगेंगे। अब अगर बीज को बोया ही नहीं जाए, तो फल की आशा रखना समझदारी नहीं होगी। त्याग व संयम, प्रेम व करुणा, शील व सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था।

-विजय जैन, जैन पैकेवल।


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