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आत्मा की शुद्धि के लिए मनाया जाता है पर्यूषण पर्व

भारतीय संस्कृति में पर्वों एवं त्योहारों की समृद्ध परंपरा है। पर्यूषण इसी परंपरा में जैन धर्म का एक महान पर्व है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 09 Aug 2020 05:45 AM (IST)Updated: Sun, 09 Aug 2020 05:45 AM (IST)
आत्मा की शुद्धि के लिए मनाया जाता है पर्यूषण पर्व
आत्मा की शुद्धि के लिए मनाया जाता है पर्यूषण पर्व

संस, लुधियाना : भारतीय संस्कृति में पर्वों एवं त्योहारों की समृद्ध परंपरा है। पर्यूषण इसी परंपरा में जैन धर्म का एक महान पर्व है। पर्यूषण का शाब्दिक अर्थ है चारों ओर से सिमट कर एक स्थान पर निवास करना या स्वयं में वास करना। इस अवधि में व्यक्ति आधिए, व्याधि और उपाधि की चिकित्सा कर समाधि तक पहुंच सकता है। पर्यूषण पर्व परमात्मा के निकट जाने के लिए व आत्मा की शुद्धि के लिए मनाया जाता है, अगर हमारे व्यवहार और स्वभाव से किसी को किसी भी प्रकार से पीड़ा पहुंची है तो उनका चितन करने के लिए क्षमा याचना का पर्व है। यह पर्व समताए, सरलता व सहिष्णुता के साथ समन्वय और प्रेम को जीवन में आत्मसात करता है। पर्यूषण पर्व 15 अगस्त से आरंभ होगा और इस पर बुद्धिजीवियों ने अपने विचार रखे।

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विनोद जैन सीएचई, सुनील जैन, विनोद जैन ने कहा कि पर्यूषण पर्व भाद माह में आठ दिनों तक मनाया जाता है। यह माह प्राकृतिक सौंदर्य से भरा होता है। जिसमें न केवल जैनए बल्कि जैनेतर लोग भी अतिरिक्त पूजा पाठ पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। हमारे धर्म शास्त्रों में लिखा है कि प्रेम अखंड है। वह कभी नहीं मरता। बल्कि क्षमाभाव से वह और अधिक जागृत होता है। प्रेम देंगे तो प्रेम मिलेगा। लेकिन किसी को क्षमा करेंगे तो वही प्रेम दुगनी मात्रा में मिलता है।

रमेश जैन स्वास्तिक, संदीप बहल, नीलम जैन कंगारु ने कहा कि भगवान महावीर के जीवन में इसे साक्षात देखा जा सकता है। उनके सिद्धांत को जीवन में उतारना वर्तमान हालातों में अत्यंत आवश्यक है। भगवान महावीर से आज समस्त विश्व इतना स्नेह करता है। उनके धर्म मार्ग को स्वीकारता है एवं उनके प्रति अत्यंत आस्था जताता है। जैन धर्म में पर्यूषण पर्व का विशेष महत्व है इस कारण भी है कि यह मनुष्य को क्षमा के रास्ते मोक्ष के मार्ग पर प्रवृत्त करता है।

सुरेश जैन, राज कुमार बुच्चा, विजय के जैन ने कहा कि शारीरिक शुद्धि के साथ मन की सात्विकता को भी श्रेष्ठ बनाने की पद्धति निहित है। संपूर्ण संसार में पर्यूषण ही एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें मनुष्य आत्मरत होकर आत्मार्थी बनता है। हमारे साधु संतों के उपदेशों में स्पष्ट व्याख्या है कि पर्युषण पर्व हमें अपनी आत्मा के जागरण का संदेश देता है और हम उसी के अनुरूप जीकर अपनी सोई हुई आत्मा को जगाते हैं।


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