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787 बंधुआ मजदूरों को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवा चुके हैं दिनेश

2012 के बाद बंधुआ मजदूरों को मुक्त करवाने का ऐसा कोई भी अभियान नहीं है जिसमें समाजसेवक दिनेश कुमार का योगदान न हो।

By JagranEdited By: Published: Wed, 22 Jan 2020 04:30 AM (IST)Updated: Wed, 22 Jan 2020 04:30 AM (IST)
787 बंधुआ मजदूरों को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवा चुके हैं दिनेश
787 बंधुआ मजदूरों को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवा चुके हैं दिनेश

राजेश शर्मा, लुधियाना : 2012 के बाद बंधुआ मजदूरों को मुक्त करवाने का ऐसा कोई भी अभियान नहीं है जिसमें समाजसेवक दिनेश कुमार का योगदान न हो। बाल मजदूरों के खिलाफ कुछ भी हो वहां 37 वर्षीय यह नौजवान अपनी टीम के साथ खड़ा मिलेगा। 'बचपन बचाओं आंदोलन' के संस्थापक नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की विचारधारा से प्रेरित होकर दिनेश इन आठ वर्षो में 787 बंधुआ बाल मजदूरों को मुक्त करवा चुके हैं।

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इन बच्चों को मुक्त करवाना, मजदूरी करवाने वाले रसूखदारों के खिलाफ एफआइआर दर्ज करवाने के लिए सक्रिय दिनेश को जिला प्रशासन से गिला है कि वह बच्चों को मुक्ति प्रमाणपत्र जारी नहीं करते।

दिनेश कुमार बताते हैं कि बंधुआ मजदूरों की सूचना मिलना उसके बाद उन्हें मुक्त करवाना अभियान का छोटा सा हिस्सा मात्र है। असल कार्य तो इनको जिला प्रशासन से मुक्ति प्रमाणपत्र दिलवाना है। क्योंकि बाल मजदूरी के खिलाफ बनाए गए कानून के मुताबिक अगर जिला प्रशासन इन बच्चों को मुक्ति प्रमाणपत्र जारी करे तो प्रदेश सरकार को उन्हें मुआवजे के तौर पर दो लाख रुपये की राशि देनी पड़ती है। कानून के मुताबिक मई 2016 से पहले मुक्त करवाए गए मजदूरों को 20 हजार व इसके बाद वालों को दो लाख रुपये प्रति मजदूर प्रदेश सरकार द्वारा किए जाने वाला भुगतान अनिवार्य है। इसके अलावा उनके लालन पालन का खर्च भी प्रदेश सरकार को उठाना पड़ता है। इसी के चलते प्रशासनिक अधिकारी यह प्रमाणपत्र जारी करवाने में आनाकानी करते हैं।

दिनेश बताते हैं कि 2010 में डेरा ब्यास में नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी आए थे। वहां उन्होंने बाल मजदूरी के खिलाफ चलाए गए अभियान की विस्तार से जानकारी दी। उन्हीं से प्रभावित होकर इस मिशन से जुड़ गए। 2012 में सक्रिय होकर बंधुआ मजदूरों को मुक्त करवाने का अभियान छेड़ दिया। जहां भी इस कैटगरी के मजदूरों की सूचना मिलती है जिला टास्क फोर्स को लेकर वहां पहुंच जाते हैं। यहीं नहीं इसके अलावा समाज सेवी संस्थाओं को भी इस कार्य के लिए प्रेरित करते हैं।

अधिकतर बाल मजदूर यूपी या विहार से

दिनेश का दावा है कि जिन मजदूरों को हम लोग मुक्त करवाते हैं उनमें से अधिकतर यूपी व बिहार से ही संबधित होते हैं। दर्जनों केस ऐसे निकले जिसमें इन मजदूरों ने महीनों से फैक्ट्री के बाहर कदम ही नहीं रखा। नाममात्र मजदूरी देकर इन मासूमों से दिन में 12 घंटे काम लिया जा रहा था। शहर में इनका कोई परिजन भी नहीं रह रहा था। वहां से मुक्त करवाकर उन्हें अपने सहयोगी मजदूरों के साथ यूपी या बिहार के दूरदराज इलाकों में बसे इनके परिजनों के पास पहुंचाने का कार्य भी किया जा रहा है।


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