Move to Jagran APP

एक Idea जिसने बदल की जिंदगी, Income और रोजगार देने का जरिया ऐसे बन गया गोबर

बायोगैस प्लांट में गोबर को मिक्सचर में डालकर पानी के साथ उसका घोल तैयार किया जाता है। इससे जो मीथेन गैस बनती है उसेे पाइपों के जरिये 43 घरों में सप्लाई किया जाता है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 17 Sep 2019 01:13 PM (IST)Updated: Wed, 18 Sep 2019 08:30 AM (IST)
एक Idea जिसने बदल की जिंदगी, Income और रोजगार देने का जरिया ऐसे बन गया गोबर
एक Idea जिसने बदल की जिंदगी, Income और रोजगार देने का जरिया ऐसे बन गया गोबर

जगराओं [बिंदु उप्पल]। डेयरी उद्योग से काफी लोगों को रोजगार मिलता है, लेकिन यह कारोबार अपनाने वालों की सबसे बड़ी समस्या होती है कि पशुओं के गोबर को कैसे ठिकाने लगाया जाए। इस समस्या का हल लेकर आई है पंजाब की लांबड़ा-कांगरी कोऑपरेटिव सोसायटी। सोसायटी घर-घर से गोबर जमा कर मीथेन गैस बनाती है।

loksabha election banner

जमा किया गोबर होशियारपुर के लांबड़ा-कांगरी गांव में लगे गोबर गैस प्लांट पर भेजा जाता है, जहां गोबर गैस प्लांट से मीथेन गैस तैयार की जाती है। यह मीथेन गैस गांव के 43 घरों में सप्लाई की जाती है। गोबर की बची खाद को भी किसानों को बेच दिया जाता है। लांबड़ा-कांगरी कोऑपरेटिव सोसायटी के जसविंदर सिंह ने यह प्रोजेक्ट स्थापित करने के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय से तकनीकी मदद ली। इस प्रोजेक्ट पर सोसायटी के 32 लाख रुपये खर्च हुए थे।

दक्षिण कोरिया से मिला आइडिया

जसविंदर सिंह बताते हैं, ‘मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन और हायर डिप्लोमा इन कोऑपरेटिव मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद मैं अपने गांव की लांबड़ा-कांगरी कोऑपरेटिव सोसायटी का काम देखने लगा। वर्ष 2014 में सोसायटी की ओर से दक्षिण कोरिया गया। वहां पर मैंने देखा कि लोग फालतू चीजों को रीसाइकिल कर फिर से इस्तेमाल में लाते थे। वे पशुओं के गोबर को भी बेकार नहीं जाने देते। इसके विपरीत हमारे देश में पशुपालक गोबर को एक खाली जगह पर फेंकना शुरू कर देते हैं। इससे गंदगी फैलती है। उसी में से कुछ गोबर को वैसे ही खेतों में डालते हैं। इससे खेतों की मिट्टी उपजाऊ होने के बजाय उसमें जहरीले तत्व पैदा हो जाते हैं।’

जसविंदर बताते हैं, ‘मैं दक्षिण कोरिया से वापस आया और पंजाब के कृषि सचिव काहन सिंह पन्नू से बात की। पन्नू ने मुझसे गांव में बायोगैस प्लांट स्थापित करने की बात कही। मैंने पीएयू के डॉ. सरबजीत सिंह सूच से संपर्क किया। डॉ. सूच ने पहले इस प्रोजेक्ट पर काम करने से रोका। उनका कहना था कि सूबे में कई बायोगैस प्लांट पर काम शुरू किया गया, लेकिन कोई भी प्लांट पूरा नहीं हो सका। मैंने कहा कि मैं इस प्लांट पर काम शुरू करूंगा। वे सहयोग करें। इस परियोजना पर काम शुरू हुआ और वर्ष 2016 में गोबर गैस प्लांट स्थापित हो गया।’

घरों में पाइप के जरिये सप्लाई की जाती है गैस

बायोगैस प्लांट में गोबर को मिक्सचर में डालकर पानी के साथ उसका घोल तैयार किया जाता है। इससे जो मीथेन गैस बनती है, उसको दो किलोमीटर दूरी में फैले 43 घरों में एचडीपीई पाइपों के जरिये सप्लाई किया जाता है। उसके बाद बची प्राकृतिक खाद को किसानों को बेच दिया जाता है।

इस गैस का इस्तेमाल लोग खाना बनाने में करते हैं। एक माह का मीथेन गैस का खर्च 276 रुपये आता है, जबकि घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत 600 रुपये से अधिक है। प्लांट में बचे गोबर के घोल को किसानों को बेच दिया जाता है। इससे सस्ती ऑर्गेनिक खाद मिल जाती है, जिससे जमीन उपजाऊ बन जाती है। गोबर का पांच हजार लीटर घोल 800 रुपये में बिकता है।

हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.