Kapurthala News: आजादी के 75 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे सुल्तानपुर रूरल बस्ती के लोग
विधानसभा क्षेत्र सुल्तानपुर लोधी में भी एक बस्ती ऐसी हैजिसकी पंचायत के पास अपनी कहे जाने वाली एक इंच जमीन तक नहीं है। शहर के रेलवे स्टेशन के ठीक सामने बसी सुल्तानपुर रूरल बस्ती के घरों में आ रहा पानी भी पड़ोसी गांव डेरा सैय्यदां की टंकी पर निर्भर है।
कपूरथला, जागरण संवाददाता। आजादी के 75 वर्ष बाद भी पंजाब में कई गांव ऐसे हैं, जहां के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। विधानसभा क्षेत्र सुल्तानपुर लोधी में भी एक बस्ती ऐसी है, जिसकी पंचायत के पास अपनी कहे जाने वाली एक इंच जमीन तक नहीं है। शहर के रेलवे स्टेशन के ठीक सामने बसी सुल्तानपुर रूरल बस्ती के निवासियों ने बताया कि उनके घरों में आ रहा पानी भी पड़ोसी गांव डेरा सैय्यदां की टंकी पर निर्भर है। पेयजल समस्या लंबे समय से समाधान को लेकर प्यासी है।
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आलम यह है कि डेरा सैय्यदां में सरकारी मोटर चलने के बाद नलों से गंदा और बदबूदार पानी आता है। लोग नलों को तब तक खुला छोड़े रखते हैं, जब तक पानी का रंग साफ न हो। बस्ती निवासी राजा नैय्यर ने बताया कि इस गांव के लोग विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं। उनका जीवन नरक समान है। युवा कार्यकर्ता डा. सुरिंदरपाल ने कहा कि गांव के लोग वर्षों से समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन्हें सुलभ जीवनयापन के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं हैं। उन्हें मताधिकार तो मिला है, लेकिन इसका फायदा चुनाव लड़ने वालों तक सीमित है।
नेताओं के पास नहीं है समय
चुनाव जीतने के बाद विधायक-सांसदों को इस गांव की बेहतरी के लिए समय नहीं मिला। ये हालात यकायक नहीं बने, बल्कि गांव के अस्तित्व के बाद से ही उपेक्षा का दंश इस गांव के लोग भोगते आ रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इस गांव में न तो पेयजल की उपलब्धता के लिए कोई सरकारी योजना संचालित है, न ही सीवर को संभालने हेतु ट्रीटमेंट प्लांट है। वातावरण प्रेमी संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने रेलवे स्टेशन को गोद लेकर देसी ट्रीटमेंट प्लांट की सुविधा गांव निवासियों को दी थी, तब से प्रशासनिक अधिकारी उससे ही काम चला रहे हैं।
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सुविधाओं के लिए तरह रहा गांव
लोग बीमार स्वजन को चारपाई पर लेटाकर ले जाते हैं। शहर बस्ती निवासी बताते हैं कि शिक्षा की सुविधा के नाम पर तंग गली में छोटा सा प्राइमरी स्कूल है। यदि किसी घर में कोई बीमार पड़ जाए तो यहां पर एक डिस्पेंसरी तक नहीं। ऐसी स्थित में ग्रामीण ही अपने बीमार स्वजन को चारपाई पर लेटाकर उसे कंधे पर रखकर शहर की ओर भागते हैं। बात करने पर ग्रामीणों का आक्रोश भी सामने आ जाता है। उनका कहना है कि पंजाब सरकार द्वारा दर्जनों योजनाएं चलाई जा रहीं हैं। ग्राम विकास के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन इनका लाभ भी सुल्तानपुर देहात के लोगों को नहीं मिला है।
रेलवे की जमीन पर गंदगी बस्ती में स्वच्छ भारत मिशन की दुर्दशा देखने को मिलती है। कूड़ा प्रबंधन की दम तोड़ती व्यवस्था गांव की गलियों, गिल्लां रोड और रेलवे की भूमि पर लगे गंदगी के विशाल डंपों में दिखाई पड़ती है। कुछ इलाकों में पेयजल के लिए भूमिगत बिछाई गई पाइप लाइन गंदा पानी उगल रही हैं, जिस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो यह समस्या लोगों को बीमार कर भंयकर रूप धारण कर सकती है।
गर्मी में होता है पेयजल संकट
भीषण गर्मी में यहां पर गंभीर पेयजल संकट आ जाता है। ग्रामीण बूंद-बूंद पानी के लिए तरस जाते हैं। गांव में कुछ हैंडपंप तो हैं, लेकिन पर वे सभी हवा उगल रहे हैं। अधिकांश लोग पानी की उपलब्धता के लिए वे पड़ोसी गांव पर निर्भर हैं। कुछ लोग बोरवेल से भी पानी की आपूर्ति कर रहे हैं। ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों तक को यहां के हालात के बारे में पता है। इसे लेकर कई बार शिकायत की गई, लेकिन कुछ नहीं हुई। जनप्रतिनिधियों की तरह अधिकारी भी स्थायी रूप से समाधान करने के लिए कोई राहत नहीं दे सके हैं।
सरपंच से संपर्क नहीं
पंच बोलीं- हमारे पास फंड नहीं इस समस्या के बारे में बात करने के लिए सरपंच से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया। इस बाबत पंच ललीता रानी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि गांव में पेयजल, सीवरेज निकासी और कूड़ा प्रबंधन की समस्या है। हम अपने स्तर पर जितना हो सकता है, कर रहें हैं। पेयजल संबंधी उन्होंने कहा कि कहीं कोई लीकेज है, जिसकी वजह से कुछ इलाकों में गंदे पानी की समस्या है। अधिकारियों को समस्या के समाधान के लिए कहा गया है। कूड़ा प्रबंधन को लेकर पंचायत के पास को फंड नहीं है।
बता दें कि, इलाके के घरों में आ रहा पानी पड़ोसी गांव डेरा सैय्यदां की टंकी पर निर्भर है। आलम ये है कि, इन दिनों गंदे बदबूदार पानी की सप्लाई हो रही है।