काली बेई को प्रदूषित कर रहा सीवरेज का पानी
शहर के सीवरेज का अत्यंत दूषित पानी काली बेई में गिर रहा है।
हरनेक सिंह जैनपुरी, कपूरथला
श्री गुरु नानक देव जी से जुड़ी काली बेई प्रदेश सरकार व प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की लापरवाही के कारण प्रदूषित हो रही है। एनजीटी की ओर से पाबंदी लगाने के बावजूद शहर के सीवरेज का दूषित पानी काली बेई में गिर रहा है। इसके अलावा आरसीएफ के बाहर स्थित भुलाणा कॉलोनी, डोगरावाल, ढडिया, चार चक्क, नानक पुर आदि गांवों के सीवरेज का पानी बेई में गिर रहा है। इनके अलावा होशियारपुर के गांव परेज रोलिया, प्रेमपुर, वधाइया, अहमदपुर सहित एक दर्जन गांवों के सीवरेज का पानी बेई गिर रहा है।
होशियारपुर के गांव टेरकियाणा से आरंभ होने वाली 165 किलोमीटर लंबी काली बेई सतलुज व ब्यास के बिलकुल बीच जाकर हरीके पत्तन में मिलती है। बेई के माध्यम से दोनों दरिया का पानी दूषित होता है। यही पानी नहरों के रास्ते राजस्थान पहुंचता है जहां पर लोग पीने के लिए उपयोग करते हैं। राजस्थान के गुरुद्वारों व मंदिरों में नहरों के पानी से कड़ाह प्रसाद और लंगर तैयार होते हैं जिसे संगत पवित्र मानकर ग्रहण करती है। गंदे पानी की वजह से लोग कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की चपेट में आ रहे हैं।
प्रदेश व केंद्र सरकार की ओर से काली बेई में गिर रहे गंदा व दूषित पानी को संशोधित करने के लिए बेगोवाल, भुलत्थ, टांडा व दसूहा में 31 नवंबर 2011 तक ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की योजना थी। करोड़ों रुपये खर्च कर सरकार ने सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट तो बना दिया लेकिन यह अभी तक ठीक ढंग से काम नही कर रहे है। छह साल से विरासती शहर का ट्रीटमेंट प्लान बंद है। शहर का दूषित पानी बिना बेई में गिर रहा है। इसी वजह से काली बेई के आस पास बसे करीब 170 गांवों का धरती के निचले हिस्से का पानी भी दूषित हो गया है।
बेगोवाल, भुलत्थ, टांडा व दसूहा आदि में ट्रीटमेंट लग चुका और ठीक ढंग से काम कर रहा है। कपूरथला के ट्रीटमेंट प्लांट को अभी तक ठीक नहीं किया गया है।
संत सीचेवाल की मेहनत पर फिरा पानी
किसी समय काली बेई का अस्तित्व ही मिटने की कगार पर पहुंच गया था। संत बलबीर सिंह सीचेवाल व उनके कार सेवकों की दस साल की कड़ी मेहनत से प्रदूषित हो चुकी वेई को दोबारा नया जीवन मिला है। प्रदेश सरकार, प्रशासन और लोगों की लापरवाही के चलते बेई को पुरातन स्वरूप नहीं मिल सका हैं। संत बलबीर सिंह सीचेवाल व उनके कार सेवकों ने 16 जुलाई 2000 को नानक की नदी के नाम से जानी जाती इस काली वेई को साफ करने का अभियान शुरू किया था। वह आज भी उसी तरह अग्रसर होकर निष्काम भाव से जुटे हुए हैं। अब प्रशासन, सरकारों व लोगों की लापरवाही के कारण बेई को स्वच्छ बनाने के अभियान पर पानी फिरता नजर आ रहा है।