बेई किनारे रबाबियों ने छेड़ा अनहद राग
सुल्तानपुर लोधी स्थित काली बेई के किनारे कैंप लगाया
जागरण संवाददाता, सुल्तानपुर लोधी : पांच शताब्दी पूर्व जिस काली बेई के किनारे बाबा नानक की इलाबी बाणी को भाई मर्दाना ने रबाब से गाया था, उसी बेई के किनारे तीन दिवसीय रबाबियों का शिविर रविवार को समाप्त हो गया। इन तीन दिनों में पांच राज्यों से आए रबाबियों ने रबाब से कीर्तन करके सभी का मन मोह लिया। वही श्री दरबार साहिब अमृतसर में तंती साजों से कीर्तन किए जाने की पुरातन विरासत को पुन बहाल किए जाने की प्रशंसा भी की गई।
कैंप के समापन पर पद्मश्री संत बलबीर सिंहह सीचेवाल ने कहा कि गुरु नानक देव जी ने रबाब से कीर्तन करने की जो परंपरा शुरू की थी उसे दोबारा जीवत करने की यह कोशिश काफी सराहनीय है। आज के कीर्तनी जत्थे अपनी पुरानी विरासत से दूर होते जा रहे है। उन्हें पुरातन विरासत से जोड़ने के लिए यह कैंप बहुत ज्यादा सहायक साबित होगा।
काली बेईं के किनारे शब्द ए नाद की ओर से लगाए गए मललिस-ए-रबाब तीन दिवसीय कैंप में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़ एवं पश्चिम बंगाल तथा मुंबई के करीब 70 रबाबी विद्यार्थियों ने भाग लिया गया। यह कैंप गुरुओं की तरफ से बखशिस किए गए तंती साजों रबाब, सारंदा, जौड़ी और ताउस शामिल थे। इन साजों के जरिए गुरु ग्रंथ साहिब के 31 रागों का कैसे गायन करना है, उसके अभ्यास को लेकर सभी ढंग तरीके गुरु मर्यादा अनुसार बताए गए। इस कैंप में रबाबी रणजोध सिंह की अगुआई में रबाबियों को विभिन्न रागों में कीर्तन के गुरु मंत्र सिखाए गए।
रणजोध सिंह एवं वनजोध सिंह ने वातावरण प्रेमी संत बलबीर सिंह सीचेवाल का धन्यवाद किया। कैंप दौरान बच्चों को पंथ के प्रसिद्ध रागी, संगीतकार, धुरुंदर, वजंतत्री, पेशकार और उस्तादों को आमंत्रित किया गया था। विद्यार्थियों ने बाबे नानक की बेई का दर्शन किया।