गणपति बप्पा मोरिया, अगले बरस तू जल्दी आ
देशभर में गणेश चतुर्थी धूमधाम से मनाई जाती है। दस दिनों तक चलने वाले इस पर्व में इस साल 23 सितंबर को गणपति विसर्जन किया गया। जितना महत्व गणपति पूजा का होता है उतना ही महत्व गणेश विसर्जन का भी होता है। विसर्जन के दिन सुबह पूजा कर बप्पा को विसर्जन के लि
संवाद सहयोगी, कपूरथला : शहर के हनुमंत अखाड़ा में बजरंग दल की ओर से स्थापित गणपति बप्पा को धूमधाम एवं गाजे बाजे के साथ ढोल नगाड़ो से गणपति बप्पा मोरिया रे, अगले बरस तू जल्दी आ के जयकारे लगाते हुए विदा किया गया। विसर्जन मे विश्व हिन्दू परिषद् एवं बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने मिलकर मूर्ति को ब्यास तालाब में विसर्जन किया। इस मोके पर बजरंग दल प्रदेश कार्यकारणी सदस्य संजय शर्मा एवं बजरंग दल के •िाला उपाध्क्षय जीवन वालिया ने कहा छत्रपति शिवाजी महाराज ने राष्ट्रीय संस्कृति और एकता को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक तौर से गणेश पूजन शुरू किया था। वहीं 1857 की असफल क्रांति के बाद देश को एक करने के इरादे से लोकमान्य तिलक ने इस पर्व को सामाजिक और राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाकर इसकी फिर शुरुआत की। इस मोके पर मंगत राम भोला,हैप्पी छाबड़ा,अमरजीत,गुरचरण,आनंद, इशांत, बजरंगी आदि उपस्थित थे। उल्लेखनीय है कि देशभर में गणेश चतुर्थी धूमधाम से मनाई जाती है। दस दिनों तक चलने वाले इस पर्व में इस साल 23 सितंबर को गणपति विसर्जन किया गया। जितना महत्व गणपति पूजा का होता है उतना ही महत्व गणेश विसर्जन का भी होता है। विसर्जन के दिन सुबह पूजा कर बप्पा को विसर्जन के लिए तैयार किया जाता है। नाचते-गाते और गुलाल उड़ाते हुए लोग पूरे शहर में गणपति को घुमाते हैं। इसी के साथ तरह-तरह की झाकियां भी निकाली जाती हैं। अक्सर लोगों के मन में सवाल होता है कि गणपति विसर्जन क्यों किया जाता है। दरअसल,गणपति विसर्जन के पीछे धार्मिक मान्यताएं हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की कथा सुनाने के बाद भगवान गणेश का तेज शांत करने के लिए उन्हें सरोवर में स्नान करवाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि चतुर्थी के दिन वेदव्यास ने भगवान गणेश को महाभारत की कथा सुनानी शुरू की.वेदव्यास गणपति को लगातार 10 दिन तक कथा सुनाते रहे। वहीं दूसरी ओर भगवान गणपति कथा लिखते रहे। आखिर में जब कथा पूरी हुई और वेदव्यास ने आंखें खोली तो उन्होंने पाया कि अत्यधिक मेहनत की वजह से भगवान गणेश का तेज काफी बढ़ गया है। इसके बाद वेदव्यास ने उनका तेज कम करने के उद्देश्य से भगवान गणेश को सरोवर में ले जाकर स्नान कराया। उस दिन अनंत चर्तुदशी थी और तब से ही गणपति प्रतिमा का विसर्जन करने की परंपरा शुरू हुई।