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पर्यावरण को बचाने में किसानों का बड़ा योगदान : संत सीचेवाल

मंड क्षेत्र में जिन किसानों ने पराली को बिना आग लगाए अनाज की बिजाई की है, उनके अनाज खेतों में उगने शुरू हो चुके हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 01:22 AM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 01:22 AM (IST)
पर्यावरण को बचाने में किसानों का बड़ा योगदान : संत सीचेवाल
पर्यावरण को बचाने में किसानों का बड़ा योगदान : संत सीचेवाल

संवाद सहयोगी, सुल्तानपुर लोधी :

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मंड क्षेत्र में जिन किसानों ने पराली को बिना आग लगाए अनाज की बिजाई की है, उनके अनाज खेतों में उगने शुरू हो चुके हैं। पिछले कई सालों से पराली को आग लगाए बिना अनाज बीजने वाले किसानों का बडे़ स्तर पर खाद का खर्च कम हुआ है। आर्थिक में आए इस बदलाव के साथ किसानों के जीवन में खुशहाली आई है। बडे़ स्तर पर खाद की बचत होने के साथ साथ सेहत पर भी बड़ा प्रभाव पडे़गा। इसी तरह मंड इलाके के गांव आहली कला, आहली कुर्द, बाऊपुर मंड, भरोयाणा, टिब्बी, शेखमांगा, सरुपवाल, मीरपुर, शाहवाला अंदरीसा, शेरपुर सधा, भागो अराईया, सांगरा, गाजीपुर, मेवा ¨सह वाला, सराये जटा आदि गांव के किसानों के हैपीसीडर व जीरो ड्रिल के साथ पांच हजार एकड़ से अधिक अनाज की बीजाई की है। जिन किसानों ने पराली को बिना जलाए अनाज की बीजाई की है उनका करोडों रुपये का लाभ हुआ है। अहाली कला के किसान लख¨वद्र ¨सह ने बताया कि वह 100 एकड़ के करीब अनाज की बीजाई करते आ रहे है व पिछले तीन सालों से जीरों ड्रिल के साथ अजान बीज रहा है। इसके साथ उसका खाद का खर्च काफी कम हुआ है। किसान लख¨वद्र ¨सह ने बताया कि तीन साल पहले वह पराली को आग लगाकर अनाज बीजता था तो तीन बोरे यूरिया व सवा बोरा डाया खाद का लगता था। पराली को खेतों में ही मिलाकर दो बोरे यूरिया व 25 किलों डाया खाद प्रति एकड़ की बचत हुई है। पराली को खेतों में से संभालने का सारा खर्च बचा है। इस हिसाब के साथ खाद व खाद डालने की लेबर का खर्च एक लाख के करीब बचा है। 100 एकड़ की पराली को संभालने का व बहाई का खर्च एक लाख 90 हजार के करीब बचा है। इसी ही गांव के किसान श¨मद्र ¨सह संधु ने बताया कि वह 200 एकड़ की हैपीसीडर के साथ बीजाई करते आ रहे है इसके साथ काफी खर्च की बचत होती है। पराली को आग लगाकर एक खेत को कम से कम 6 बार बहाई करनी पड़ती थी। दो बार तवीया, दो बार हल के साथ दो बार सुहागे से खेत की बहाई करनी पड़ती थी। इस हिसाब से 25 लीटर डीजल का खर्च प्रति एकड़ आता है जिसकी कीमत 1900 रुपये प्रति एकड़ बनती है। किसान श¨मद्र ¨सह का कहना था कि उसका तेल ही 3 लाख 60 हजार के करीब बच गया। इसी हिसाब के साथ 200 एकड़ पीछे करीब 1 लाख 20 हजार रुपये की खाद बची है। पराली न जलाकर जो वातावरण के प्रदूषण की बचत होती है उसकी तो कोई कीमत ही नही बताई जा सकती। वातावरण प्रेमी संत बलबीर ¨सह सीचेवाल ने उन किसानों का धन्यवाद किया जिन्होंने पराली को आग लगाए बिना ही अनाज की बीजाई की है। उन्होंने कहा कि किसानों ने बाबे नानक की बाणी का उपदेश की पालना भी की है जिस में हवा को गुरु का दर्ज दिया गया है। संत सीचेवाल ने कहा कि जो किसान पराली को खेतों में बहाई कर कुदरत व मनुष्यों की सेवा कर रहे है उनकों साल 2018में श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर सम्मानित भी किया जाएगा। संत सीचेवाल ने पंजाब सरकार को भी अपील की वह ऐसे किसानों की आर्थिक तौर पर मदद करे जो पराली को आग नही लगा रहे। मंड इलाके के इन गांव के किसानों में दर्शन ¨सह ने 80 एकड़, गरदौर ¨सह 65 एकड़, कुलबीर ¨सह 25 एक्ड, सुखचैन ¨सह 90 एक्ड, मलकीत ¨सह 120 एक्ड, व गुरभेज ¨सह पराली को बिना आग लगाए ही अनाज की बिजाई कर रहे है।


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