दिव्यांग होकर भी फैला रहे शिक्षा का उजियारा
गरीब जरूरतमंद दिव्यांग और अनाथ की बच्चों की शिक्षा किताबों की वजह से रुके यह कपूरथला निवासी मंगल सिंह भंडाल को कतई मंजूर नहीं है।
महेश कुमार, कपूरथला : गरीब, जरूरतमंद, दिव्यांग और अनाथ की बच्चों की शिक्षा किताबों की वजह से रुके यह कपूरथला निवासी मंगल सिंह भंडाल को कतई मंजूर नहीं है। खुद बेशक दिव्यांग हैं लेकिन शिक्षा की अहमियत उन्हें मालूम है। तभी तो नवाब जस्सा सिंह आहलूवालिया सरकारी कॉलेज के सीनियर लेक्चरर सहायक मंगल सिह भंडाल अपने दम पर शिक्षा की अलख जगाने में प्रयासरत है।
भंडाल बताते हैं कि वर्ष 2002 की बात है। वह कॉलेज में थे। उनके पास एनआरआइ निर्मल सिह पत्तड़ आए और उन्हें 5100 रुपये देने की पेशकश की। उनके मन में इससे एक क्लब गठित करने का विचार आया। उन्होंने कॉलेज के प्रोफेसर कुलवंत सिह औजला से विचार-विर्मश के बाद वाहेगुरु क्लब का गठन कर दिया। यह क्लब पिछले 17 वर्षो से कॉलेज के बच्चों को हर विषय की किताबें मुफ्त मुहैया करवा रहा है। पहले साल में महज पांच बच्चों को किताबे मुहैया करवाने का कारवा आज 70 से 80 बच्चों को किताबे उपलब्ध करवा रहा है। अब इस काम में कई और दानी सज्जन सहयोग दे रहे हैं। अहम बात यह है कि भंडाल किसी भी दानी सज्जन से राशि नहीं लेते हैं। वह उन्हें बस इतना ही आग्रह करते हैं कि इस राशि की किताबें लाकर दे दें।
परीक्षा में उत्तीर्ण होने उपरांत किताबें वापस करने की शपथ भी बच्चा लेता है ताकि किताबें किसी और के काम आ सकें। हर वर्ष सिलेबस बदलने पर नई किताबों का स्टाक भी खरीदा जाता है, जिसमें कॉलेज के प्रोफेसर भी आर्थिक मदद करते है। इन बच्चों का बाकायदा पता भी रजिस्टर में लिखा जाता है और संस्था के पैसे का हिसाब-किताब भी प्रतिवर्ष आडिट किया जाता है।
मंगल सिह भंडाल बताते हैं कि 2002 से अब तक 450 बच्चों को निशुल्क किताबें उपलब्ध करवा चुके हैं। इनमें 11वीं से लेकर एमए तक की किताबें शमिल हैं। यह सुविधा नवाब जस्सा सिह आहलूवालिया सरकारी कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों को ही दी जाती है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2003-04 में तीन दिव्यांग व एक माता-पिता से संबंधित बच्चे को किताबें मुहैया करवाई। पांच बच्चे 60 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त कर पास हुए। 2004-05 में चार दिव्यांग, दो माता-पिता से वंचित और नौ गरीब बच्चों को दानी सज्जनों द्वारा मुहैया करवाई गई किताबें दी गई जिनमें एक बच्चा मेरिट और 10 बच्चे 60 प्रतिशत से अधिक अंक लेकर पास हुए। इस तरह से वर्ष दर वर्ष आंकड़ा बढ़ता गया।
कमजोरी को ताकत बनाने की ठानी
1963 को जिला कपूरथला के गांव भंडाल बेट में पिता नंबरदार गुरदयाल सिह व माता तेज के घर पैदा हुए मंगल सिंह भंडाल बचपन में दिव्यांग नही थे। पाच वर्ष की आयु मे एक हादसे में उनकी टांग कट गई। उसके बाद उन्हे जो परेशानी झेलनी पड़ी वह खुद ही जानते हैं। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उन्होंने निर्णय लिया कि वह अपनी इस कमजोरी को ताकत बनाएंगे। सात दिसंबर 1982 को सरकारी कालेज गर्ल्स पटियाला में जूनियर लेक्चरर सहायक बोटनी की नौकरी मिल गई। आर्थिक स्थिति में सुधार होने के साथ समाजसेवी कार्यो की तरफ कदम बढ़ाने लगे।