रिक्शा चालक से शिक्षक बन भूषण ने कायम की मिसाल
::तमसो मा ज्योतिर्गमय:: -कभी इनकी नशे व जुए की लत से परेशान था परिवार -संत सीचेवाल की प्रे
::तमसो मा ज्योतिर्गमय::
-कभी इनकी नशे व जुए की लत से परेशान था परिवार
-संत सीचेवाल की प्रेरणा से 2005 में शीशम पेड़ के नीचे 12 बच्चों को शुरू किया था पढ़ाना
-अब 172 बच्चे मुफ्त पढ़ रहे स्कूल में, अभी तक 750 से ज्यादा बच्चों को किया शिक्षित
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हरनेक सिंह जैनपुरी, कपूरथला: सुल्तानपुर लोधी स्थित ननकाना चैरिटेबल स्कूल के प्रिंसिपल भूषण पासवान की कहानी एकदम फिल्मी है। वह कभी रिक्शा चलाते थे। नशे की लत थी तो पूरी कमाई शराब पर उड़ा देते थे। परिवार भी उनकी इस लत से परेशान था। ऐसे विकट समय में काली बेईं का उद्धार करने वाले संत बलबीर सिंह सींचेवाल गुरु बनकर उनकी जिंदगी में आए और भूषण की जिंदगी बदल दी। दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ चुके भूषण ने न सिर्फ शराब छोड़ दी, बल्कि आगे की पढ़ाई भी शुरू कर दी। मेहनत रंग लाई और भूषण आज खुद गरीब बच्चों की जिंदगी में ज्ञान का उजियारा फैला रहे हैं। उन्होंने अब तक 750 से अधिक बच्चों को शिक्षित किया है। मा बर्तन माज करती थी परिवार का गुजारा
पुराने दिनों को याद करते हुए नालंदा जिले के नेपुरा गाव के मूल निवासी भूषण बताते हैं कि अब से तेरह साल पहले मेरी जिंदगी ऐसी नहीं थी। मैं रिक्शा चलाता था। मुझे शराब पीने व जुआ खेलने की लत थी। पूरी कमाई शराब व जुए पर उड़ा देता था। मेरी मा कलावती लोगों के घरों में बर्तन माज कर जैसे-तैसे घर को चला रहा थीं। परिवार झुग्गी में रहता था। ऐसे बदली जिंदगी की दशा व दिशा
भूषण कहते हैं कि 13 दिसंबर 2005 को संत बलबीर सिंह सीचेवाल वहा आए। उन्होंने झुग्गियों में रहने वाले लोगों को अपने बच्चों को पढ़ाने की प्रेरणा दी। संत सीचेवाल ने कहा कि अगर आपमें से ही कोई पढ़ा-लिखा हो तो वह इन बच्चों को अच्छे ढंग से पढ़ा सकेगा। मैंने हाईस्कूल माफी नालंदा से मैट्रिक पास कर रखी थी, इसलिए लोगों ने मेरा नाम बताया। संत सींचेवाल ने मुझसे पूछा कि क्या बच्चों को पढ़ा सकोगे। मैंने कहा,मैं वादा नहीं कर सकता, लेकिन कोशिश करूंगा। बाबा ने समझाया तो छोड़ दी शराब
कुछ देर रुकने के बाद भूषण अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहते हैं,<स्हृद्द-क्तञ्जस्> मैंने काली बेईं के किनारे शीशम के पेड़ के नीचे 12 बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे इस कक्षा में बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। मेरी नशे की लत अभी छूटी नहीं थी। संत सीचेवाल ने इसके बारे में पूछा तो मैंने बताया कि रोजाना सुबह-शाम में दो बोतल शराब पी लेता हूं। बाबा ने मुझे समझाया कि अगर शिक्षक शराबी व जुआरी होगा तो उसका बच्चों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा।उनके घटों समझाने के बाद बात मुझे समझ आ गई और मैंने शराब छोड़ दी। बाबा की प्रेरणा से शुरू की पढ़ाई
अपनी बात कहते-कहते भूषण भावुक हो जाते हैं। फिर बात को बढ़ाते हुए कहते हैं कि बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते मेरे अंदर भी आगे पढ़ने की लगन जागी। मैंने पढ़ाई शुरू की और वर्ष 2006 में आरलाल कॉलेज अलीनगर नालंदा से इंटरमीडिएट पास किया। वर्ष 2010 में अल्लामा इकबाल कॉलेज बिहार शरीफ से बीए की डिग्री भी हासिल कर ली। साथ ही, सुल्तानपुर लोधी स्थित ननकाना चैरिटेबल स्कूल का प्रिसिंपल भी बन गया। इस स्कूल में अब 172 मुफ्त में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ये बच्चे बिहार व यूपी आदि राज्यों से आकर सुल्तानपुर लोधी की झुग्गी झोपिड़यों में रहने वालों के हैं। हिंदी मीडियम वाला यह स्कूल 2008 से आरंभ हुआ था। इस तरह बढ़ा शिक्षा का कारवा
शिक्षक के तौर पर अकेले भूषण की तरफ से शुरू किए गए इस स्कूल में अब 9 अध्यापक पढ़ा रहे हैं। भूषण के पढ़ाए बच्चों में से एक रवि कुमार बीटेक कर इस समय दिल्ली में छह माह की ट्रेनिग ले रहा है। अजय कुमार व राम कुमार बिहार के कृषि विभाग में नौकरी करने लगे हैं। लगभग 78 लड़के व लड़किया बिहार और पंजाब में प्लस टू के आगे पढ़ रहे हैं। इस स्कूल में सभी बच्चों को खाना भी ट्रस्ट की तरफ से ही मुहैया करवाया जाता है। अब भूषण भी बीएड करने की सोच रहे हैं। वह कहते हैं कि अब वह खुद बीएड करेंगे। अपने स्कूल को अपग्रेड कर प्लस टू बनवाने की कोशिश करेंगे, ताकि बच्चों को अन्य स्कूलों में भटकना न पड़े। काफी बदल गया है भूषण
पहली बार जब मिला था तो भूषण की हालत कुछ और थी। शराब व जुए की लत के कारण इसको कोई भी पसंद नहीं करता था। आज वह अपने आप को काफी बदल चुका है। गरीब बच्चों को शिक्षित करने में सराहनीय योगदान दे रहा है।
-संत बलबीर सिंह सीचेवाल।