Move to Jagran APP

लाखों के पैकेज छोड़ कृषि अपना रहे हैं युवा, काट रहे नोटों की फसल

भारत में अब इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों को छोड़कर युवा कृषि को करियर बना रहे हैं। इसमें उन्हें इंडो-इजरायल तकनीक खासी रास आ रही है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Thu, 15 Mar 2018 12:25 PM (IST)Updated: Fri, 16 Mar 2018 10:46 AM (IST)
लाखों के पैकेज छोड़ कृषि अपना रहे हैं युवा, काट रहे नोटों की फसल
लाखों के पैकेज छोड़ कृषि अपना रहे हैं युवा, काट रहे नोटों की फसल

 जालंधर, [सत्येन ओझा]। जैविक कृषि पर आधारित इंडो-इजरायल तकनीक भारतीय किसानों को खूब रास आ रही है। इसमें पानी की बचत तो होती है, साथ ही कम लागत में मुनाफा भरपूर होता है। सब्जी उत्पादन के क्षेत्र में यह तकनीक कमाल की साबित हुई है। यही नहीं, यह तकनीक भारतीय युवा किसानों को भी भा रही है, खास तौर पर उन्हें जो इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों को छोड़कर कृषि में करियर बनाने में जुटे हैं।

loksabha election banner

खीरा की पैदावार से की लाखों की कमाई

जालंधर (पंजाब) के गांव पलथ निवासी किसान लहमर सिंह ने पिछले सीजन में इस तकनीक से खीरा की पैदावार की थी। लहमर सिंह ने बताया कि अपनी 10 एकड़ खेती में से सिर्फ एक एकड़ में पहले सीजन में उन्होंने खीरा की पैदावार के सारे खर्चे निकालकर साढ़े पांच लाख रुपये का मुनाफा कमाया। परंपरागत खेती से एक लाख रुपये प्रति एकड़ की आय भी नहीं हो पाती थी। लुधियाना के किसान हरवीर सिंह व धनदीप सिंह नई तकनीक से शिमला मिर्च की पैदावार कर प्रति एकड़ पांच लाख रुपये से ज्यादा कमाई कर चुके हैं।

इंजीनियरिंग के बाद खेती-बाड़ी

कंप्यूटर साइंस में इंजीनियर गुरदीप कौर ने एक प्रतिष्ठित कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर का जॉब छोड़कर पहले हर्बल प्लांट की खेती शुरू की। अब वह इंडो-इजरायल तकनीक पर आधारित सब्जियों की पैदावार को अपना कॅरियर बनाने जा रही हैं। गुरदीप का कहना है कि नई तकनीक में जीवन की इंजीनियरिंग है, यहां पैसा भी है, समाजसेवा भी है। गुड़गांव (हरियाणा) में एक प्रतिष्ठत कंपनी में मैकेनिक इंजीनियर की जॉब छोड़कर करतारपुर निवासी अवतार सिंह ने इंडो-इजरायल तकनीक पर आधारित आर्गेनिक विधि से सब्जियां उगाने की दिशा में कदम बढ़ाया है।

यह है इंडो-इजराइल तकनीक

सेंटर के प्रोजेक्ट ऑफिसर दलजीत सिंह के अनुसार इंडो-इजरायल तकनीक से पॉली हाउस, नेट हाउस, वॉक इन टनल्स, हाईटेक पॉलीहाउस व पॉली नेट बनाकर उसी के अंदर सब्जियां पैदा की जाती हैं। पॉली हाउस के बंद क्षेत्र में सब्जियां पैदा होने से आंधी, तूफान, बारिश या अन्य किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा का कोई असर नहीं पड़ता है। मिट्टी के बजाय कोको पीट (नारियल का बुरादा), वर्मी क्लाइट, परलाइट का मिश्रण तैयार करके उसी में सब्जियां पैदा की जाती हैं। इससे मिट्टी से आने वाली बीमारियां फसल में नहीं आ पाती हैं। पॉली हाउस में सूरज से आने वाली वहीं किरणें पौधों तक पहुंचती हैं, जो पौधे को बढ़ने के लिए फोटो सिंथेसिस प्रक्रिया के लिए जरूरी होती हैं। पौधों की सिंचाई डिपिंग सिस्टम से होती है। इससे परंपरागत खेती की तुलना में 70 प्रतिशत तक पानी बचता है।

यहां विकसित हुई तकनीक

इजरायल के सहयोग से पंजाब के करतापुर में स्थापित सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजीटेबल्स ने जैविक विधि से कम जगह में ज्यादा सब्जियां उगाने की तकनीक खोजी है। 15 एकड़ में फैला सेंटर 24 दिसंबर 2013 में स्थापना के बाद से अब तक पंजाब के 600 से ज्यादा किसानों को नई तकनीक का हिस्सा बना चुका है।

जैविक खाद का प्रयोग

इस पद्धति में जैविक खाद का प्रयोग होता है, जिसका 90 प्रतिशत हिस्सा पौधे तक पहुंचता है जबकि सामान्य खेती में खाद का सिर्फ 40 प्रतिशत अंश ही पौधे तक पहुंचता है। नई तकनीक में टमाटर, शिमला मिर्च, बैगन आदि सभी प्रकार की सब्जियों के पौधे को खास तकनीक से लंबाई में बढ़ाया जाता है, जिससे कम जगह में काफी ज्यादा पैदावार होती है।

किसानों को मिलती है सब्सिडी

बागबानी विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉ.सतवीर सिंह के अनुसार एक एकड़ पॉली हाउस तैयार करने में लगभग 34 लाख रुपये का खर्चा आता है। इस पर 50 प्रतिशत सब्सिडी सरकार देती है। इससे कम में भी पॉली हाउस तैयार होता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.