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श्रमिकों ने शुरू किया दूसरा धंधा, बोले- पंजाब नहीं छोड़ेंगे, जिएंगे भी यहीं, मरेंगे भी यहीं

श्रमिकों का पलायन जारी है लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो पंजाब नहीं छोड़ना चाहते। उनका कहना है कि वह ऐसे दौर में राज्य छोड़कर नहीं जाएंगे।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 10 May 2020 10:16 AM (IST)Updated: Sun, 10 May 2020 10:16 AM (IST)
श्रमिकों ने शुरू किया दूसरा धंधा, बोले- पंजाब नहीं छोड़ेंगे, जिएंगे भी यहीं, मरेंगे भी यहीं
श्रमिकों ने शुरू किया दूसरा धंधा, बोले- पंजाब नहीं छोड़ेंगे, जिएंगे भी यहीं, मरेंगे भी यहीं

जालंधर [शाम सहगल]।  Coronavirus COVID_19 के कारण लगाए गए कर्फ्यू के बीच पंजाब से जहां बहुत से श्रमिक अपने प्रदेश लौट रहे हैैं वहीं, कई श्रमिक ऐसे भी हैैं जो पंजाब किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहते। उनका कहना है कि जिएंगे भी यहीं और यहीं पर ही अब मरेंगे भी। भवन निर्माण व उद्योग सहित तमाम तरह के कारोबार बंद होने के बाद इनमें से अधिकतर श्रमिकों ने सब्जी व फल बेचने का काम शुरू कर दिया था।

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करीब डेढ़ माह पहले जब पंजाब में कर्फ्यू लगने पर उद्योग बंद हुए तो कई कामगार बेरोजगार हो गए। इस कारण पंजाब से करीब दस लाख कामगारों ने अपने प्रदेशों- उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड आदि लौटने के लिए रजिस्ट्रेशन कर डाला, लेकिन बहुत से ऐसे भी हैैं जो पहले से यह मानकर चल रहे हैैं कि वे पंजाब नहीं छोड़ेंगे। वे अब दिल से पंजाब की धरती को अपना मान चुके हैं। कहते हैैं कि पंजाब में बहुत प्यार मिला है। उन्हें यह भी उम्मीद है कि जल्द ही सब कुछ पटरी पर आए जाएगा।

काला सिंघा रोड के पास रह रहे बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी मणिलाल साह बताते हैं कि वह पुराने गत्ते के लेनदेन का काम करते थे। कर्फ्यू के कारण तमाम तरह के कारोबार बंद पड़े हुए थे। ऐसे में घर का गुजरा करना मुश्किल हो रहा था। अब फल बेचने का काम शुरू किया है। रोजगार का अच्छा साधन मिल गया है। जिसको जाना है वह बिहार की ट्रेन पकड़े, लेकिन वह कतई जाने के बारे में नहीं सोच रहे हैैं।

जालंधर के ही छोटा सईपुर में रह रहे उत्तर प्रदेश के फैजाबाद के मूल निवासी अजय कुमार बताते हैं कि वह घरों में पेंट करने का काम करते थे। कर्फ्यू के कारण धंधा चौपट हो चुका है। बावजूद इसके पंजाब छोडऩे का मन कभी नहीं किया। परिवार चलाने के लिए सब्जी बेचने का काम शुरू किया है जिससे परिवार का खर्च संतोषजनक चल रहा है। कुछ दिनों की बात है, उम्मीद है कि शीघ्र ही उद्योग-व्यापार शुरू हो जाएगा।

बिहार के पूर्णिया के मूल निवासी उमाकांत कहते हैैं कि बेहतर भविष्य का सपना लेकर पंजाब आए थे। मार्बल लगाने का काम सीखा। पंजाब में रहते हुए इसी काम से बहुत कुछ किया। अब विपरीत परिस्थितियों में भी न तो परिवार पंजाब को छोडऩा चाहता है, न ही वह खुद इसके लिए तैयार हैं। भावुक होते हुए उन्होंने कहा कि डेढ़ माह से कोई ऑर्डर नहीं मिला है। मजबूरी में सब्जी बेचने का काम शुरू किया है। अ'छी आमदनी हो रही है। अब कोई चिंता नहीं है।

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रामपुर के रहने वाले सत्यराम बताते हैं कि सरकार द्वारा पलायन के लिए शुरू की गई ट्रेन के लिए उन्होंने आवेदन ही नहीं किया है। इसकी वजह है कि राज मिस्त्री का काम करते हुए पंजाब के लोगों का बहुत प्यार मिला है। वे भी फल व सब्जी बेचने लगे हैैं और संतुष्ट हैैं।

उद्योगों का पहिया घूमने से मन बदलने लगा

उद्योग चलने से उन मजदूरों का मन भी बदलने लगा है जिन्होंने अपने प्रदेशों को लौटने के लिए पंजीकरण करवा लिया था। यही वजह है कि पंजीकरण करवाने वाले करीब दस लाख मजदूरों में से 35 प्रतिशत ने आवेदन रद कर दिए हैैं। बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले जीवन लाल ने वापस जाने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाई थी और 11 उन्हें ट्रेन लेनी थीं लेकिन उनका कहना है कि वे वापस नहीं जाएंगे। उन्हें उम्मीद है कि फैक्ट्री में काम मिल ही जाएगा।


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